रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 7 अगस्त
स्थानीय पुजारी पार्क के मानस भवन में गत एक पखवाड़े से चल रहे नियमित प्रवचन में मुनि शीतलराज ने कहा धर्म का अर्थ कर्तव्य आत्मा की शुद्धि का साधन है। अहिंसा, तप, संयम, त्याग धर्म के लक्षण है। जिसमें चार द्वार क्षमा, संतोष, सरलता एवं नम्रता है। इसके तीन रत्न सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन एवं सम्यक चरित्र है। धर्म गुरु आचार्य उपाध्याय, साधू-साध्वी धर्म गुरु है। वहीँ अहिंसा, तप, आचार्य, ब्रम्हचर्य एवं अपरिग्रह का पालन सुधर्म है।
मुनि शीतलराज नें आज प्रवचन में कर्मों की विशद व्याख्या, कर्म बंधन, निर्जरा संवर सामयिक पर भी सारगर्भित जानकारी दी। उन्होंने मन, वचन, काया पर बोलते हुए कहा- काय का अर्थ है काया- शरीर जिस जीव का शरीर बना वो पृथ्वी का बना पृथ्वीकाय कहलाता है।
मुनि शीतल राज ने कहा कर्म ज्ञान विश्व एवं हमारे जीवन में होने वाली अच्छी बुरी घटनाओं का मूल कारण कर्म में है। सभी जीवमन, वचन, काया द्वारा कर्म बंधन करते रहते है। शुभकर्म एवं अशुभ कर्म बंधते ही रहते है। शुभ कर्म से सुख मिलता है, अशुभ कर्म दुःख देते है। कर्म आठ प्रकार के होते है वैसे भी ज्ञान प्राप्ति में बाधक पांचो बातो अभिमान, क्रोध, प्रमाद, रोग, आलस्य को ध्यान रखे।
निर्जरा पर बोलते हुए मुनिश्री नें कहा संचित कर्मों को खपाने की क्रिया का अर्थ है निर्जरा पुराने कर्म जल जाए, सूख जाये, खाली हो जाए उसे निर्जरा कहते है। उन्होंने संवर एवं निर्जरा का दैनिक जीवन में अभ्यास करने की बात कही। हम सामयिक द्वारा पापों के आश्रव को रोककर संवर की आराधन कर सकते है तथा सामयिक काल में स्वाध्याय करने से पापों की निर्जरा भी होती है। समभाव को सामयिक कहते है।
राग द्वेष में सम रहना सीखने की प्रक्रिया ही सामायिक है। सम्पूर्ण अशुद्ध प्रवित्तियों का त्याग करना तथा सांसारिक बातों का त्याग कर कम से कम निर्धारित समय तक आत्मा का ध्यान करना ही सामयिक है। क्रोध पर उन्होंने कहा मानव में अहंकार मैं एवं मेरा इसमें ठेस लगती है। क्रोध आता है, लक्ष्मी चली जाती है। दो तरह के ध्यान स्वाध्याय एवं पराध्यान हो। उन्होंने कीचड़ में खिलने वाले कमल पर भी बताया।
मन, वचन, काया के सामयिक के 32 दोषों को भी श्रावक-श्राविकाओं को जानने की बात कही। सामयिक व्रत करने वाले साधकों को इन बत्तीस दोषों से रहित होकर शुद्ध सामयिक व्रत करने की बात कही। वैसे भी ज्यादातर अज्ञान अवस्था में धर्म ध्यान कम होता है।
कभी भी संसार के दुखों से घबराये नहीं। संसार के दुखों को समता भाव से देखे। यदि धर्म के मार्ग में नहीं चलोगे गिरते जावोगे महापुरुषों की वाणी को हृदय में उतारे। आत्म चिंतन से हमें कुछ न कुछ मिलता है, धर्म में बहुत शक्ति है। ज्ञान दर्शन अमूल्य रत्न है। निस्वार्थ भाव से धर्म की आराधना करे, तभी लोक परलोक सही होगा।
चातुर्मास समिति अध्यक्ष सुरेश सिंघवी ने उपवास करने वालों की जानकारी की संवर में भाग लेने वालों का चातुर्मास लाभार्थी संचेती परिवार के प्रमुख सी.ए. दीपेश संचेती नें संवर में भाग लेने वालों का बहुमान किया। वही संस्था में महिला पुरुष इसमें रोज भाग ले रहे है। आज भी सुबह शाम मुनि शीतलराज से मांगलिक लेने वालों की लगभग पाँच सौ रही। आगामी 11 अगस्त, रविवार को दया दिवस रखा गया है। शीतलराज के चातुर्मास में देश के कई प्रदेश के लोग पहुँच रहे है। आने वालों के लिए पर्याप्त आवास भोजनशाला को व्यवस्था की गई है।