कांटो से भरा सत्य का मार्ग फिर भी जीवन में कभी नहीं छोड़े उसका साथ- मुकेशमुनिजी मसा…. बुढ़ापे में नहीं हो पाएगा धर्म, जब तक शरीर में शक्ति कर ले धर्म साधना-सचिनमुनिजी मसा

कांटो से भरा सत्य का मार्ग फिर भी जीवन में कभी नहीं छोड़े उसका साथ- मुकेशमुनिजी मसा…. बुढ़ापे में नहीं हो पाएगा धर्म, जब तक शरीर में शक्ति कर ले धर्म साधना-सचिनमुनिजी मसा

अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ), 7 अगस्त। सत्य के मार्ग पर चलने वाले का जीवन बड़ा कठिन व कष्टप्रद होता है लेकिन फिर भी वह इसका आलंबन नहीं छोड़ते है। जो सत्य के मार्ग पर चलते है उन्हें दुनिया हमेशा सम्मान के साथ याद रखती है। हमारा जीवन ऐसा कभी नहीं हो कि बात तो सत्य की करे लेकिन आचरण उसके प्रतिकूल हो। जीवन सत्यवादी राजा हरीशचन्द्र जैसा होना चाहिए जिन्होंने सत्य की राह पर चलते हुए भीषण कष्ट मिलने पर भी उसका साथ कभी नहीं छोड़ा।

ये विचार पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा ने बुधवार को श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने कहा है कि सत्य से बड़ा महान कुछ नहीं है।

जीवन में हमेशा सत्य की साधना करनी चाहिए। सत्यवादी व्यक्ति समस्त गुणों से परिपूर्ण होकर धीर गंभीर और चारित्रवान होते है। सत्य की कसौटी पर खरा उतरने पर ही जीवन की सार्थकता होती है। सत्य बोलने वाला कभी पाप कार्य नहीं कर सकता। झूठ का परित्याग करने वाला धर्म के मार्ग पर चलने वाला होता है।

सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि संसार परिवर्तनशील है ओर जन्म-मरण चलता रहता है। हमारी जिंदगी जन्म-मरण के दो किनारों के मध्य चलती रहती है। जिनको मरने के बाद दुनिया याद रखे उनका जीवन सार्थक बन जाता है। दुनिया उन्हीं महापुरूषों को जाने के बाद भी याद रखती है जिनका जीवन साधना, तप, त्याग, परोपकार से भरा होता है।

जीवन में ऐसे कार्य हम करे कि हमारी देह भले इस धरा पर नहीं रहे फिर भी लोग हमे याद करे। उन्होंने जैन रामायण का वाचन करते हुए विभिन्न प्रसंगों पर चर्चा की। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने भावनाओं में से पहली भावना अनित्य की चर्चा करते हुए कहा कि हमारा शरीर विनाशी पर आत्मा अजर अमर अविनाशी है।

शरीर मिट जाएगा पर आत्मा कायम रहेगी इसलिए शरीर से मोह रखने की बजाय आत्मा को सुधारने का लक्ष्य रखे। जीवन नित्य होने से कोई भरोसा नहीं है आत्मा अनित्य होने से उसकी सार संभाल निरन्तर करते रहे। तप,त्याग,साधना से आत्मा का कल्याण किया जा सकता है। जो शरीर के मोह में डूबा रहता है उसकी आत्मा को कष्ट प्राप्त करना पड़ता है।

जिनवाणी हमे आत्मकल्याण का मार्ग बताती है। धर्मसभा में प्रार्थनाथी सचिन मुनिजी म.सा. ने कहा कि परमात्मा महावीर ने जीवन को क्षणिक बताया है ऐसे में जब तक शरीर में शक्ति एवं सामर्थ्य है अधिकाधिक धर्मसाधना कर लेना चाहिए। शरीर के स्वभाव को जानकर सह प्रेमपूर्वक उसका सदुपयोग कर लेने में ही जीवन की सार्थकता है।

जिसने शरीर के सशक्त होते हुए धर्म साधना नहीं की वह वृद्धावस्था में शरीर निशक्त होने पर ऐसा नहीं कर पाएगा। उस समय चाहकर भी वह शास्त्र,जिनवाणी का श्रवण नहीं कर पाएंगा। इसलिए जब तक शरीर साथ दे रहा है तब तक समय व्यर्थ नहीं कर अधिकाधिक धर्म साधना आराधना करनी चाहिए। नेत्र ज्योति होने तक परमात्मा के दर्शन कर ले बाद में अंधापन आने पर दर्शन कैसे कर पाएंगे।

धर्मसभा में युवारत्न श्री नानेशमुनिजी म.सा. का भी सान्निध्य रहा। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।

द्वय गुरूदेव जयंति समारोह 15 अगस्त को

चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए तय है। प्रति रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता हो रही है। चातुर्मास के विशेष आकर्षण के रूप में 15 अगस्त को द्वय गुरूदेव श्रमण सूर्य मरूधर केसरी प्रवर्तक पूज्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. की 134वीं जन्मजयंति एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म.सा. ‘रजत’ की 97वीं जन्म जयंति समारोह मनाया जाएगा। इससे पूर्व इसके उपलक्ष्य में 11 से 13 अगस्त तक सामूहिक तेला तप का आयोजन भी होगा।

प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627

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