श्रेष्ठ गुणस्थान पाने के लिए गुरू चरणों में समर्पित होकर करे साधना- आचार्य सुंदरसागर…. सुख पाने के लिए सोच को बनाना होगा सकारात्मक- आर्यिका सुलक्षणमति

श्रेष्ठ गुणस्थान पाने के लिए गुरू चरणों में समर्पित होकर करे साधना- आचार्य सुंदरसागर…. सुख पाने के लिए सोच को बनाना होगा सकारात्मक- आर्यिका सुलक्षणमति

भीलवाड़ा(अमर छत्तीसगढ) ,27 जुलाई। चातुर्मास में हमारा लक्ष्य गुरू चरणों में समर्पित होकर साधना करते हुए अपने गुण स्थान को उपर उठाना होना चाहिए जो जीवन के अंत में हमे मोक्षमार्ग की तरफ ले जाकर एक दिन मोक्ष के अनंत सुख की प्राप्ति करा सकती है। समपर्ण भाव के बिना साधना का सुख नहीं मिल सकता।

जिसका मन संयम साधना में लग जाता है उसे फिर सांसारिक कार्यो में आनंद नहीं आता है। ये विचार शहर के शास्त्रीनगर हाउसिंग बोर्ड स्थित सुपार्श्वनाथ पार्क में श्री महावीर दिगम्बर जैन सेवा समिति के तत्वावधान में चातुर्मासिक(वर्षायोग) प्रवचन के तहत शनिवार को राष्ट्रीय संत दिगम्बर जैन आचार्य पूज्य सुंदरसागर महाराज ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि मोह एवं योग से हमारे भाव बनते है ओर वहीं दशा हमारा गुणस्थान होती है। हमारे भाव पावन ओर निर्मल रहे तो गुणस्थान उपर ले जाएंगे ओर यदि भाव मोह,कषाय,राग,द्धेष में ही लीन रहे तो गुणस्थान का पतन होकर हमारी दुर्गति हो जाएगी। गुणस्थान श्रेष्ठ होने पर जीवात्मा को सद्गति प्राप्त हो सकती है।

आचार्यश्री ने कहा कि हम प्रवचन सुनने तो आते है लेकिन उन्हें आत्मसात करने का पूरा प्रयास नहीं करते है। जो प्राणी जिनवाणी को आत्मसात कर लेता है उसका यह भव ओर आने वाले भव भी सुधर जाते है। ऐसे में सभी को प्रयास करना चाहिए कि चातुर्मास में परमात्मा प्रभु के संदेश श्रवण करने का अवसर नहीं छोड़े। जिनवाणी सुनने का अवसर हमारी पुण्यवानी से ही प्राप्त होता है।

प्रवचन में पूज्य आर्यिका माताजी सुलक्षणमति ने कहा कि संसार में प्रत्येक प्राणी खुद को दुःखी मानते हुए सुख पाने के लिए भागदौड़ कर रहा है जबकि सुख तो बाहरी जगत में नहीं बल्कि अपने भीतर है जिन्हें आत्मचिंतन से ही जान पाएंगे। सुख पाने के लिए अपने चिंतन को संकीर्णता ओर नकारात्मकता के दायरे से बाहर निकाल सकारात्मक बनाना होगा। जीवन में पॉजिटिव सोच रख सुख पाना देव,शास्त्र ओर गुरू की शरण से ही संभव है। गुरू ही होता है जो शास्त्र के मर्म को हमारे मन मस्तिष्क तक पहुंचा हमारी सोच को सकारात्मक व पावन बनाता है। गुरू की उपेक्षा करके जीवन में सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती है। धर्मसभा का संचालन सुरेंद्र काला ने किया।

प्रवचन सुनने के लिए उमड़ रहे श्रावक-श्राविकाएं

राष्ट्रीय संत दिगम्बर जैन आचार्य पूज्य सुंदरसागर महाराज के भीलवाड़ा चातुर्मासिक आगमन के बाद से ही उनके मुखारबिंद से जिनवाणी श्रवण करने के लिए प्रतिदिन सैकड़ो श्रावक-श्राविकाएं उमड़ रहे है। शहर के विभिन्न क्षेत्रों से प्रवचन लाभ पाने के लिए श्रावक-श्राविकाएं सुपार्श्वनाथ पार्क पहुंच रहे है।

आचार्यश्री धर्म के मर्म को समझाने के साथ व्यवहारिक जीवन से जुड़ी समस्याओं की चर्चा करने के साथ उनका समाधान भी बताते है। श्री महावीर दिगम्बर जैन सेवा समिति के अध्यक्ष राकेश पाटनी ने बताया कि धर्मसभा के प्रारंभ में श्रावकों द्वारा पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट किया गया। शाम को शंका समाधान, महाआरती, धार्मिक कक्षा आदि का आयोजन हुआ जिनमें बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने शामिल होकर अपनी शंकाओं का समाधान पाने के साथ ज्ञान में अभिवृद्धि की।

समिति के मीडिया प्रभारी भागचंद पाटनी ने बताया कि वर्षायोग के नियमित कार्यक्रम श्रृंखला के तहत प्रतिदिन सुबह 6.30 बजे भगवान का अभिषेक शांतिधारा, सुबह 8.15 बजे दैनिक प्रवचन, सुबह 10 बजे आहार चर्या, दोपहर 3 बजे शास्त्र स्वाध्याय चर्चा, शाम 6.30 बजे शंका समाधान सत्र के बाद गुरू भक्ति एवं आरती का आयोजन हो रहा है।

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