सूरत(अमर छत्तीसगढ), 8 अगस्त। चातुर्मास हमे स्थानक आकर जिनवाणी श्रवण करने का सुनहरा अवसर भी प्रदान करता है। इस अवसर का भी हम प्रमाद ओर अज्ञानतावश लाभ नहीं उठा पाते है तो यह हमारे लिए कर्म निर्जरा का सुनहरा अवसर गंवानें के समान होता है। इसलिए स्वयं भी प्रतिदिन जिनवाणी श्रवण करे ओर अन्य को भी इसकी प्रेरणा प्रदान करे।
स्थानक में आकर सामायिक साधना करना हमारे चारित्र की पहली सिद्धी है। इसलिए अधिकाधिक सामायिक करने का भाव भी हमेशा रहना चाहिए। ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने गुरूवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए।
रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि मानव भव से तारने का कार्य जिनवाणी ही करती है। जिनवाणी श्रवण से चार गति का नाश होता है ओर इंसान परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। स्वभाव में जीना, स्वभाव में जाना व भूख से कम खाना उनोदरी तप होता है। निर्जरा के 12 भेद होते है जिनमें कम खाना, गम खाना, नम जाना आदि शामिल है। जिसने जीवन में कम खाना,गम जाना ओर नम जाना सीख लिया उसके पुण्य प्रबल होने के साथ जीवन सार्थक बन जाता है।
उन्होंने कहा कि पाप के 18 भेद में से क्रोध छठा भेद है। क्षमा करना हमारा धर्म है जबकि लोभ पाप का बाप कहलाता है। पाप दुःख के द्वार खोलता है जबकि नवकार महामंत्र का जाप सभी पापों का नाश करता है। खाना बड़ो के साथ ओर सोना छोटे के साथ चाहिए। जिनशासन के तीन शब्द मूल है नमामी, खमामी, वोसरामी। उन्होंने कहा कि इस पांचवें आरे में तीर्थंकर की वाणी ही हमे तारने वाली है। जिसकी जुबा पर ‘मैं’ शब्द आ जाता है वहां अभाव आ जाता है। हमेशा मैं की नहीं हम की भावना रखे।
मानव शरीर मिलने पर आत्मा को मिला सिद्धत्व पाने का अवसर
तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि आत्मा अरूपी होती है जबकि शरीर अजीव होकर हमारे पुद्गल का सडन गलन समान है। सिद्ध अविनाशी होने के कारण बिना शरीर के भी आत्मा होती है। धर्मध्यान, तप त्याग कर कर्म निर्जरा का अवसर हमे शरीर मिलने से ही प्राप्त होता है। इसलिए जो मानव शरीर मिला है उसे धर्म को समर्पित कर सिद्धत्व प्राप्त करने का लक्ष्य रखे।
उन्होंने श्रावक के 12 व्रत में से पांचवे व्रत अपिरग्रह को समझाते हुए कहा कि पानी की एक बूंद में असंख्य जीव होते है। जल ही जीवन है। पानी का जीव मरकर केवली भी बन सकता है। इसलिए जल का भी संयमित उपयोग करे ओर पानी को कभी व्यर्थ नहीं जाने दे। जितना जल संयम रखेंगे उतने ही हमारे कर्म बंध कम होंगे। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा।
साध्वीवृन्द की प्रेरणा से लगा त्याग तपस्याओं का ठाठ
चातुर्मास में महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा से धर्म ध्यान व तप साधना का दौर निरन्तर जारी है। प्रवचन हॉल उस समय तपस्वी की अनुमोदना में हर्ष-हर्ष, जय-जय के जयकारों से गूंजायमान हो उठा जब पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद से सुश्राविका शिमला सांखला ने 15 उपवास, सुश्राविका सोनल सामर ने 10 उपवास के प्रत्याख्यान ग्र्रहण किए। श्रावक रतनलालजी हिंगड़ ने 6 उपवास, प्रमोदजी नाबेड़ा ने 4 उपवास व कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। बच्चों के लिए 15 दिवसीय चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप आराधना के तहत गुरूवार को 7 द्रव्य उपरान्त त्याग रहा।
जोधपुर से पधारे मुकेशजी नाहर सहित सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलालजी नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन लूणकरणजी कोठारी ने किया। चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है। प्रतिदिन दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक धर्म चर्चा का समय तय है।
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, लिम्बायत,गोड़ादरा,सूरत
सम्पर्क एवं आवास व्यवस्था संयोजक –
अरविन्द नानेचा 7016291955
शांतिलाल शिशोदिया 9427821813
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627