काठमाडौं नेपाल(अमर छत्तीसगढ) 15 अगस्त।
परिवार सप्ताह का आयोजन
भाषा की शक्ति बहुत अधिक होती है, यह विष भी हो सकती है और अमृत भी। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम इसका उपयोग कैसे करते हैं। विचार पूर्वक, चिन्तन पूर्वक बोले गये शब्दों का अपना प्रभाव होता है इसे समझना चाहिए। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रबुद्ध सुशिष्य मुनि रमेश कुमार जी ने आज तेरापंथ कक्ष स्थित महाश्रमण सभागार में आयोजित “परिवार सप्ताह” के अंतर्गत आज “भाषा विष भी अमृत भी” विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किए।
आपने भाषा के दोनों पक्षों को समझाते हुए कहा:- विष के रूप में:– झूठ बोलना, अपमान करना, और निंदा करने वाले शब्द दूसरों के लिए हानिकारक हो सकते हैं और उनके मन में दर्द और क्रोध पैदा कर सकते हैं। भाषा का दुरुपयोग संघर्ष, विवाद और समाज में विभाजन पैदा कर सकता है।
ऐ अमृत के रूप में सच्चे, प्रेमपूर्ण और प्रेरक शब्द दूसरों के लिए उत्साह और प्रेरणा का स्रोत हो सकते हैं और उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। इसलिए, हमें अपनी भाषा का उपयोग सोच -समझकर करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे शब्द दूसरों के लिए अमृत के समान हों, न कि विष के समान।
मुनि रत्न कुमार जी ने भी इस अवसर पर अपने भी अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किए
संप्रसारक
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा काठमाडौं नेपाल