हमारी आत्मा को आलोकित कर अज्ञान व अंधकार को मिटाती प्रार्थना- मुकेशमुनिजी मसा….. जिसे जिनवाणी व धर्म से प्रेम हो जाता है उसका जीवन सार्थक बन जाता – हरीशमुनिजी मसा

हमारी आत्मा को आलोकित कर अज्ञान व अंधकार को मिटाती प्रार्थना- मुकेशमुनिजी मसा….. जिसे जिनवाणी व धर्म से प्रेम हो जाता है उसका जीवन सार्थक बन जाता – हरीशमुनिजी मसा

अम्बाजी के अंबिका जैन भवन में चातुर्मासिक प्रवचन

अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ), 2 अगस्त। मानव भव को सार्थक बनाने के लिए मौजमस्ती का त्याग कर वितराग वाणी पर आस्था व श्रद्धा रखते हुए स्वयं को व्रती श्रावक बनाना होगा। जीवन में व्रतों को धारण कर पर ही साधना के मार्ग पर बढ़ पाएंगे। कई जन्मों के अनंत पुण्यों के बाद मनुष्य जन्म की प्राप्ति होती है इसलिए इसे व्यर्थ न गंवा सार्थक बनाने का मार्ग जिनवाणी बताती है।

ये विचार पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा ने शुक्रवार को श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि व्रत करने से आत्मा शुद्ध व निर्मल बनती है। शरीर चलाने के लिए क्रियाएं जरूरी है पर जीवन में कभी अपयश के भागी नहीं बने।

उन्होंने प्रार्थना के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि प्रार्थना करने से आत्मीय आनंद की अनुभूति होती है। प्रार्थना किसी को दिखाने के लिए नहीं बल्कि मन की शांति के लिए होती है। प्रार्थना हमारी आत्मा को आलोकित करते हुए हमारे अज्ञान व अंधकार को मिटा सकती है। धर्मसभा में सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि जीवन में प्रेम अनमोल है जिसकी कोई कीमत नहीं आंकी जा सकती।

प्रेम में आस्था, स्नेह व मधुरता का वास होता है। प्रेम का सम्बन्ध हमारे मन से होता है। जिनसे हम प्रेम करते है उनका कभी बुरा नहीं सोच सकते है। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति जीवन में धर्म के साथ प्रेम करते हुए अपनी आत्मा को निर्मल व पावन बना परमात्मा के पास पहुंच सकता है। जिसे जिनवाणी व धर्म से प्रेम हो जाता है उसका जीवन सार्थक बन जाता है।

धर्मसभा में युवा रत्न श्री नानेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि चातुर्मास हमारे कर्मो का हिसाब करने का श्रेष्ठ समय है। इस दौरान जप,तप व भक्ति के माध्यम से हम श्रेष्ठ कर्मो का संचय करने के साथ पाप कर्म का क्षय कर सकते है। उन्होंने कहा कि हमारे पुण्य कर्म हमे सद्गति दिलाने में सहायक बनते है। हमेशा दूसरों की सेवा व सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि श्रद्धा, विश्वास एवं प्रेम परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए है। एक के बिना दूसरा अधूरा है।

श्रद्धा व विश्वास से ही प्रेम परिपूर्ण होता है। परमात्मा के नाम की माला फेरते हुए विश्वास होने पर चमत्कार होते है ओर यदि श्रद्धा नहीं है तो माला फेरने के भी प्रभाव महसूस नहीं होंगे। जीवन में तर्क नरक का कारण बनता है तो श्रद्धा भक्ति स्वर्ग के द्वार खोलती है। हमे परमात्मा के प्रति दृढ़ आस्था व श्रद्धा रखनी चाहिए।

उन्होंने सुखविपाक सूत्र के चौथे अध्ययन सुवासकुमार का वाचन करते हुए बताया कि किस तरह उनकी आत्मा केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद निर्वाण होकर सिद्ध बुद्ध मुक्त हो जाती है। धर्मसभा में प्रार्थनार्थी श्री सचिनमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।

हर रविवार को धार्मिक प्रतियोगिता का आयोजन

चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए तय है। प्रति रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता हो रही है। चातुर्मास के विशेष आकर्षण के रूप में 15 अगस्त को द्वय गुरूदेव श्रमण सूर्य मरूधर केसरी प्रवर्तक पूज्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. की 134वीं जन्मजयंति एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म.सा. ‘रजत’ की 97वीं जन्म जयंति समारोह मनाया जाएगा। इससे पूर्व इसके उपलक्ष्य में 11 से 13 अगस्त तक सामूहिक तेला तप का आयोजन भी होगा।

प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627

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