रायपुर (अमर छत्तीसगढ) 19 अगस्त। तपस्वी श्री विजय संचेती का आज 31 वाँ मासक्षमण पूर्ण।तप से होती है कर्मो की निर्जरा। आहार का राग तोड़ना ही अपने आप में तपस्या है, सभी तरह के पाप का कारण हमारी इंद्रियाँ है। हमें अपनी इन्द्रियो पर विजय प्राप्त करना होगा। हमें अपनी इन्द्रियोंपर नियंत्रण पाना बहुत आवश्यक है । इन्द्रियों पर विजय पाना ही एक महान् तप का आरंभ है।
तप से आत्मा कुन्दन की तरह निखरती है, और उसपे लगे सूक्ष्म कर्मो का क्षय होता है। पुजारी पार्क विराजित घोर तपस्वी महात्मा आडा़ आसन त्यागी, सूर्य आतापनाधारी, महास्थिवर, मौन साधक, सामायिक स्वाध्याय के प्रणेता प पु श्री शीतल मुनिजी मसा के मुखारबिंद से आज तपस्वी भाई विजय संचेती 31वें मासक्षमण के 31 वें उपवास का एवं श्रीमती अर्चना पटवा ने 31 वें उपवास का प्रत्याखाण लिया।
तपस्वी भाई विजय संचेती पिछले 30 वर्षो से आप सिर्फ गर्म जल के आधार पर 31 दिन का उपवास (मासक्षमण) की तपस्या कर रहें है। यह आपका 31 मासक्षमण चल रहा है । आप सभी तपस्वीयों की तपस्या निर्विघ्न संपन्न हो ऐसी वीर प्रभु से मंगल कामना करते है।
आज संघ की ओर से संपूर्ण चार्तुमास के लाभार्थी दिपेश संचेती, प्रियंका संचेती, अध्यक्ष सुरेश सिंघवी, मोहनी बाई बागरेचा, रीता संचेती ने दोनों तपस्वीयों विजय संचेती एवं अर्चना पटवा का माला पहनाकर प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मान किया।