शीतल राज मुनिश्री ने कहा सामायिक की साधना में धर्म का चिंतन मनन करें, तप की माया हो ….. सुबह एवं शाम के मंगल पाठ में सैकड़ो  लोगों ने लिया धर्म लाभ

शीतल राज मुनिश्री ने कहा सामायिक की साधना में धर्म का चिंतन मनन करें, तप की माया हो ….. सुबह एवं शाम के मंगल पाठ में सैकड़ो लोगों ने लिया धर्म लाभ

रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 12 अगस्त। स्थानीय पुजारी पार्क स्थित मानस भवन में नियमित प्रवचन में धर्म, त्याग, मोह, माया, पाप, सामायिक साधनों इत्यादि पर कई दृष्टांतों को उद्धृत करते हुए कहा तीर्थंकर भगवान भगवंत ने जगत के जीवों को कल्याण का मार्ग बताते हुए प पू शीतल राज मुनिश्री ने कहा तीर्थंकर भगवंतो ने जगत के जीवन को कल्याण का मार्ग बताते हुए कहा मानव दुर्लभ भव को प्राप्त जन्म मरण के दुख से दूर होने का सूअवसर प्राप्त हुआ है।

परीक्षा के समय नही पढ़े समय चूक जावे उसका परिणाम बुरा होता है। भगवान महावीर ने कहा है एकमात्र सुख मोक्ष में ही मिलेगा, संसार के समस्त सुख पुण्य है तो पुण्य खत्म तो सब कुछ खत्म। मोक्ष में जाना हर मानव के हाथ में है वह पूरा प्रयास करें। मोक्ष मिलेगा, यदि पूर्ण उदय नहीं तो पैसा नहीं , पैसे के लिए भटकता है, मानव कुछ भी करता है, स्वयं के कर्म पूर्ण उदय हो तो एक झटके में काम होगा। पूर्ण प्रबल हो प्रारंभ से तीर्थंकर का चिंतन मनन करें धर्म आपको सही मार्ग पर ले जाएगा ।

लक्ष्मी भी दो प्रकार की होती है एक देवी लक्ष्मी, एक आसुरी लक्ष्मी, लक्ष्मी घर में है तो देवगुरु की भक्ति से है , हमारा परिवार हमारे संतान धर्म के मार्ग में आगे बढ़ेगा, लेकिन लक्ष्मी से सब कुछ नहीं होता।धर्म का मूल उसके प्रकार पर को समझाते हुवे प्रवचन में गुरुदेव ने कहा भगवान के बताएं मार्ग का अनुसरण करें और राग, द्वेष को जीतने का प्रयत्न करें ।

जिन्होंने चार कर्मों का नाश कर राग द्वेष को जीत लिया है तथा जो हमें धर्म का ज्ञान कराते हैं एवं सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं वे जिन तीर्थंकर या अरिहंत कहलाते हैं । धर्म शब्द का सामान्य अर्थ कर्तव्य भी है, आत्मा की शुद्धि का साधन धर्म है, अहिंसा, संयम, तप, त्याग, धर्म के लक्षण के साथ चार द्वार क्षमा, संतोष, सरलता एवं नम्रता सहित धर्म के तीन रत्न सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चरित्र है । विनय शब्द भले छोटा है लेकिन व्यापक भावो को लिए हुए सरलता, सौम्यता, सादगी, सदाचारी, संतोष आदि सभी गुण प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से विनय रूपी सागर में सम्मिलित है। विनय धर्म एवं ज्ञान दोनों का मूल है ।

उन्होंने कहा जैसे शरीर में शक्ति की आवश्यकता है वैसे ही प्रत्येक कार्य में धर्म की आवश्यकता है । अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह का पालन सुधर्म है। वैसे भी संसारी जीवों के ज्ञान प्राप्ति के साधन को इंद्रिय कहते हैं। पांच इंद्रियों से ही शुभ एवं अशुभ कर्म बनते हैं।

बड़ी संख्या में उपस्थित श्रावक श्राविकाओं, बच्चों को प्रवचन के माध्यम धर्म कर्म तीर्थकरो, महापुरुषों सामयिक की साधना के विभिन्न प्रकारों पर बोलते हुए गुरुदेव ने कहा हमें सुंदर, सुख, शांत व समृद्ध जीवन के लिए हर क्षण सजग रहकर मन, वचन, काया से उत्कृष्ट कर्म ही करने चाहिए। कर्म सत्ता ही प्राकृतिक न्याय है। हर स्थिति में हमें समभाव रखना चाहिए, जिससे नए कर्म का बंधन ना हो ।

संवर, निर्जरा एवं सामायिक पर बोलते हुए कहा सामायिक द्वारा पापों के आश्रव को रोक कर संवर की आराधना कर सकते हैं तथा सामयिक काल में स्वाध्याय करने से पापों की निर्जरा भी होती है। राग द्वेष में सम रहना सीखने की प्रक्रिया ही सामाजिक है lतपस्या करने वालों का जोर बढ़ाते जा रहा है, अढाई, मासक्षमण की ओर श्रावक श्राविका बढ़ रहे हैं। बीते रात को व कल दिन को दया दिवस की धूम रही ।

चातुर्मास लाभार्थी संचेती परिवार प्रमुख दीपेश संचेती धर्म पत्नी प्रियंका संचेती पारिवारिक प्रमुख अनिल बागरेचा, मोहिनी बागरेचा दिन-रात आंगतुको का मान सम्मान व बहुमान में लगे हैं। सीए दीपेश संचेती प्रतिदिन आंगतुको को विभिन्न आयोजनों में भाग लेने वालों का सम्मान बहुमान कर रहे हैं।

पुजारी पार्क परिसर के प्रमुख संस्थापक राजेश पुजारी एवं पूरा परिवार गुरुदेव शीतल राज मसा का सानिध्य प्राप्त कर रहे हैं । आज भी सुबह एवं शाम के मंगल पाठ में 400 से अधिक लोगों ने इसका लाभ लिया । बाहर से भी पधारे गुरु भक्त दिनचर्या में शामिल हो रहे हैं। शीतल चातुर्मास समिति से जुड़े पदाधिकारी, सदस्य गण भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। भोजन शाला का लाभ भी मिल रहा है ।

श्रावक प्रेमचंद भंडारी, उम्मेदमल सुराणा भी नियमित सेवाएं दे रहे हैं । तप तपस्या भी चल रही है। जानकारी के अनुसार राजधानी के मुख्यालय रायपुर जैन समाज में आठ स्थानों पर स्थापित मंदिरों आश्रय भवनों में जैन साधु साध्वी के रोज प्रवचन का कार्यक्रम चल रहा है। प्रतिदिन हजारों लोग लाभान्वित हो रहे हैं।

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