आत्मस्पर्शी चातुर्मास 2024
रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 21 जुलाई। केंद्र में गुरू तो जीवन शुरू विषय पर बोलते हुए जैन दादाबाड़ी में आत्मस्पर्शी चातुर्मास 2024 के अंतर्गत चल रहे प्रवचन श्रृंखला के दौरान रविवार को गुरू पूर्णिमा के अवसर पर दिर्घ तपस्वी प.पू. श्री विरागमुनि जी म.सा. ने कहा कि सांसारिक दुनिया को छोड़कर जो गुरू के चरणों में जाता है, उसका कल्याण अवश्य होता है। आज लोग अपनी मनमर्जी से जीवन जी रहे है और सभी स्वतंत्र होकर जीना चाहते है। गुरू तो बहुत दूर की बात है, लोग तो माता-पिता के साथ रहना पसंद नहीं करते है।
उन्हें अभिभावकों के साथ रहना बंधन लगता है, तब वे कहां गुरू की मानने वाले है। लेकिन यह कोई बंधन नहीं है, गुरू के होने से जीवन मर्यादित और अनुशासित हो जाता है और जो इसे बंधन मानकर अपनी मनमर्जी से जीते है, वे जानवर के समान जीवन जीते है। आप किसी से भी पूछ लीजिए कि आपको मोक्ष मार्ग कैसे मिलेगा तो गुरू के पास जाने का ही जवाब मिलेगा। जबकि आज आप अपनी मर्जी से जीवन जी रहे हो और पाप चढ़ने के बाद आप गुरू के पास जाओगे तो आपको मोक्ष की राह बहुत ही कठिन लगेगी।
गुरू भगवान का रूप होता है और शिष्य गुरू से ज्ञान प्राप्त करता है लेकिन आज परिस्थिति कुछ और ही है। आज शिष्य जरा सा ज्ञान पाकर अपने आप को ज्ञानी समझता है और ऐसा होने पर केवल वह विनाश की ओर अग्रसर होता है। गुरू को हरा दे वह मोहिनी कर्म में फंस जाएगा लेकिन गुरू से जो हार जाए वह मोहिनी कर्म से जीत जाएगा। गुरू को केंद्र में रखकर जिसने अपनी राह आगे बढ़ाई उसके जीवन का कल्याण ही हुआ है।
इस चातुर्मास हमें गुरू की कृपा से जीवन की दिशा और दशा दोनों बदलनी है। एक जिज्ञासु ने गौतम स्वामी से पूछा कि आप भगवान को कब याद करते हो, सुबह कि शाम तो उन्होंने कहा मैं सुबह भी नहीं करता और शाम को भी नहीं करता। जिज्ञासु ने कहा कि आपसे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी तो उन्होंने कहा कि हमें प्रभु को मन में ऐसे बसा लेना है कि हमें उन्हें कभी याद करने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए।
मुनिश्री ने आगे कहा कि कई बार जो काम गुरु की उपस्थिति नहीं करा पाती है, वह काम गुरु के आशीर्वाद से ही हो जाता है। हर बार गुरु प्रत्यक्ष हो यह जरूरी नहीं है। गुरु पर आपकी आस्था होनी चाहिए। गुरु के प्रति आस्था, श्रद्धा और समर्पण नहीं हो, तो आपको आशीर्वाद भी नहीं मिल सकता है। आशीर्वाद के बिना जीवन में गुर का होना या नहीं होना एक बराबर है। गुरु का केवल ज्ञानवान होना आवश्यक नहीं है, गुरु के प्रति हमारे दिल में श्रद्धा का होना, आस्था का होना, समर्पण का होना आवश्यक है। गुरु पूर्णिमा एक आध्यात्मिक पर्व है इस दिन गुरु की पूजा की जाती है।
गुरु पूजा का अर्थ है गुरु की आज्ञा का पालन करना एवं गुरु के उपदेशों का जीवन में आचरण करना। उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमने ये जानना है कि गुरु कौन होते हैं, क्या करते हैं, गुरु क्यों बनाए जाते हैं, गुरु किसे कहते हैं। गु का अर्थ है अंधकार और रू का अर्थ है रोकने वाला। जो अज्ञान रूपी अंधकार को रोकते हैं वे गुरु कहलाते हैं, और जो महाव्रत धारी, धैर्यवान, संयम में स्थिर रहने वाले, धर्म का उपदेश देने वाले और जो खुद भी संसार सागर से पार हैं और शरण में आए हुए लोगों को भी संसार सागर से पार लगाने की समर्था रखते हैं वो होते हैं गुरु।
उन्होंने कहा कि चातुर्मासिक पर्व एक आत्मा के कलिमल को धोने का पर्व है। जिस प्रकार वर्षा होने से गली, मोहल्ले की सफाई होती है ठीक उसी प्रकार वर्षा वास से मानव मन की सफाई हो जाती है। उसी प्रकार धर्म आराधना करने से मानव मन की सफाई विषय विकारों की गंदगी सत्संग रूपी वर्षा से धूल जाती है। मोर जब गाता है, नाचता है तो सब को प्रिय लगता है इसी प्रकार एक आत्मार्थी को सत्संग रूपी गंगा में डुबकी लगाना प्रिय लगता है।
रविवारीय संस्कार शिविर में बच्चों को बताए परिजनों के प्रति उनके कर्तव्य
गुरू पूर्णिमा के अवसर पर बच्चों के लिए रविवारीय संस्कार शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें उनका परिजनों के प्रति उनके कर्तव्यों से परिचय कराया गया। मुनिश्री ने बच्चों को बताया कि सबसे पहले हमें अपने परिजनों का सहयोग करना है, बड़ों का आदर करना है क्योंकि घर में सबसे पहले माता-पिता भगवान का रूप होते है।
इसके बाद हमें पढ़ाई पर पूरा फोकस करना है क्योंकि जीवन में सफल होने की सबसे पहली सीढ़ी शिक्षा है। साथ ही हमें अच्छा भोजन लेना है और भोजन हमेशा पौष्टिक होना चाहिए क्योंकि इससे हमें ताकत मिलेगी और शरीर भी स्वस्थ रहेगा। हमें दोस्ती में हमेशा सावधान रहना चाहिए, बहुत ही सोच-समझकर मित्र बनाना चाहिए और कोशिश करना चाहिए कि हम कल्याण मित्र ही बनाए। हमें बीमारी के समय शांति बनाए रखना चाहिए क्योंकि बीमारी से डरोगे तो वह आप पर हावी होती चली जाएगी इसलिए हमें अपने आप को नियंत्रित रखना होगा।
हमें सभी की मदद करना है और कभी पीछे नहीं हटना है क्योंकि दूसरों की मदद करने वाले बच्चे सभी को पसंद होते है। सगे-संबंधी और सभी के साथ हमें एक भरोसा कायम करके चलना होगा क्योंकि इससे आपका भविष्य बेहतर हो जाएगा। भविष्य के लिए हमें सकारात्मक सोच रखना है और इसी के साथ हमें आगे बढ़ना है। दूसरों की तरक्की में हमें उनके साथ खुशियां बांटना चाहिए क्योंकि अगर आपको जीवन में तरक्की चाहिए तो आपको दूसरों की खुशी में खुश रहना सीखना होगा। हमें अपने जीवन में पाप से दूर रहना है, पाप का डर हमारे अंदर सदैव रहना चाहिए। व्यक्तिगत जीवन में हमें धार्मिक रहना है और भगवान पर हमें पूर्ण विश्वास होना चाहिए।
श्री ऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया और कार्यकारी अध्यक्ष अभय कुमार भंसाली ने बताया कि आत्मस्पर्शी चातुर्मास 2024 के अंतर्गत गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर पांच ज्ञान की बोली हुई, जिसमें प्रथम मतिज्ञान का लाभ श्रीमान अमरचंद जी पारसमल जी उज्जवल जी झाबक परिवार को मिला। द्वितीय श्रुत ज्ञान का लाभ श्री नैवेद्य परिवार को, तृतीय अवधि ज्ञान का लाभ श्रीमती चुकी बाई, चंदनमल जी प्रकाशचंद जी सुराना परिवार, चतुर्थ मनः पर्याय ज्ञान का लाभ श्री सुमीत ग्रुप परिवार को और पंचम केवल ज्ञान का लाभ श्रीमती संपत बाई मोतीलाल जी संतोष जी दुग्गड़ परिवार को मिला। इसी क्रम में चातुर्मासिक सूत्र बोहराने का लाभ श्रीमती हेमीबाई पुखराज जी जसराज जी अंकित जी लूनिया परिवार को मिला जिसकी भक्ति रात 8 बजे दादाबाड़ी प्रांगण में हुई।
आत्मस्पर्शी चातुर्मास समिति 2024 के अध्यक्ष पारस पारख और महासचिव नरेश बुरड़ ने बताया कि दादाबाड़ी में सुबह 8.45 से 9.45 बजे मुनिश्री का प्रवचन होगा। आप सभी से निवेदन है कि जिनवाणी का अधिक से अधिक लाभ उठाएं।