वंदना का मुख्य फल निर्जरा- मुनि रमेश कुमार

वंदना का मुख्य फल निर्जरा- मुनि रमेश कुमार


काठमाण्डौ नेपाल (अमर छत्तीसगढ़) 30 जुलाई।

जैन परम्परा में ‘पंचाग-प्रणति’ वंदना की विधि है। पंचाग प्रणति पूर्वक की गई वंदना आध्यात्मिक , वैज्ञानिक होने के साथ साथ स्वास्थ्यवर्धक और ध्यान की दिशा को उद्घाटित करने वाली है, क्योकि इसमें विनय, नमन, और समर्पण आदि का श्रेष्ठ भाव है। पंच परमेष्ठी भगवन्तों को पंचांग प्रणति पूर्वक वंदना एक ओर नैतिक आचरण की शुद्धि का द्योतक है, वहीं दूसरी ओर श्रेष्ठ प्रकार को योग भी है , क्योंकि एड्रिनल ग्रंथि पर नियंत्रण नियंत्रण रहने से शरीर और मन का आरोग्य बना रहता है।

उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रबुद्ध सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी ने आज महाश्रमण सभागार में चल रहे “धर्म आराधना सप्ताह के अंतर्गत आज ‘वंदन से टूटे भव बंधन’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए व्यक्त किए।


मुनि रमेश कुमार जी ने आगे कहा- वंदना एक प्रवृत्ति है ।भगवान महावीर ने वंदना के चार परिणाम बताये है। वंदना का मुख्य फल निर्जरा और प्रासंगिक फल पुण्य कर्म का बंध है। इससे यह फलित होता है कि वंदना से नीच गोत्र का क्षय होता है और उच्च गोत्र का बंध। आपने चारित्रात्माओं को भाव वंदना कैसे करें ? उसकी विधि और दोष के बारे में विस्तार से समझाया।

मुनि रत्नकुमार जी ने भी इस अवसर पर पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये।

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