धर्म की साधना कर जीवन को करें इच्छाओं की बेड़ियों से मुक्त- इन्दुप्रभाजी मसा….. जिनशासन की गौरवमय संस्कृति को नहीं भूले,मांगलिक सबसे अनमोल -चेतनाश्रीजी मसा

धर्म की साधना कर जीवन को करें इच्छाओं की बेड़ियों से मुक्त- इन्दुप्रभाजी मसा….. जिनशासन की गौरवमय संस्कृति को नहीं भूले,मांगलिक सबसे अनमोल -चेतनाश्रीजी मसा

गोड़ादरा स्थित महावीर भवन में चातुर्मासिक प्रवचन

सूरत(अमर छत्तीसगढ) , 2 अगस्त। कर्म बड़े बलवान होते है वह कभी किसी को नहीं छोड़ते है ओर प्रत्येक प्राणी को अपने कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है। संसार एक झुला है जिसमें कभी उपर कभी नीचे झुलते रहते है। संसार रूपी झूले से मुक्त होने के लिए कर्म निर्जरा करनी होगी। जीवन कभी इच्छाओं का गुलाम नहीं होना चाहिए। बेड़ी चाहे लोहे की हो या सोने की वह खराब ही होती है ओर कोई भी स्वयं को बेड़ी में नहीं देखना चाहता। हम धर्म की साधना करके इच्छाओं की बेड़ियों से मुक्त हो सकते है।

ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने शुक्रवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।

धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि हमे अपनी जिनशासन की गौरवमय संस्कृति को कभी नहीं भूलना चाहिए। कोई बाहर जाता है तो टाटा-बाय बाय करने की जगह णमो अरिहंताण बोलना चाहिए। जिनशासन में मांगलिक का महत्व सर्वाधिक है। मांगलिक श्रवण करने से कर्मो की निर्जरा होती है। उन्होंने कहा कि चातुर्मास में संत साध्वी किसी एक स्थान पर ठहर जिनवाणी श्रवण कराते है। ऐसे अवसर का लाभ पुण्यवानी से ही मिलता है।

इसलिए संतों की वाणी सुनने का अवसर कभी नहीं चूकना चाहिए। तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने श्रावक के 12 व्रतों में से तीसरे व्रत अचौर्य व्रत के बारे में समझाते हुए कहा कि हम कोई भी गलत कार्य करके उसे दुनिया की नजर में भले छिपा ले पर परमात्मा ओर अपनी आत्मा की नजर से नहीं छुपा पाएंगे। पांच अजीव ओर एक जीव है। अजीव जीव के काम आते है लेकिन जीव अजीव के काम नहीं आता है।

इसके बावजूद वेल्यू जीव की होती है। उन्होंने कहा कि तीर्थंकरों की जन्मभूमि भरत खण्ड रहीं है। यहां मानव जन्म पाकर भी हम अपने कर्मो की गति नहीं सुधार पाए तो जीवन सार्थक नहीं बनेगा। कर्मो की गति सुधारने का माध्यम व्रति श्रावक बनना है। धर्मसभा में रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा., सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा।

त्याग तपस्याओं का लगा ठाठ,दो श्राविकाओं के 9 उपवास

पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में चातुर्मास में तप त्याग का ठाठ लगा हुआ है। धर्मसभा में शुक्रवार को उस समय हर्ष-हर्ष, जय-जय गूंजायमान हो उठा जब दो श्राविकाओं शिमला सांखला व नविता ढाबरिया ने 9-9 उपवास के प्रत्याख्यान ग्र्रहण किए। श्राविका अनिता पानगड़िया ने 5 उपवास के प्रत्याख्यान लिए।

कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। बच्चों के चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप की आराधना भी चल रही है जिसमें 55 से अधिक बच्चें शामिल होकर द्रव्य मर्यादा की पालना कर रहे है। सामायिक की पचरंगी भी चल रही है। पाली से पधारे मानमलजी बाफना सहित अन्य अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलाल नाहर परिवार द्वारा किया गया।

संचालन अरविन्द नानेचा ने किया। प्रवचन के बाद प्रभावना वितरण के लाभार्थी श्री लूणकरण कोठारी परिवार रहा। चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है। प्रतिदिन दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक धर्म चर्चा का समय तय है। हर रविवार सुबह 7 से 8 बजे तक युवाओं के लिए एवं हर शनिवार रात 8 से 9 बजे तक बालिकाओं के लिए क्लास हो रही है।

प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627

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