राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ) 4 जून. भारतीय मनीषा, दर्शन एवं सनातन परंपरा में योग एवं ध्यान-साधना, समाधि आदि को सदा-सर्वदा से मानव के उत्कर्ष का सुदृढ़ स्थाई आधार सूत्र माना गया है। इसी महत्तम समसामयिक विचार तथ्य पर नगर के संस्कृति विचारप्रज्ञ व्यक्तित्व डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने विशेष चिंतन विमर्श में बताया कि ध्यान-साधना से एक साथ शारीरिक-मानसिक थकान, विकार आदि सरल, सहज रूप से दूर होते हैं। बल्कि ध्यान साधना से ही निर्धारित मानक समय के अंतर्गत मानव मात्र को अद्भूत- अलौकिक-असीम ऊर्जा प्राप्त होती है। भारतीय सनातनी संस्कार पद्धति में अध्यात्मिक एवं आत्मिक उन्नति के लिए हमारे ऋषि-महर्षि तपस्वियों ने ध्यान-योग-साधना को ही अपनाया। इसीलिए आदिकाल से ही देवादिदेव महादेव भगवान शिव ध्यान-साधना के आदि गुरू एवं पूर्ण कलावतारी भगवान श्री कृष्ण योगेश्वर कहलायेें और आदि शंकराचार्य, महर्षि अरविन्द, स्वामी विवेकानंद भी इसी ध्यान - साधना से मानव मात्र से महामानव बनें। आगे डॉ. द्विवेदी ने विशिष्ट रूप से उल्लेखित किया कि भारतीय सनातन, वैदिक दर्शन के मुख्य छह घटकों में योग साधना को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह मानव के मन-मस्ष्कि को परम सार्थक एकाग्रता से जोड़कर सहज-सरल सुखकारी एवं जन-कल्याणकारी सोच और पहल के लिए सशक्त विशुद्ध रचनात्मक ऊर्जा - शक्ति - साहस प्रदान करता है आईये सर्व जन-जन श्रेष्ठ-सार्थक राष्ट्रवादी प्रादर्श नागरिक बनने हेतु व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन में उन्नति सर्वोत्कृष्ठ प्रगति के लिए ध्यान साधना को अपनी व्यस्त जीवनचर्या में अवश्य अपनाएं। विशेषकर ध्यान-साधना जब एकांत, सहज, प्राकृतिक परिवेश में, सुरम्य घाटी-कन्दराओं में और सागर- द्वीप-प्रायद्वीप में की जाती है और अधिक सफलीभूत होती है। यही मानव से महामानव और महापुरूष बनने की सर्वोपयुक्त साधन प्रक्रम हैं।
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