आज्ञा और अनाज्ञा को आगम के सूत्र के माध्यम से किया व्याख्यायित….. वनस्पति जनित पदार्थों के प्रति भी अप्रमत्त रहे मानव : आचार्यश्री महाश्रमण

आज्ञा और अनाज्ञा को आगम के सूत्र के माध्यम से किया व्याख्यायित….. वनस्पति जनित पदार्थों के प्रति भी अप्रमत्त रहे मानव : आचार्यश्री महाश्रमण

-आख्यान क्रम को भी युगप्रधान आचार्यश्री ने बढ़ाया आगे

-साध्वीवर्याजी ने भी जनता को किया उद्बोधित

सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 6 अगस्त

जन-जन का कल्याण करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2024 का चतुर्मास भारत के पश्चिम भाग में स्थित गुजरात राज्य के सूरत शहर में कर रहे हैं। सूरत शहर का यह चतुर्मास सूरत शहर की जनता के लिए ही नहीं, अपितु देश व विदेश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले श्रद्धालुओं को लाभान्वित बना रहा है। चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में विभिन्न हिस्सों से लोग यहां उपस्थित होकर चतुर्मास का लाभ उठा रहे हैं।

मंगलवार को प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में महावीर समवसरण से मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के द्वारा पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा और हिंसा की बात है। जीवों को मारना प्रमत्त योग से प्राणातिपात है। हिंसा न करना अहिंसा है। हिंसा के साथ भीतर का राग-द्वेष का भाव, प्रमाद मूल कारण बनता है। प्राणी का मरना भी हिंसा है, लेकिन पापकर्म के बंध का कारण आदमी के भीतर राग-द्वेष के भाव कारण होता है। हिंसा भी दो रूप में होती है-द्रव्यतः हिंसा और भाव हिंसा।

जिस प्रकार किसी प्राणी के पैर के नीचे दबकर मर जाने पर यदि वह आदमी अप्रमत्त है, आत्मलीन है तो प्राणी की हिंसा होने पर कर्म का बंध नहीं होता। कर्म का बंध भाव हिंसा से ही होता है। कही केवल द्रव्य हिंसा तो कही केवल भाव हिंसा और कहीं द्रव्य और भाव दोनों प्रकार की हिंसा होती है। जीव अपने आयुष्य से जी रहे हैं तो इसमें आदमी कोई दया नहीं है।

कितने जीव संसार में मरते भी हैं तो वह भी उनका आयुष्य है, हमारी ओर से किसी प्रकार की हिंसा की बात उसमें नहीं होती है। कोई जानबूझकर मारे तो वह हिंसा की बात और जो नहीं मारने का संकल्प ले लेता है, उसके उतनी सीमा तक अहिंसा होती है। कोरी द्रव्य हिंसा, कोरी भाव हिंसा और उभय हिंसा।

वनस्पतिकाय का जगत है। इतने पेड़-पौधे, काई आदि भी होते हैं। वनस्पतिकाय के प्रति जो अगुप्त वह अनाज्ञा ही है। राग-द्वेष के भाव से युक्त प्राणी अगुप्त होता है। आगम में सूक्ष्म तत्त्वों का अवबोध को आज्ञा बताया गया है। आगम अपने आप में आज्ञा है। जो वनस्पति से बनी जीवों में अगुप्त होता है, वह अनाज्ञा में होता है। आदमी को छह प्रकार के जीवों को जानकर उनकी हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए।

हमारे यहां यह प्रेरणा दी गयी है, मुमुक्षुओं को पहले नव तत्त्व की जानकारी प्रदान करने और उसका परीक्षण होने के बाद ही दीक्षा होनी चाहिए। आदमी को वनपस्ति जनित पदार्थों के प्रति भी समता, अनासक्ति और अप्रमत्तता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित पुस्तक ‘चन्दन की चुटकी भली’ के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। कार्यक्रम में साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी का भी उद्बोधन हुआ।

Chhattisgarh