- चातुर्मास स्थापना कर आचार्यश्री ने दी ज्ञान एवं तपः आराधना की प्रेरणा
- शांतिदूत के दर्शनार्थ पहुंचे शिक्षा राज्यमंत्री प्रफुल्ल पंशेरिया
सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 20 जुलाई।
जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सन्निधि में आज चतुर्मासिक स्थापना दिवस मनाया गया एवं चतुर्दशी के मौके पर हाजरी का आयोजन हुआ। सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक ये चार माह जैन मुनि एक ही स्थान पर रह कर धर्म को आराधना करते। इस कल में विशेष परिस्थिति के सिवाय कही अन्यत्र विहार आदि भी नहीं होता। सूरत में भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के संयम विहार परिसर में आचार्य श्री का विशाल साधु साध्वी समुदाय के साथ चातुर्मास होने जा रहा है।
चातुर्मास काल में ज्ञान आराधना, तपस्या जैसे अनेकों उपक्रमों द्वारा श्रावक श्राविकाएं धर्म लाभ लेंगे वही सुबह–शाम नित्य प्रवचन, तत्वज्ञान, जैन दर्शन आदि की कक्षाओं द्वारा साधु साध्वियां भी जनता को विशेष प्रशिक्षण देंगे। कल आचार्य श्री के सान्निध्य में तेरापंथ धर्मसंघ का स्थापना दिवस भी समायोजित है।
इस मौके पर गुजरात के शिक्षा राज्य मंत्री प्रफुल्ल पंशेरिया विशेष रूप से कार्यक्रम में उपस्थित हुए और आचार्य श्री के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया एवं अपने विचार भी व्यक्त किए।
मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा – चातुर्मास स्थिरता का काल है व शेष काल यात्रा का। चातुर्मास ज्ञान विकास का एक अच्छा समय है। कितना धार्मिक साहित्य हमे उपलब्ध है उसका स्वाध्याय हो। जयाचार्य द्वारा लिखित तीर्थंकर स्तुति चौबीसी सीखने का क्रम भी अच्छा है, यह सिर्फ तीर्थंकरो की स्तुति नहीं बल्कि तत्वज्ञान, साधना व आराधना की बात का भी समावेश इसमें किया गया है। इस वर्ष तो विशेष रूप से इसके स्वाध्याय का लक्ष्य श्रावक समाज को दिया गया है। प्रतिदिन एक एक ढाल का भी स्वाध्याय हो तो चौबीस दिनों में सभी तीर्थंकरों की ढालें हो जाती है। चातुर्मास के समय में साधु-साध्वियां भी जो आगम का कार्य से जुड़े हुए है विशेष रूप से कार्य को पूरा करने का लक्ष्य रखे।
गुरुदेव ने आगे फरमाया की ज्ञान के बाद दर्शन का स्थान है। सम्यक्त्व हमारा पुष्ट रहे। सम्यक्त्व के प्रति व केवली प्रज्ञप्त वाणी व सिद्धान्तों के प्रति हमारी श्रद्धा पुष्ट बनती रहे। जो जिनेश्वर द्वारा प्रवेदित है वही सत्य है। केवलीवाणी को व यथार्थ के स्वीकरण को अनाग्रह से समझने का प्रयास करें। साथ साथ क्रोध, मान, माया, लोभ रूपी कषाय भी प्रतनू पड़ें। इस चातुर्मास में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की विशेष साधना, आराधना का लक्ष्य रहे।
प्रसंगवश आचार्य प्रवर ने उल्लेख करते हुए फरमाया की अनेकों ऐसे श्रावक श्राविकाएं है जो चातुर्मास काल में कई वर्षों से सेवा कर रहे है। कई शेष काल में भी सेवा करते है, किन्तु भीखम चंद जी नखत एक विरले श्रावक है। प्रायः बारह मास यह गुरुकुलवास में ही रहते है। मानों यही इनका हेडक्वोटर है। घर परिवार सब होते हुए भी इतना सेवा करना अपने आप में विशेष बात है। कार्यक्रम में वरिष्ठ श्रावक श्री भीखमचंद जी ने जैसे ही पूज्य प्रवर से दीक्षा के लिए निवेदन किया तो गुरुदेव ने सहर्ष उन्हें साधु प्रतिक्रमण सीखने का आदेश फरमाया।
कार्यक्रम में आज अखिल भारतीय तेरापंथ किशोर मंडल के 19 वें राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारंभ हुआ। मुनि योगेश कुमार जी ने वक्तव्य दिया। श्री नीलेश बाफना, श्री अर्पित नाहर, श्रीमती निधि सेखानी, श्री अमित सेठिया ने अपने विचार रखे। उपासकों व महिला मंडल ने समूह गीत का संगान किया।