सूरत (अमर छत्तीसगढ) 27 जुलाई। हमारा जीवनचक्र निरन्तर गतिमान है। जीवन की गति सुधारनी है तो धर्म का शरणा लेना होगा। धर्म की बात सुनने ओर करने के लिए धर्मस्थान पर ही आना होगा। धर्म की साधना किए बिना जीवन सफल नहीं हो सकता। जिस पर धर्म की कृपा हो जाती है उसके जीवन की सारी बाधाएं समाप्त हो जाती है।
ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने शनिवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि धर्म को समझे बिना हम चौरासी लाख यौनियों में भटकते रहेंगे। धर्म का वास्तविक स्वरूप समझ लिया तो जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल सकती है। जीवन में कभी अमीर होने या अधिक धन होने पर अभिमान नहीं करना चाहिए।
धन आने से भी अधिक रास्ते धन जाने के होने से करोड़पति कब रोडपति बन जाता इसका पता ही नहीं चलता है। रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि धर्म की शरण हमेशा सुखकारी होती है। धर्म इस भव में भी सुख देने के साथ हमारे आगे के भव भी सुधार देता है। जीवन का लक्ष्य प्राप्त करना है तो पकड़े रहने की बजाय छोड़ना सीखना होगा। भौतिक सुखों को छोड़े बिना आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति नहीं हो सकती है।
उन्होंने कहा कि आंखों के माध्यम से कर्म बंध भी किया जा सकता है ओर कर्मो का क्षय भी हो सकता है। मर्यादा रहित जीवन दुःख का कारण बन जाता है। जीवन में धोवन पानी उपयोग, रात्रि भोजन त्याग, जमीकंद का त्याग ओर ब्रह्मचर्य की पालन करना चाहिए। हमारे जिनशासन की महिमा अपरम्पार है। उन्होंने कहा कि सांसारिक जीवन में दूध गिरने पर दुख लेकिन पानी गिरने से खास फर्क नहीं पड़ता जबकि पानी की एक बूंद में असंख्य जीव होते है।
धर्म ही संसार का आधार है ओर हमे सम्यक दर्शन रखते हुए जीवन में आगे बढ़ना है। तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए बताया कि जो आत्मस्वरूप का चिंतन कर लेता है वह साधना में सफल हो जाता है। आत्मा का ज्ञान सम्यक ज्ञान है जो हमेशा हमारे साथ रहता है। धर्म आराधना करते हुए सामायिक की कमाई, प्रतिक्रमण की कमाई जितनी करनी हो कर ले ये शाश्वत है जो सदा हमारे साथ रहेगी।
उन्होंने कहा कि हम किसी को प्रवचन में आने की प्रेरणा देते है तो वचन का पुण्य होता है। हमे अपनी आत्मा की परवाह करते हुए अधिकाधिक तप त्याग व धर्म आराधना करनी है। आठ कर्म में से एक कर्म आयुष्य कर्म ऐसा है जो पूरे जीवन में एक बार बंध होता है। साध्वीश्री ने कहा कि धर्म अहिंसा में होता है।
श्रेणिक राजा के मन में रानी चेलना ने कर्म के बीज बो दिए थे। सामायिक की कमाई हमारी स्वयं की है जिसे कोई नहीं छीन सकता। हमारे पास कितनी भी संपदा हो पर हम सामायिक को नहीं खरीद सकते। प्रतिदिन पूरे परिवार के साथ प्रवचन में आकर कम से कम एक सामायिक अवश्य करनी चाहिए। विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. ने भजन नर सू नारायण की प्रस्तुति दी।
धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. एवं सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। कई श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलाल नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राकेश गन्ना ने किया। जिनवाणी श्रवण करने के लिए सूरत के विभिन्न क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं पहुंचे थे।
रविवार सुबह युवाओं के लिए साप्ताहिक कक्षा
चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है। प्रतिदिन दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक धर्म चर्चा का समय तय है। हर रविवार सुबह 7 से 8 बजे तक युवाओं के लिए एवं हर शनिवार रात 8 से 9 बजे तक बालिकाओं के लिए क्लास होगी।
चातुर्मास में बच्चों के लिए चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप 31 जुलाई से शुरू होगा। इसमें बच्चों के लिए खाने-पीने में द्रव्य मर्यादा तय होगी। पहले दिन पूरे दिन खान-पान में अधिकतम 15 द्रव्य का उपयोग कर सकंेंगे इसके बाद प्रतिदिन एक-एक द्रव्य मात्रा कम होते हुए अंतिम दिवस 14 अगस्त को मात्र एक द्रव्य का ही उपयोग करना होगा। पानी,दूध,पेस्ट व दवा द्रव्य सीमा में शामिल नहीं है।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627