2580 वाँ जिनशासन स्थापना दिवस मनाया गया

2580 वाँ जिनशासन स्थापना दिवस मनाया गया

राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़) 19 मई। 2580 साल पहले 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी जी ने अपने असीम ज्ञान दीपक द्वारा इस अन्धकार में डूबे संसार को प्रकाशित किया था और अपने शासन की स्थापना की थी।

सकल जैन श्री संघ की साक्षी में परम पूज्य श्री जयपाल विजय जी महाराज साहब आदि ठाणा 3 एवं परम पूज्य साध्वी श्री राजरत्ना श्री जी महाराज साहब आदि ठाणा 17 की पावन निश्रा में जैन संघ के सुश्रावक भिखमचंद छाजेड एवं पदमचंद पारख द्वारा आज श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर के समीप ध्वजारोहण किया गया।
सकल जैन श्री संघ के अध्यक्ष मनोज बैद ने बताया की आज से 2580 वर्ष पूर्व मिगसर वदि 10 के दिन प्रभु महावीर ने ‘शिवमस्तु सर्वजगतः’ के सिद्धांत को हम तक पहुंचाते हुए, सभी जीवों को अभयदान देने के लिए पंच महाव्रतों को धारण किया था यानी दीक्षा ली थी।
दीक्षा के बाद लगभग साढ़े 12 वर्ष तक घोर उपसर्ग और परिषह सहते हुए वैशाख सुदी 10 के दिन जृंभिका गांव के पास ऋजूवालिका नदी के तट के समीप शाल वृक्ष के नीचे गोधुहिका मुद्रा में ध्यानस्थ प्रभु को सर्वज्ञान यानी केवलज्ञान प्रकट हुआ।
उसी जगह देवों द्वारा समवसरण की रचना की गई लेकिन प्रभु की देशना में अनेकों देव, तिर्यंच प्राणी यानी पशु पक्षी तो आए, लेकिन कोई मनुष्य नहीं ! इस कारण किसी ने भी दीक्षा ग्रहण नहीं की क्योंकि देव और पशु पक्षी दीक्षा नहीं ले सकते हैं और जब तक किसी की दीक्षा ना हो तब तक शासन की स्थापना नहीं हो सकती !
अगले दिन यानी वैशाख सुदि 11 के दिन प्रभु महावीर अपापापूरी यानी आज की पावापुरी में पधारे,वहां पर पुनः देवों द्वारा समवसरण की रचना की गई। तब प्रभु के हाथों से इंद्रभूति गौतम जिन्हें हम गौतम स्वामी के नाम से जानते हैं, चंदनबालाजी आदि कई लोगों ने दीक्षा ली और तब प्रभु ने चतुर्विध श्रीसंघ जिसमें साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका आते हैं उसकी स्थापन की और इस तरह जैनशासन की स्थापना हुई।
प्रभु वीर का मार्ग हमारी आत्मा को परमात्मा बनने का मार्ग दिखाता है।
सकल जैन श्री संघ से ओम कांकरिया,राजेंद्र सुराणा, ज्ञानचंद कोठारी, श्रीचंद कोचर, मनीष छाजेड, दिनेश लोढ़ा, अशोक चंद बैद, प्रेमचंद लुनिया, निर्मल बैद, कोमल कोठारी, फ़नेंद्र बैद, जयचंद ललवानी, रितेश लोढ़ा, आकाश चोपड़ा, भरत डाकलिया श्राविका वर्ग से सरोज गोलछा, सरला लुनिया, रेखा कोटड़िया आदि सहित श्रावक-श्राविका बच्चे सभी वर्ग के लोग उपस्थित थे।

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