आचार्यश्री ने साधु जीवन में अपरिग्रह की चेतना को पुष्ट बनाने को किया अभिप्रेरित…. अल्पोपधि हो साधु :  आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री ने साधु जीवन में अपरिग्रह की चेतना को पुष्ट बनाने को किया अभिप्रेरित…. अल्पोपधि हो साधु : आचार्यश्री महाश्रमण

-मुनि गजसुकुमाल के आख्यान क्रम को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित

-साध्वीवर्याजी ने जनता को किया सम्बोधित

सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 21 अगस्त।

भगवान महावीर युनिवर्सिटि में भगवान महावीर के प्रतिनिधि, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ वर्ष 2024 का चतुर्मास कर रहे हैं। संयम विहार के रूप में ख्यापित इस चतुर्मास प्रवास स्थल में मानों निरंतर धर्म, अध्यात्म और आस्था की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है। जहां श्रद्धालु निरंतर गोते लगा रहे हैं।

भारत के विभिन्न राज्यों व क्षेत्रों से श्रद्धालु यहां अपने गुरु की निकट पर्युपासना व सेवा के लिए प्रवास कर रहे हैं। आचार्यश्री की निरंतर मंगलवाणी के श्रवण के साथ-साथ अनेक चारित्रात्माओं की सेवा, उपासना और धर्म-ध्यान का उन्हें बहुत अच्छा अवसर प्राप्त हो रहा है। इतना ही नहीं, सूरतशहरवासी भी सौभाग्य से प्राप्त इस अवसर का पूर्ण लाभ उठा रहे हैं।

बुधवार को महावीर समवसरण भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं, जिनके मन में यह संकल्प होता है कि हम दीक्षित होंगे, संन्यास लेकर अपरिग्रही बनेंगे। कई बार वैसे लोग संन्यास बनने के बाद भी परिग्रही बन जाते हैं। साधु को मोह, मूर्छा और बाह्य परिग्रह अर्थात् पदार्थों के परिग्रह से बचने का प्रयास करना चाहिए। साधु अपने जीवन में बाह्य और आभ्यांतर दोनों प्रकार परिग्रहों से बचने का प्रयास करना चाहिए। आवश्यक चीजों को साथ रखा जा सकता है, किन्तु साधु को अनावश्यक पदार्थों का संग्रह नहीं करना चाहिए।

साधु को अल्पोपधि रहना चाहिए। जितनी ज्यादा चीजें रहती हैं तो जीवों की हिंसा का दोष उतना बढ़ सकता है। अल्प होने से आसानी प्रतिलेखना आदि हो सकती है और अहिंसा की साधना अबाध चल सकती है। अनावश्यक किताबों के संग्रह से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। हिंसा और परिग्रह दोनों से अल्पोपधि होना साधु के लिए हितकर हो सकता है। परिग्रहों के बीच में रहते हुए भी पूर्ण रूप से अनासक्ति की भावना से बचने का प्रयास करना चाहिए।

साधु के पास रुपया, पैसा, सोना, चांदी आदि रहे तो साधु को आसक्ति बढ़ सकती है और साधना में भी बाधा उत्पन्न हो सकती है। साधु को अच्छी साधना में मन लगाए रखे तो कभी सिद्धि की भी प्राप्ति हो सकती है। साधु के जीवन में तो वीतरागता बड़ी कोई सिद्धि नहीं हो सकती है। इसलिए साधु को अपरिग्रह से युक्त तथा परिग्रह संग्रह से मुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। अपरिग्रह की साधना बहुत बड़ी साधना होती है। साधु को छुपाकर भी कोई परिग्रह नहीं रखना चाहिए। साधु की साधनाकाल में अपरिग्रह से मुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए।

सामान्य गृहस्थ जीवन में तो भले परिग्रह, हिंसा, मोह, ममता आदि से युक्त हो सकता है। महाव्रतों की साधना के कारण ही साधु सामान्य गृहस्थों से उच्च होते हैं। इसलिए साधु को अपरिग्रह की साधना का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री गजसुकुमाल मुनि के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। मंगल प्रवचन व आख्यान के उपरान्त अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत का संगान किया।

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