सुख की प्राप्ति करनी है तो स्वयं को प्रभु चरणों में समर्पित कर दे-हरीशमुनिजी मसा… भव सुधारने है तो कषायों व इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करनी होगी- नानेशमुनिजी मसा…अम्बाजी के अंबिका जैन भवन में मुकेशमुनिजी म.सा. के सानिध्य में चातुर्मासिक प्रवचन

सुख की प्राप्ति करनी है तो स्वयं को प्रभु चरणों में समर्पित कर दे-हरीशमुनिजी मसा… भव सुधारने है तो कषायों व इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करनी होगी- नानेशमुनिजी मसा…अम्बाजी के अंबिका जैन भवन में मुकेशमुनिजी म.सा. के सानिध्य में चातुर्मासिक प्रवचन

अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ), 23 जुलाई। मन की चंचलता ही हमे विचलित कर देती है ओर कई बार धर्म पथ से भटका देती है। चंचल मन को किस तरह एकाग्र कर देव,गुरू,धर्म की भक्ति में लगाया जा सकता ये जिनवाणी श्रवण कर समझा जा सकता है।

जिनवाणी चंचल मन को एकाग्र बना साधना व स्वाध्याय से जोड़ने का कार्य करती है। जब भी मन अशांत हो तब जिनवाणी व धर्म का शरण लेना चाहिए शांति की अनुभूति होगी। ये विचार मंगलवार को पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा ने श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में समय के महत्व पर चर्चा करते हुए व्यक्त किए।

सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि जीवन में सुख की प्राप्ति करनी है तो उसे प्रभु की भक्ति में अर्पित कर देना चाहिए। आध्यात्मिक सुखों के समक्ष भौतिक सुख तुच्छ होते है। जिनवाणी हमे आध्यात्मिक सुख पाने का मार्ग दिखाती है। जिनवाणी श्रवण कर उसे जीवन में उतारने वाले को भौतिक सुखों में आनंद महसूस नहीं होता ओर वह तप,त्याग व साधना के मार्ग पर बढ़ता जाता है।

उन्होंने जैन रामायण का वाचन करते हुए भी विभिन्न प्रसंगों की चर्चा की। युवा रत्न श्री नानेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि युद्ध जीत लेने वाला विजेता नहीं होता है बल्कि वास्तविक विजेता तो वह होता है जो अपने कषायों व इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता है। यदि हम अपना यह भव व आगे के भव सुधारना चाहते है तो हमारा लक्ष्य सांसारिक लड़ाईयां जीतना नहीं बल्कि अपने कषायों व इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना होना चाहिए।

मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने भगवान महावीर की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र के साथ वर्णिम सुखविपाक सूत्र व दुःखविपाक सूत्र के दस-दस अध्यायों में से सुखविपाक सूत्र के पहले अध्याय का वर्णन शुरू करते हुए कहा कि इसमें उन दस महान आत्माओं का वर्णन है जो सुखपूर्वक मुक्ति को प्राप्त कर गए।

धर्मसभा में प्रार्थनार्थी श्री सचिनमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। मुनिवृन्द के दर्शनों के लिए विभिन्न स्थानों से भी श्रावकगण पधारे। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमचंद बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।

द्वय गुरूदेव जयंति के उपलक्ष्य में तेला तप 11 अगस्त से

चातुर्मास के विशेष आकर्षण के रूप में 15 अगस्त को द्वय गुरूदेव श्रमण सूर्य मरूधर केसरी प्रवर्तक पूज्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. की 134वीं जन्मजयंति एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म.सा. ‘रजत’ की 97वीं जन्म जयंति समारोह मनाया जाएगा। इससे पूर्व इसके उपलक्ष्य में 11 से 13 अगस्त तक सामूहिक तेला तप का आयोजन भी होगा। अधिकाधिक श्रावक-श्राविकाएं तेला तप करे इसकी प्रेरणा दी जा रही है। चातुर्मास में प्रत्येक रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता का आयोजन होगा। अगले रविवार को दोपहर में 64 श्लांधनीय पुरूषों के नाम पर प्रश्नपत्र होगा। चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए तय है। सूर्यास्त के बाद प्रतिक्रमण करने भी कई श्रावक आ रहे है। श्रावकों के लिए रात्रि धर्म चर्चा का समय रात 8 से 9 बजे तक तय है।

प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627

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