-इतिहास, दर्शन व मर्यादा से जानें तेरापंथ को : 11वें तेरापंथाधिशास्ता महाश्रमण
-मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी के उद्बोधन से जनता हुई लाभान्वित
-स्थापना दिवस के अवसर पर गुरुमुख से नौनिहालों ने स्वीकारी मंत्र दीक्षा
सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 21 जुलाई ।:
सिल्कसिटी व डायमण्ड सिटी के रूप में प्रख्यात गुजरात का सूरत शहर को आध्यात्मिकता से आलोकित बनाने के लिए पधारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में गुरु पूर्णिमा के दिन 265वें तेरापंथ स्थापना दिवस का भव्य रूप में समायोजन हुआ।
आध्यात्मिक सुगुरु की मंगल सन्निधि में यह आयोजन भी आध्यात्मिकता से ओतप्रोत रहा। इस अवसर पर उपस्थित जनमेदिनी को जहां आचार्यश्री की मंगलवाणी से पावन प्रेरणा प्राप्त हुई, वहीं मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी के वचनों के श्रवण का लाभ भी प्राप्त हुआ। सूरत शहर व आसपास के तेरापंथी नौनिहालों ने इस अवसर पर अपने आराध्य के मुख से मंत्र दीक्षा स्वीकार कर इस स्थापना दिवस को आध्यात्मिक रूप में मनाया।
भगवान महावीर युनिवर्सिटी में वर्ष 2024 का चतुर्मास करने के उपस्थित जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में रविवार को आषाढ़ी पूर्णिमा (गुरुपूर्णिमा) के दिन तेरापंथ धर्मसंघ के 265वें स्थापना दिवस का कार्यक्रम भी समायोजित हुआ। भव्य एवं विशाल महावीर समवसरण में भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग नौ बजे ही पधार गए।
आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन से पूर्व साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने तेरापंथ के इतिहासों का वर्णन किया तो मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने तेरापंथ धर्मसंघ के पूर्ववर्ती विशिष्ट संतों के जीवन आदि का वर्णन किया।
तदुपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अनुशास्ता महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित विशाल जनमेदिनी को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ का 265वां स्थापना दिवस का प्रसंग है। आषाढ़ी पूर्णिमा का दिन है।
चातुर्मास लग जाने के बाद का पहला दिन। आषाढी पूर्णिमा हमारे धर्मसंघ के ऐतिहासिक दृष्टि से उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना भारत के लिए 15 अगस्त का दिन होता है। 15 अगस्त भारत के स्वतंत्रता का दिवस है तो तेरापंथ के लिए आषाढ़ी पूर्णिमा स्थापना का दिवस है। एक स्वतंत्र पंथ के प्रारम्भ का दिन है। जिस प्रकार 26 जनवरी प्रतिष्ठा को प्राप्त है, उसी प्रकार माघ शुक्ला सप्तमी तेरापंथ का विशिष्ट दिन है। हमारे धर्मसंघ को आज 264 वर्ष सम्पन्न हो रहे हैं।
तेरापंथ के नाम में एक ओर तेरह की संख्या का योग है तो दूसरी ओर जोधपुर के एक सेवक जाति के द्वारा रचे गए दोहा भी आधार बन गया। उद्गम तो सेवक जाति द्वारा हो गया तो व्यवहार के रूप में हमें उनका भी आभार मानना चाहिए। परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु स्वामी के पास यह बात पहुंची तो उन्होंने उदारता दिखाते हुए पट्ट उतरे और उसका अर्थ करते हुए कहा कि हे प्रभो! यह तेरा पंथ। इस वाक्य में भगवान महावीर के प्रति आस्था व समर्पण का भाव भी अभिव्यक्त होता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि मेरा ऐसा मानना है कि परम वंदनीय आचार्यश्री भिक्षु स्वामी ने चैत्र शुक्ला नवमी जैसी प्रतिष्ठित तिथि को अभिनिष्क्रमण किया तो आषाढ़ी पूर्णिमा जैसी ऐतिहासिक तिथि को तेरापंथ की स्थापना की। मेरा अनुमान है कि इन तिथियों के चयन के पीछे शुभ मुहूर्त अथवा उत्तम तिथियों का विचार किया था। संभवतः मैंने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के भाषण में सुना था कि संभवतः दो हजार वर्ष तक तेरापंथ धर्मसंघ का कोई बाल बांका नहीं कर सकता। उन्होंने अच्छे दिन व मुहूर्त का ध्यान कर अभिनिष्क्रमण किया और अच्छे मुहूर्त में तेरापंथ की स्थापना की।
तेरापंथ को समझने के लिए आदमी को पहले तेरापंथ के इतिहास को पढ़ने की आवश्यकता होगी। उसके बाद आदमी तेरापंथ के दर्शन और तेरापंथ की मर्यादा व्यवस्था का अच्छा अध्ययन करे तो तेरापंथ को विस्तारपूर्वक समझा जा सकता है। महामना आचार्यश्री भिक्षु स्वामी व चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के ग्रंथों के माध्यम से भी तेरापंथ को जाना जा सकता है। आज का दिन धर्मसंघ के लिए महत्त्वपूर्ण है।
हमारे पूर्वाचार्यों ने धर्मसंघ की कितनी सेवा की। नवमें आचार्यश्री तुलसी ने साधिक साठ वर्षों तक धर्मसंघ की सेवा की। उनके काल में अनेक नवीन उन्मेष आए। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने भी धर्मसंघ की सेवा की। हमारा धर्मसंघ तेजस्वी बना रहे, ऐसा प्रयास होना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने अपने दैनिक कार्यक्रमों में उपस्थिति व अपने व्याख्यान के समय आदि का वर्णन करते हुए सूरत चतुर्मास के उपरान्त आगे के यात्रा पथ की जानकारी भी दी।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवृंद व मुनिवृंद ने इस अवसर पर पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा पूज्य सन्निधि में आयोजित मंत्र दीक्षा कार्यक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश डागा व तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री सौरभ पटावरी ने अपनी अभिव्यक्ति दी।
तेरापंथ के नन्हें-मुन्हें बच्चों ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तदुपरान्त आचार्यश्री ने समुपस्थित सैंकड़ों नन्हें-मुन्हें बच्चों को मंत्र दीक्षा प्रदान करने के साथ ही बच्चों से प्रश्नोत्तर करते हुए विविध प्रेरणाएं प्रदान कीं तो गुरु की भावी पीढ़ी पर बरसती कृपा को देख पूरी जनमेदिनी भावविभोर नजर आ रही थी। राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त दिव्यांग भावेश भाटिया ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री के साथ उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने स्थान पर खड़े होकर संघगान किया l