सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 10 अगस्त। :।
अपनी अमृतवाणी से जन-जन का कल्याण करने वाले, लोगों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति रूपी सन्मार्ग दिखाने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित तेरापंथ एन.आर.आई समिट 2024 में भाग लेने और अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भावित बनाने के लिए विश्व के लगभग पन्द्रह देशों से 200 से अधिक श्रद्धालु डायमण्ड सिटि सूरत के भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में बने भव्य, विशाल संयम विहार में पहुंचे तो पूरा वातावरण वैश्विक सद्भावना से आप्लावित हो गया।
मानवता के मसीहा महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में उपस्थित हुए इन श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान करने के साथ ही मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में पावन प्रेरणा भी प्रदान की। यह प्रेरणा उन श्रद्धालुओं को भावविभोर तो बना ही रही थी, इसके साथ उन्हें गहराई से अपने धर्म और संस्कारों की भावनाओं को पुष्ट बनाने में सहायक भी बनी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आस्ट्रेलिया, न्यू गिन्नी, आस्ट्रिया, बेल्जियम, हांगकांग, इण्डोनेशिया, मलेशिया, नीदरलैण्ड, साउदी अरब, सिंगापुर, युनाइटेड किंगडम, युनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका, बहरिन, युनाइटेड स्टेट ऑफ अमिरात जैसे देशों से अप्रवासी तेरापंथी श्रद्धालु अपने बच्चों और परिवार के साथ पहुंच चुके थे।
तेरापंथ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे ही महावीर समवसरण में पधारे तो पन्द्रह देशों से आए श्रद्धालु भी भारतीय ध्वज की अगुवानी में अपने-अपने देश के राष्ट्रीय ध्वज के साथ पहुंचे। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आयारो के प्रथम अध्ययन में शस्त्र परिज्ञा के विषय में बताया गया है कि छह जीव निकायों के प्रति अहिंसा की भावना को पुष्ट बनाए रखने की प्रेरणा प्रदान की गयी है।
इसमें मनुष्य और अन्य सभी जीवों को समान बताया गया है। इसमें कहा गया है कि मैं जीव और जीना चाहता हूं तो अन्य जीव भी जीना चाहते होंगे। दूसरी बात बताई गयी कि मानव को सुख प्रिय है तो अन्य सभी प्राणियों को सुख प्रिय होता है। तीसरी बात बताई गयी कि मानव को दुःख अप्रिय है तो अन्य जीवों को भी दुःख अप्रिय होता है। इन समानताओं को तुला के रूप में देखा जा सकता है।
इस तुला पर ध्यान देकर आदमी को अहिंसा पर विशेष ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार मानव जीना चाहता है, मरना नहीं चाहता तो वह भी किसी अन्य प्राणी को न मारे और उन्हें भी जीने का अधिकार दे। पूर्णरूपेण जीव हिंसा से बचाव नहीं हो सकता। इसलिए हिंसा के तीन प्रकार बताए गए हैं-आरम्भजा हिंसा, प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा व संकल्पजा हिंसा। जीव चलाने के लिए खेती-बाड़ी, रसोई आदि के कार्य भी जीव हिंसा होती है, किन्तु यह जीवन चलाने के लिए होती है। यह कोई जघन्य हिंसा नहीं होती।
हिंसा का दूसरा प्रकार है प्रतिरक्षात्मिकी। रक्षा के लिए कहीं कुछ बल प्रयोग करना पड़े, हिंसा को काम में लेना पड़े, अपने देश, परिवार, समाज और कही शांति बनाए रखने के लिए शस्त्र का प्रयोग करना पड़ा है तो वह प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा होती है। कोई राष्ट्र किसी पर चलाकर आक्रमण न करे, इतनी अहिंसा हर राष्ट्र की नीति में होनी चाहिए कि अनावश्यक हमला और हिंसा नहीं करेंगे। दूसरा कोई राष्ट्र मेरे राष्ट्र पर आक्रमण करे या तैयारी करे तो फिर अपने राष्ट्र की रक्षा, मातृभूमि की रक्षा, देशवासियों की रक्षा के लिए आवश्यक हिंसा हो जाती है।
तीसरी बात है संकल्पजा हिंसा। विदेशें में रहने वाले, बाहर रहने वाले, होटल, हॉस्टल आदि जगहों पर भी जाना हो तो नॉनवेज भोजन का सेवन न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके तो नॉनवेज से युक्त दवाई भी लेने से बचने का प्रयास होना चाहिए। एन.आर.आई. लोग में भी धार्मिक भावनाओं का संचार किया जाना चाहिए। समणश्रेणी द्वारा भारत से बाहर जाकर धार्मिक संस्कारों से जोड़ने और उसे सुरक्षित करने का प्रयास किया जाता होगा। भारत में फिर भी साधु-साध्वियों के सम्पर्क का मौका मिल सकता है, लेकिन दूर देशों में रहने वाले लोगों को समण श्रेणी का कितना योग मिलता है।
तेरापंथी महासभा विदेश में रहने वाले लोगों से सम्पर्क बनाए रखते हैं, इस दूरस्थ सम्पर्क से संस्कारों को सुरक्षित बनाया जा सकता है। आज के आधुनिक युग में यंत्र और मीडिया के माध्यम से पहुंचना बहुत आसान हो गया है। इस प्रकार आदमी को सभी प्राणियों के प्रति समानता का भाव रखते आदमी हिंसा से बचने और अहिंसा के भाव को पुष्ट बनाने का प्रयास हो सकता है।
आचार्यश्री ने एन.आर.आई. समिट में संभागी बने लोगों को पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि इस समिट के माध्यम से इतने लोगों का एक साथ पहुंचने का उपक्रम बहुत अच्छा होता है। साधु-साध्वियों से सम्पर्क के लिए यहां आने से कितना लाभ प्राप्त हो सकता है। इसके अलावा यंत्रों के माध्यम से, पुस्तकों व समणियों से संस्कार और धार्मिक ज्ञान का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इससे बालपीढ़ी को अच्छे संस्कार प्राप्त होता रहे। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा बाहर रहने वाले लोगों का तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़ाव पुष्ट रहे, इस दृष्टि से इस सम्मेलन का विशेष महत्त्व है।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज से आरम्भ हुए तेरापंथ एन.आर.आई. समिट के द्विदिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। इस संदर्भ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, इस समिट के कन्वेनर श्री जयेश जैन, श्री सुरेन्द्र पटावरी (बोरड़) व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री ने अपने श्रीमुख से एन.आर.आई. समिट में उपस्थित श्रद्धालुओं को मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आज इतनी संख्या में एन.आर.आई. उपस्थित हुए हैं। समणियों के जाने व वहां रहने से दूर देशों में रहने वालों को संपोषण प्राप्त हो सकता है। उधर के लोग यहां साधु-संतों की सन्निधि में पहुंच जाते हैं। महासभा के नए-नए उन्मेष आते हैं जो संगठन के लिए बहुत अच्छी बात होती है। यह लोगों और बालपीढ़ी को अच्छा संपोषण देने वाली सिद्ध हो और जीवन में शांति, चित्त में समाधि और अपनी आत्मा के कल्याण के लिए यथासंभव प्रयास हो।