रायपुर (अमर छत्तीसगढ) 16 जुलाई।
जैन समाज में चातुर्मास 20 जुलाई से प्रारंभ होगा। इस दौरान जैन साधु-साध्वी चार माह तक एक ही स्थान पर निवास कर आत्मसाधना करेंगे और करवाएंगे। प्रवचनों और त्याग-तपस्याओं का वातावरण बनेगा। जैन संतों के लिए यह आगमिक विधान है कि वे चातुर्मास काल में चार कोस अर्थात् शहर के प्राचीन चुंगी नाका की सीमा से 10 किलोमीटर के दायरे से बाहर नहीं जा सकेंगे। उल्लेखनीय है कि पक्खी पर्व होने के कारण चातुर्मास का शुभारंभ 20 जुलाई से है।
श्रमण डॉ पुष्पेंद्र ने बताया कि चातुर्मास के दौरान संस्कार, संस्कृति, सदाचार और संयम पालन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। श्रद्धालुओं एवं अनुयायियों को व्रत नियमों पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। चातुर्मास की उपयोगिता इसलिए अहम है कि इस दौरान संत लोगों को नियमित प्रवचन और प्रेरणा देते हैं। इतिहासविज्ञ डॉ. दिलीप धींग ने बताया कि विभिन्न आध्यात्मिक साधनाओं से व्यक्तित्व विकास एवं सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से चातुर्मास का विशेष महत्व है। चातुर्मास में जैन समाज में आश्चर्यजनक तपस्याएं की जाती हैं।
चातुर्मास के दौरान सादा व संतुलित भोजन किया जाता है
खाने में सादा भोजन, गरिष्ठ भोजन का त्याग किया जाता है। जमीकंद (आलू, प्याज, लहसुन, अदरक) का उपयोग नहीं करते। बीज, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी तिथि पर श्रावक-श्राविका हरी सब्जी-फलों का पूर्ण त्याग करते हैं। अधिकतर तौर पर बाजार की वस्तुओं का भी त्याग होता है। एकासन: दिन में एक स्थान पर बैठकर एक बार भोजन करते हैं। उपवास: एक दिन उपवास के दौरान खाना नहीं खाते, सिर्फ गर्म पानी का उपयोग करते हैं। अगले दिन नवकारशी आने के बाद पारणा करते हैं। आयंबिल: नमक-मिर्च-हल्दी-घी-तेल-मिर्च मसाले रहित भोजन करते हैं।