जीवन रूपी अंधेरे को दूर करने वाला गुरु होता है-सुधाकर मुनि

जीवन रूपी अंधेरे को दूर करने वाला गुरु होता है-सुधाकर मुनि

तेरापंथ भवन में मना आचार्य महाश्रमण जी के 50 में दीक्षा कल्याण महोत्सव

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 19 मई। तेरापंथ के आचार्य महाश्रमण जी के 50 वें दीक्षा कल्याण महोत्सव के अवसर पर मुनि श्री सुधाकर जी ने कहा कि हम इतनी पदयात्रा करते हैं, गुरु महाश्रमण जी को देखकर हमारी सारी थकान दूर हो जाती है, सारी उदासी दूर हो जाती है। गुरु के मुखारविंद को देखकर मासखमन की तपस्या जैसे पुण्य हमें मिलता है। गुरु पालन करते हैं, पोषण करते हैं और संपोषण भी करते हैं। वे हमारा उद्धार भी करते हैं। इसलिए गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश की संज्ञा दी गई है। गुरु दो शब्दों से मिलकर बना है। गु अर्थात अंधेरा और रु अर्थात अंधेरे को दूर करने वाला। जीवन रूपी अंधेरे को दूर करने वाला गुरु होता है। गुरु का मिलना केवल भाग्य नहीं, सौभाग्य है।
तेरापंथ भवन में महोत्सव में दूर-दूर से पधारे श्रावकों को संबोधित करते हुए सुधाकर मुनि कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हम गुरु महाश्रमण जी के अनुसरण में साधना कर रहे हैं। आचार्य तुलसी जी ने भी कहा था कि साधु हो तो मुनि मुदित जैसा हो। उन्होंने मुनि मुदित में आचार्य निष्ठा , मर्यादा निष्ठा,संघ निष्ठा एवं आज्ञा निष्ठा के भाव देखे थे। मोक्ष को पाना आसान नहीं है। गुरु का सांसारिक नाम मोहन था। वे मुनि बने तो मुदित मुनि कहलाए और आचार्य बने तो महाश्रमण हुए। तीनों शब्द का प्रथम अक्षर ” म ” है। आचार्य महाश्रमण जी सदैव अपने गुरु के प्रति समर्पित रहे। उनका ज्ञान महान है श्रमण के समान है। उनकी वाणी, आहार, दृष्टि ,संयम अनुत्तर है। उनका इंद्री संयम अनुत्तर है।


मुनि श्री ने कहा कि आचार्य के वचन कानों को तृप्ति प्रदान करते हैं। आचार्य ने यदि एक बार भी हमारी ओर देखा तो मन तृप्त हो जाता है। गुरुदेव सब की बात सुनते हैं किंतु यदि पांच शब्द भी कह दे तो वह व्यक्ति भाग्यशाली होता है। गुरु मौन धारण कर अपने मन को चेंज करते हैं। आचार्य महाश्रमण ने जब दिल्ली से अहिंसा और नशा मुक्ति आंदोलन शुरू किया था तो उन्होंने अपने से बड़े सभी साधुओं को वंदन किया था। आचार्य का जीवन आगम की प्रयोगशाला है। उनमें मधुरता, मृदुता एवं उदारता है। उन्होंने कहा कि कल्याणक तीर्थंकरों के मनाये जाते हैं। प्रत्यक्ष में आचार्य के रूप में तीर्थंकर हमारे सामने हैं। उन्होंने कहा कि जब-जब शीश झुकता है तब तब आशीष मिलता है। मुनि श्री ने कहा कि राजनांदगांव आने के पीछे का कारण गुरु का आदेश था, राजनांदगांव में दीक्षा दिवस मनाना था, उन्होंने यहां के लोगों की भक्ति देखी, यहां के लोगों की उपस्थित प्रशंसनीय है।
इससे पूर्व मुनि श्री नरेश जी ने कहा कि आचार्य महाश्रमण जी गुणों की खान है। समारोह का शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल के मंगलाचरण से हुआ।उपस्थितजनों को दुर्ग के संजय चोपड़ा, रायपुर सभा के अध्यक्ष गौतम चंद जी गोलछा, जगदलपुर से पधारे राजकुमार जी लोढ़ा, रायपुर से पधारे इंद्रजीत जी, राजनांदगांव तेरापंथ महिला मंडल की श्रीमती ललिता डढ्ढा,भिलाई के दानमल जी पोरवाल, सिकोसा से आई बालिका युति पारख, तेरापंथ सभा राजनांदगांव के अध्यक्ष राजेंद्र सुराणा, केसकाल से नरेंद्र जी तातेड, सजा के गोलू गोलछा, रायपुर के नीतीश कुमार, बालाघाट से आई शोभा कोठारी, रायपुर से संपत जी डागा , दुर्ग से दिलीप जी बरमेचा और रायपुर से विनोद जी बरलोटा ने संबोधित किया।टीपीएफ रायपुर ने गीतिका का सामूहिक संगान किया।इसके साथ ही तेरापंथ महिला मंडल राजनांदगांव ने सामूहिक गीतिका का गान किया।

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