बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ) सरकंडा जैन मंदिर शीतकालीन वाचना का शुभ प्रसंग जैन धर्मावलंबियों के लिये आरंभ हुआ। मंगलवार को प.पू.मुनि 108 श्री सुयश सागरजी महाराज एवं प.पू. मुनि 108 श्री सद्भाव सागरजी महाराज का प्रवचन एवं कई धार्मिक कार्यक्रम संपन्न हुवे। प्रवचन में सकल जैन समाज के श्रावक श्राविका बड़ी संख्या में उपस्थित थे ।
मंगलवार को प्रवचन में मुनिश्री सद्भाव सागर ने इष्टोपदेश ग्रंथ का वर्णन करते हुए बताया कि जीव और पुद्गल दोनों अलग हैं, प्रत्येक शरीर में जीव उत्पत्ति आत्मा विद्यमान है वही जीव है, बाकी सभी चीजें जो हमें दिखाई देती है वह पुद्गल है। यहां तक कि हमारा शरीर भी खुद बल्कि पर्याय है हमारी आत्मा ज्ञान दर्शन से पूर्ण है जो हमें दिखाई नहीं देती है शब्द जो हमें सुनाई देता है वह पुद्गल की पर्याय है।
इसके बाद मुनिश्री सुयश सागर ने बताया महापुरुषों को देखने मात्र से ही हमारे कल्याण नहीं होगा जब तक हम उनके गुणों को आत्मसात नहीं करेंगे कल्याण नहीं होगा इसके बाद उन्होंने बताया कि व्रतों में मूल ब्रम्हचर्य व्रत है गुप्ती तीन प्रकार की होती है मन, वचन, काया गुप्ति इसमें मनु गुप्ति ही मुख्य है मन को ही स्थिर रखकर राग द्वेष से दूर रहा जा सकता है, यदि हम वस्तु के स्वभाव को जानकर आत्मा की उज्जवलता चाहेंगे, इससे अच्छी तरह से जान लेंगे तो राग द्वेष मोह भाव से दूर रहा जा सकता है, इसे ही संयम कहते हैं। इसी से महाव्रतों का धारण किया जा सकता है जो मुनि धारण करते हैं।
आगे मुनिश्री ने बताया दृष्टि और अदृष्टी दोनों प्रकार के पदार्थ होते हैं दृष्टि जो हमें प्रत्यक्ष दिखाई देता है और अदृष्टी परोक्ष जिसे हम देख नहीं पाते, दृष्टि छोटा है और अदृश्य बहुत बड़ा है पर हम दृष्टि से ही देखते हैं।
यदि हम किसी वृक्ष से फल नहीं लेंगे तो वृक्ष फल देना बंद कर देगा, यदि हम कुएं से पानी नहीं लेंगे तो कुएं से पानी देना बंद कर देगा, उसी प्रकार सदुपयोग और दुरुपयोग दो अलग-अलग उपयोग हैं यदि हम अपना उपयोग सही और सद की ओर लगाएंगे तो हमारी स्मरण शक्ति भी बढ़ेगी और उपयोग भी अच्छा होगा ।