रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 18 अगस्त। वीर वंदना हे प्रभु वीर दया के सागर की पंक्तियों के बाद अपने नियमित प्रवचन स्थानी पुजारी पार्क स्थित मानस भवन में मुनि श्री शीतल राज मसा ने पाप, पुण्य, दुख, मोक्ष, तप, तपस्या, धर्म की परिभाषा, जैन धर्म को पालने अहिंसा के स्वरूप, कर्म, इंद्रियों की शरीर में भूमिका एवं उत्तर ध्यान के साथ सामाजिक साधना स्वाध्याय पर बोलते हुए कहा जैन धर्म में भगवान के बताएं मार्ग का अनुसरण करें और राग द्वेष को जीतने का प्रयास कर कर्मों का नाश कर राग द्वेष को जीत ले।
तीर्थंकर एवं अरिहंत भगवंत ने जैन धर्म के बारे में बताया है धर्म सामान्य, अर्थ कर्तव्य है। आत्मा की शुद्धि का साधन धर्म है, धर्म सुख शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति कराता है। धर्म के लक्षण अहिंसा संयम तप त्याग के साथ इसके क्षमा, संतोष, सरलता, नम्रता प्रमुख द्वार है । इसमें तीन रत्न सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन एवं सम्यक चारित्र है। पांच इंद्रियों की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा हमारे शरीर में इंद्रियां और बहुमुल्य है। संसारी जीवों के ज्ञान प्राप्ति के साधन ही इंद्रियां है । इन्हीं इंद्रियों से ही शुभ अशुभ कर्म बनते हैं। इंद्रियों का सदुपयोग करना चाहिए। वैसे भी जैन दर्शन के अनुसार शरीर के आधार पर जीवो के समूह को काय कहते हैं ।
शीतल राज मास ने अपने प्रवचन पर अहिंसा, संयम, तप, तपस्या की आराधना तय हो वही सर्वोत्कृष्ट धर्म है। ऐसे धर्म में हमारा मन लग जाए तो देवता भी नमन करते हैं। धर्म की आराधना करने के लिए बहुत अभ्यास एवं पुरुषार्थ की जरूरत है। हम रोज अहिंसा परमो धर्म बोलते हैं हिंसा नहीं, लेकिन मन वचन काया से भी होती है। जीव रहित प्राण रहित करना भी हिंसा नहीं है। किसी को कष्ट पीड़ा देना यह भी हिंसा है ।
प्रत्येक रविवार को ज्यादा से ज्यादा अहिंसा धर्म की आराधना करें । कर्म काटना दुष्कर है बांधना आसान है। वर्षगांठ, पिकनिक मनाते हैं पैसे की बर्बादी है। जब तक जीवन में स्वाध्याय नहीं होगा हिंसा की स्थिति बन ही जाती है। दुख से नहीं पाप से मुक्ति चाहिए । दुख से मुक्त होने का उपाय सभी करते हैं लेकिन पाप मुक्ति होने का नहीं ।प्रवचन व्याख्यान में 1 घंटे का समय नहीं निकाल सकते भगवान की वाणी का एक वचन भी दिमाग में बैठे तो नरक से बच जाओगे ।
प्रवचन में बोलते हुए मुनि श्री आगे कहा प्रवचन में हवा खोरी के लिए आए । संदेश, उपदेश को आत्मसात करें । हम कुछ सीखे बिना विनय अनुशासन से आत्मविश्वास की प्रगति नहीं होगी । अहंकार मानव का सबसे बड़ा दुश्मन है, अहंकार छोड़े बिना आएगा विनय रहेगा तो श्रद्धा भी रहेगी। मैं शब्द सही नहीं बड़े-बड़े योद्धा अहंकारी रावण की तरह होंगे तो नुकसान ही होगा । सुख की घड़ी में भी धर्म को नहीं भूलना चाहिए ।
मुनि श्री ने छह काय के बारे में कहा काय जीव सृष्टि का जो ज्ञान जैन दर्शन में दिया गया है, वैसा अन्य दर्शन में नहीं है । भगवान महावीर स्वामी ने जीवन के संपूर्ण स्वरूप को समझाते हुए कहा पुद्गगलों (परमाणु) से बने शरीर के आधार पर जीवों के समूह को काय कहते हैं ।
नियमित प्रवचन में सामायिक, स्वाध्याय साधना पर बोलते हुए कहा इससे पाप मुक्त होंगे, जब तक पुण्य नहीं होगा लाभ नहीं होगा l पुण्य होगा तो सभी सुख मिलेगा। बिना पुण्य के नहीं, हिंसा से हिंसा बढ़ेगी किसी के साथ हिंसा कर कष्ट दुख देकर अपना भला नहीं होगा। शैतान को शैतान मिलेगा। याद रखो खून का कपड़ा, मैला कपड़ा धुलने वाला नहीं । उन्होंने पाप कर्मों की जानकारी दी उपस्थित श्रोताओं ने भी इन पापों के नाम बताएं कहा आप करते समय आपके मन में खेद हो ऐसी भावना भी रखोगे तो पाप से कुछ बचोगे । मन में राग द्वेष ना हो गुस्से से पाप का त्याग नहीं होता।
मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान दर्शन, चारित्र व तप हो नौ तत्वों में जीव को जाने, अजीव पुण्य पाप आश्रम एवं बंधन को छोड़ें, पुण्य करो संवर निर्जरा व मोक्ष को अपनाओ। साता वंदनी कर्म कैसे बनता है कहा वंदनीय कर्म सुख आरोग्य सुखी पारिवारिक जीवन एवं मानसिक शांति देता है । वही असाता वंदनीय कर्म दुख देता है । उन्होंने पुन: कहा समभाव की साधना सामायिक रोज करें। अतः राग द्वेष में सम रहना सीखने की प्रक्रिया ही सामायिक है । पाप के 11 प्रकार बंधनो की भी विस्तृत जानकारी दी, कहा ज्ञान प्राप्त कर धर्म की आराधना करें ।
उल्लेखनीय की शीतल राज मसा विश्व के पहले ऐसे संत थे जो एक साथ सामायिक स्वाध्याय से हजारों लोगों को नियमित जोड़ रहे हैं। युवा पीढ़ी भी साथ चल रही है।
नियमित कार्यक्रम के तहत उपवास, बेला, तेला एकासना इत्यादि की जानकारी देते हुए पचखान कराया गया । चातुर्मास समिति अध्यक्ष सुरेश जैन ने मासक्षमण करने वालों की जानकारी दी। उपस्थित जनों ने सभी को धन्यवाद दिया। पटवा परिवार, संचेती परिवार, लालवानी परिवार के सदस्य तप तपस्या में आगे बढ़ रहे हैं। संवर में नियमित भाग लेने वालों का सम्मान बहुमान नियमित रूप से चतुर्मास लाभार्थी संचेती परिवार कर रहा है। सभी तपस्या वालो के लिए पुजारी पार्क में स्थापित और संचालित भोजनशाला का लाभ दिया जा रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार सी एल जैन सोने के अनुसार जैन धर्म में चातुर्मास जो एक महापर्व है आषाढ़ सावन भादो क्वार कार्तिकेय चार महा आत्म साधकों एवं संस्कारी आत्माओं को शुद्ध करने के लिए अनुकूलताएं प्रदान करते हैं। 4 महीने में प्रकृति शीतल एवं शांत रहती है। वातावरण खुशनुमा मनभावन धर्म मय रहता है । रायपुर राजधानी में आठ स्थानों पर जैन साधु संतों के सानिध्य में प्रवचन का लाभ रोज हजारों ले रहे हैं । पुजारी पार्क भी इन दिनों पूरी तरह से शीतल राज मुनि के सानिध्य में धर्म मय हो गया है ।