हमें धर्म पर सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए तभी हम सच्चा ज्ञान प्राप्त कर पाएंगे – जैन मूनि

हमें धर्म पर सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए तभी हम सच्चा ज्ञान प्राप्त कर पाएंगे – जैन मूनि

शीतकालीन वाचना प्रारंभ एवं कलश स्थापना संपन्न

बिलासपुर शीतकालीन वाचना का शुभ प्रसंग जैन धर्मावलंबियों के लिये आरंभ हुआ। शुक्रवार को प.पू.मुनि 108 श्री सुयश सागरजी महाराज एवं प.पू. मुनि 108 श्री सद्भाव सागरजी महाराज का प्रवचन हुवा। प्रवचन में सकल जैन समाज के श्रावक श्राविका बड़ी संख्या में उपस्थित थे ।

मुनिश्री ने सुबह प्रश्नोत्तर रत्न मालिका पर प्रवचन दिए जिसमें बताया कि स्त्रियों के 64 कलाएं और पुरुषों में 72 कलाएं होती हैं जो रोगी है वही बनता है मिथ्या दृष्टि सम्यक दृष्टि बनता हो वे रोगी होने का मूल कारण तत्व ऊंची होना है । जब जीव को संसार इंद्रजाल की तरह दिखता है तब उसकी रूचि आत्म स्वरूप की ओर होती है ।

भोगी को भोग से रोग है किंतु भोगी को भी एक वैराग जरूर आया होगा पर उसने उसे घोषित नहीं किया । अपने आप को अधूरा देखने से पूरा होने की संतुष्टि नहीं होती और अशांति होती है । जो सच है वह भगवान ने कहा है ऐसा या जो भी भगवान ने कहा है वह सच हो ऐसा नहीं है दुख आत्मा में नहीं है ।
किसी ने दोपहर 2:30 पर तत्वार्थ सूत्र जी ग्रंथ की वाचना प्रारंभ की जिस प्रकार वैदिक धर्म में गीता का महत्व, मुस्लिमों में कुरान का महत्व और ईसाइयों में बाइबल का महत्व है, ठीक उसी तरह जनों में सीता तो आज सूत्र जी ग्रंथ को जनों की गीता कहा गया है यह ग्रंथ पहला संस्कृत भाषा का ग्रंथ है इसके पूर्व जितने भी ग्रंथ रचे गए सभी प्राकृत भाषा में ही लिखे गए है । मैं ग्रंथ सूत्रों में लिखा गया है इस ग्रंथ मे मोक्ष मार्ग क्या है उसकी प्राप्ति कैसे होती है या किस प्रकार के मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं । मुनिश्री ने बताया मोक्ष प्राप्ति समय दर्शन के बिना नहीं हो सकती और सम्यक दर्शन की प्राप्ति हमें सच्ची श्रद्धा और सदुपदेश के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है । हमें धर्म पर सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए तभी हम सच्चा ज्ञान प्राप्त कर पाएंगे और उसे हम अपने आचरण में ला सकेंगे ।

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