आत्मवाद है जैन दर्शन का मूल सिद्धांत : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण …. आयारो आगम के श्रवण का लाभ प्राप्त करने उमड़ी भीड़….

आत्मवाद है जैन दर्शन का मूल सिद्धांत : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण …. आयारो आगम के श्रवण का लाभ प्राप्त करने उमड़ी भीड़….

-साध्वीप्रमुखाजी ने भी उपस्थित जनता को किया उद्बोधित

-बैनर, एप्लीकेशन के साथ पावस प्रवास व फड़द का हुआ लोकार्पण

सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 28 जुलाई ।

महावीर समवसरण में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को भगवान महावीर के प्रतिनिधि, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जैन दर्शन में आत्मवाद का सिद्धांत है। आत्मा अलग और शरीर अलग है, इस सिद्धांत का प्रतिपादन करती है। जैन दर्शन में आत्मा को शाश्वत माना गया है। आत्मा और शरीर की भिन्नता को स्वीकार किया गया है। आत्मा को कोई शस्त्र काट नहीं सकता।

आत्मा अछेद्य है, अदाह्य है, उसे जलाया नहीं जा सकता, आत्मा को सुखाया नहीं जा सकता, आत्मा को गीला भी नहीं किया जा सकता। हर जीव, हर प्राणी में आत्मा है। जैन दर्शन में आत्मा को अनादि अनंत माना गया है। आत्मा हमेशा से है और हमेशा रहेगी, ऐसा माना गया है। आत्मा होती है तो पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की बात भी हो सकती है। यहां बताया गया कि कई मनुष्यों को यह ज्ञात हो जाता है कि उनका पूर्वजन्म क्या था। पूर्वजन्म की स्मृति की बात सुनने को मिलती है।

पूर्वजन्म की स्मृति के तीन भेद बताए गए हैं-स्वस्मृति, तीर्थंकर भगवान से जानकारी और केवलीज्ञानी से सुनकर भी जानकारी हो सकती है। आदमी कभी पूर्वजन्म से जुड़े हुए स्थान, व्यक्ति आदि को देखकर स्वस्मृति कर लेता है और उसे अपने पूर्वजन्म की बाद याद आ जाती है। दूसरी बात बताई गई कि यदि कोई तीर्थंकर से प्रश्न करे कि मैं अपने पिछले भव में क्या था और वो बता दें तो पूर्वजन्म की जानकारी हो सकती है। तीसरी बात बताई गई कि कोई केवलज्ञानी हो अथवा किसी ने तीर्थंकर से किसी व्यक्ति के पूर्वजन्म की जानकारी प्राप्त की हो तो उसके बताने से भी पूर्वजन्म की जानकारी हो सकती है। संज्ञी के भव को ही जाना जा सकता है, असंज्ञी का भव नहीं।

आदमी को पूर्वजन्म की बात पता हो अथवा न हो, पुनर्जन्म न भी हो तो भी आदमी को अपने वर्तमान जीवन को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। बेवजह गुस्सा, बेईमानी, धोखा, हिंसा आदि कार्यों से बचते हुए इस जीवन को शांतिमय बनाने का प्रयास करे। चतुर्मास के समय में जितना धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ उठाने का प्रयास हो सके, करने का प्रयास होना चाहिए।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों द्वारा आचार्यश्री के समक्ष पावस प्रवास व फड़द लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा संयम सारथि एप्लीकेशन को भी प्रस्तुत किया गया। तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने अपनी प्रस्तुति दी। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के बैनर को अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा आचार्यश्री के समक्ष अनावरित किया गया। आचार्यश्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान के पदाधिकारीगण ने भिक्षु चरमोत्सव के बैनर को लोकार्पित किया।

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