पृथ्वी, पानी, वायु आदि के अपव्यय से बचे मानव : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

पृथ्वी, पानी, वायु आदि के अपव्यय से बचे मानव : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

शांतिदूत ने स्थावर जीवों को भी अभयदान देने की दी पावन प्रेरणा

-खूब अच्छा विकास करे उपासक श्रेणी : आचार्यश्री महाश्रमण

सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 2 अगस्त।

चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य एवं विशाल महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को युग्रपधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करे हुए कहा कि आयारो आगम के प्रथम अध्ययन में कहा गया है कि अहिंसा की साधना के लिए यह भी जानना अपेक्षित है कि जीव कौन हैं और अजीव कौन हैं। जीवों की जानकारी नहीं होती तो जीवों के प्रति अहिंसापूर्ण व्यवहार भी कैसे हो सकता है। जैन वाङ्मय षटजीव निकाय बताए गए हैं। इन छह जीवों निकायों को जान लिया तो आदमी इनकी हिंसा से बचने का प्रयास भी हो सकता है।

जीव भी दो प्रकार के हो जाते हैं- एक वो जीव जिनका जीवन सुबोध होता है, सहजगम्य होता है और एक जीव वे भी होते हैं, जिनका प्रत्यक्ष पता नहीं चल पाता। घोड़ा, हाथी, मक्खी, मच्छर आदि जीवों का जीवन प्रत्यक्ष है, किन्तु पृथ्वीकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय आदि के जीव तो सहज दिखाई भी नहीं देते, किन्तु उनमें भी जीवत्व होता है। इस आगम में बताया गया है कि जिस जीव को सामान्य रूप से नहीं जान सकते, उन्हें शास्त्रों के आधार पर जीव मानकर उनकी हिंसा से बचने का प्रयास करें और उसके प्रति जागरूक भी रहें। परोक्ष जीवों के प्रति भी अहिंसा की भावना हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए।

आयारो आगम में कहा गया कि पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजसकाय के जीवों को भी अभयदान देने का प्रयास होना चाहिए। जहां तक संभव हो सके, साधु ही नहीं, आम आदमी को भी अपने जीवन में अदृश्य जीवों के हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। यह बात आवश्यक है कि जीवन चलाने के लिए आदमी को कई सारे कार्य करने होते हैं। आदमी सभी कार्य करे, किन्तु जहां तक संभव हो सके, अनावश्यक हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अनावश्यक पानी की बर्बादी न करें। स्नान, कपड़े धोने आदि में अनावश्यक जल का दोहन न हो। वनस्पतिकाय के जीवों की अनावश्यक हिंसा न हो। इसी प्रकार दिखाई नहीं देने वाले, किन्तु अस्तित्व में माने गए जीवों के प्रति भी अहिंसा के भाव को पुष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिए।

आगम पर आधारित पावन प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी द्वारा विरचित ‘चन्दन की चुटकी भली’ के माध्यम आख्यान क्रम को भी संपादित किया। मुनि मेधावीकुमारजी ने आचार्यश्री ने 15 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित होने वाले उपासक शिविर का आज मंचीय कार्यक्रम रहा। इस संदर्भ में शिविर के व्यवस्थापक श्री जयंतीलाल सुरणा व नवयुवक उपासक श्री दीक्षित बापना ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के महामंत्री श्री विनोद बैद ने इस संदर्भ में अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। इस दौरान उपासक श्रेणी की ओर से वार्षिक विवरण समर्पित की गयी।

उपासक श्रेणी को आशीष प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा उपासक श्रेणी के शिविर का यह क्रम है। परम पूजनीय आचार्यश्री तुलसी द्वारा अनेक नए उन्मेष आया था। हमारे धर्मसंघ में यह नया उन्मेष भी उनके समय ही आया था, वह आज विस्तार को प्राप्त हुआ है। उसमें और भी विस्तार हो सकता है। उपासक श्रेणी के ट्रेनिंग आदि का क्रम चलता रहे और अपनी साधना भी अच्छी चलती रहे। संथारे में पचखाना और संथारे में सहयोग देने के लिए तत्पर होना चाहिए। अच्छे तत्त्वज्ञानी, प्रेक्षाध्यानी, प्रवक्ता आदि के रूप में विकास हो। यह श्रेणी हमारे धर्मसंघ का विशेष अंग है। यह श्रेणी खूब विकास करती रहे, मंगलकामना।

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