बिलासपुर सरकंडा जैन मंदिर शीतकालीन वाचना का शुभ प्रसंग जैन धर्मावलंबियों के लिये आरंभ हुआ। शनिवार को प.पू.मुनि 108 श्री सुयश सागरजी महाराज एवं प.पू. मुनि 108 श्री सद्भाव सागरजी महाराज का प्रवचन हुवा। प्रवचन में सकल जैन समाज के श्रावक श्राविका बड़ी संख्या में उपस्थित थे ।
शनिवार को प्रवचन में मुनिश्री सुयश सागर ने बताया प्रश्न का अभिप्राय क्या होना चाहिए अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ज्ञान का मर्म अज्ञानी होने से ज्यादा खतरनाक है, ब्रज में का अभिप्राय अतरंग में स्पष्ट होना चाहिए, शब्दों के तर शब्द में ही रहते हैं ।अनुभव के उत्तर अनुभव से वास्तविक होते हैं। शब्दों में अनेकांत होना सरल है जीवन में अनेकांत होना बहुत कठिन है, जब जीव को तत्व रूचि हो जाती है । देव शास्त्र गुरु पर आगाड़ हो जाती है तो उसकी वीतराग ताकि शुरुआत होती है रुचि पूर्वक किया गया कार्य हर क्षेत्र सफलता ही दिलाता है ।
हम प्रतिक्षण प्रति समय ध्यान करते हैं पर वह धर्म ध्यान नहीं अधूरा ध्यान होता है । एक चित्र यदि किसी भी घटना को लेकर स्पष्ट करता है तो वह हजार ग्रंथों को पढ़ने के बराबर होता है, कथा के माध्यम से बोधी समाधि की प्राप्ति होती है ज्ञान होना बड़ी बात नहीं परंतु विवेक ज्ञान होना कठिन है जो कि गुरु के उपदेश के द्वारा होता है। विवेक ज्ञान और अनुभव ज्ञान श्रेष्ठ कहे जाते हैं।
दोपहर में मुनिश्री ने तत्वार्थ सूत्र जी की क्लास मैं बताया जिसमें उन्होंने तीन बातें हर कार्य में होती हैं जब भी वह कार्य विश्वास, ज्ञान, आचरण होता है । सात तत्वों का स्वरूप समझाया और बताया हम संसार मे भ्रमण कर रहे हैं क्योंकि हमे सातों तत्व की सही समझ नहीं है ।
मुनिश्री को आहार देने का सौभाग्य महेंद्र कमलेश जैन एवम परिवार सरकण्डा वालो को प्राप्त हुआ । प्रवचन में रजनेश जैन, राजेन्द्र चौधरी, आर के जैन, सनत जैन, अनिल चौधरी, मनीष जैन, प्रमोद जैन, संध्या जैन, दीपक जैन, शारदा जैन एवम समाज के सभी वर्ग के लोग उपस्थित थे ।