संस्कृत दिवस के संदर्भ में भी आचार्यश्री ने जनता को किया उद्बोधित
सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 19 अगस्त।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्रावणी पूर्णिमा अर्थात् रक्षाबन्धन के दिन महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को आयारो आगम के आधार पर पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आयारो में बताया गया है कि आत्मा क्षण भर में मुक्त हो जाती है। जो आदमी संयम में रमण करता है, अरति भाव रखता है, साधना करते-करते उसके जीवन में ऐसा क्षण आत्मा है, जब उसकी आत्मा मोह से मुक्त हो जाता है। आठ कर्मों में सबसे पहले क्षीण होने वाला कर्म मोहनीय कर्म होता है। सबसे ज्यादा नुकसानदेह और पापों को लगाने वाला कर्म मोहनीय ही होता है।
सबसे पहले विनाश भी इसीका ही होता है। तीन चरणों में आठों कर्मों का क्षय होता है। प्रथम चरण में मोहनीय और दूसरे शेष तीन घाति कर्मों तथा तीसरे चरण में चार अघाति कर्मों का क्षय होता है। अच्छी साधना करने वाली आत्मा क्षण भर में मुक्त हो जाती है। एक समय ऐसा आता है, चेतना सभी कर्मों से मुक्त हो जाती है। इसके बाद तो आत्मा को सिद्धत्व की प्राप्ति हो सकती है। आत्मा सिद्धत्व को प्राप्त करने की आदि तो है, किन्तु उसका आदि नहीं अंत नहीं होती, वह अनंत हो जाती है।
हर सिद्ध आत्मा सिद्धत्व की प्राप्ति से पहले कभी न कभी मिथ्यात्वी के रूप में रहती है। आज श्रावणी पूर्णिमा है। श्रावण मास का अंतिम दिन है। रक्षाबन्धन के रूप में यह दिन प्रतिष्ठित है। लौकिक, सांसारिक जीवन के अनुसार यह लौकिक पर्व श्रावणी पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। हालांकि यह तो बन्धन है। मुक्ति तो अच्छी होती है तो कहीं-कहीं बन्धन भी अच्छा होता है। रक्षा का बन्धन, मर्यादा का बंधन, नियम, प्रतिष्ठा व एरिया का बन्धन होता है। कहीं-कहीं बन्धन से भी लाभ हो सकता है।
आदमी को अपनी आत्मा की रक्षा का प्रयास करना चाहिए। इस रक्षाबन्धन पर यह संकल्प करने का प्रयास करना चाहिए कि मैं अपनी अत्मा की रक्षा करूंगा। इन्द्रियों का संयम करते हुए अपनी आत्मा का रक्षा का प्रयास करना चाहिए। असुरक्षित आत्मा पापकर्मों से बंध कर संसारी अवस्था में भ्रमण करती रहती है। इसलिए आदमी को अपनी आत्मा की सुरक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। आज के दिन बहनें भाइयों को रक्षा बांधती हैं तो कन्याओं, बहनों व उनके संस्कारों की रक्षा प्रयास हो।
उनके जीवन की रक्षा और कन्या भ्रूण हत्या से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा की रक्षा, बहनों की रक्षा, संस्कारों की रक्षा, राष्ट्र की रक्षा, अहिंसा की रक्षा, संयम, ईमानदारी, संस्कारों की रक्षा, शरीर की रक्षा, प्राणियों की रक्षा, मातृभूमि की रक्षा तथा देश के नागरिकों की भी रक्षा हो। इस प्रकार रक्षा के अनेक संदर्भ बन सकते हैं। अध्यात्म की दृष्टि से सबसे बड़ी रक्षा पापों से अपनी आत्मा को बचाना होता है। इसलिए आदमी को गलत आचरणों से अपनी आत्मा की रक्षा का प्रयास करना चाहिए।
श्रावण पूर्णिमा का दिन संस्कृत दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। संस्कृत भाषा में प्राचीन और अरवाचीन ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी, परम पूज्य महाप्रज्ञजी में कितना संस्कृत का ज्ञान रहा। प्राचीन समय में हमारे कितने-कितने साधु-साध्वियां, समणियां संस्कृत भाषा के पारंगत हैं। संस्कृत भाषा का अच्छा अध्ययन होने से आगमों के अर्थ को जानने में सुगमता हो सकती है। यह श्रावणी पूर्णिमा संस्कृत दिवस के रूप में भी प्रतिष्ठित रही है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने अनेकानेक तपस्वियों को उनकी तपस्याओं का प्रत्याख्यान कराया ।