रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 21 अगस्त। स्थानीय पुजारी पार्क मानस भवन में एक माह से चल रहै प्रवचन में शीतल राज मसा ने कहा जैनी 18 पापों को समझने पर दृष्टि से स्वयं दृष्टि में आएगा, किसी कलंक नहीं आएगा। पाप, पुण्य, निर्जरा को सुनकर जीवन को उपर ले जा सके ऐसा प्रयास करना चाहिए । उन्होंने जीव सृष्टि का जो ज्ञान जैन दर्शन में दिया है जिसमें पुद्गलों से बने शरीर के आधार पर जीवों के समूह को काय कहते हैं ।
जीव अर्थात 6 कायो में क्रमशः त्रसकाय, पृथ्वी काय, अपकाय तेद्रकाय, वायुकाय एवं वनस्पति काय जो बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चऊइन्द्रिय एवं पंचइन्द्रिय जिसके प्रकार भी अलग-अलग है । पृथ्वीकाय, वनस्पति काय पर बोलते हुए शीतल मुनि ने कहा काया शरीर जिस जीव का शरीर मिट्टी का बना है उसे पृथ्वीकाय कहते हैं। जिसमें अनेक प्रकार के जीव होते हैं। उन्होंने कायों की विस्तृत एवं सोदाहरण जानकारी दी ।
आज चौथे दिन उन्होंने 18 पापों में से कुछ पापों को लेकर विस्तृत जानकारी देते हुए पापों के कुछ प्रकारों पर बोले । इसमें उन्होंने बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चऊइन्द्रिय एवं पंचइन्द्रिय पर भी सोदाहरण बताया कि तीर्थंकर भगवंतो ने पहले स्वयं के राग द्वेष को समाप्त किया फिर संदेश दिया। महापुरुषों के पद चिन्हो पर चले, श्रद्धा है पर दृष्टि नहीं हमारा जीवन दृढ श्रद्धा हो जावे, इसका प्रयास किया जावे। चारों तरफ हम मजबूत हो जावे ताकि साधना आराधना में आगे बढ़ सके। शरीर नाशवान श्रण भंगूर है, बिना धर्म के न जाए। सुबह सबसे पहले आत्मा के लिए करना है ।
शीतल राज मसा ने पापों पर कहा कि पाप को याद कर स्मृति पटल पर रखो । इसको करना है तो पश्चाताप करना होगा । पापों की चिंता करोगे तो शाम को पश्चात भी करोगे । किसी पर कलंक लगाना सरल है फल भोगना कठिन है। साधक को चाहिए पापों से बचे। दृष्टि बदलोगे तो पापों से बच सकते हो। जिनकी लक्ष्मी देविक है उनको कोई नहीं ले जा सकता। उन्होंने कहा हम सामायिक द्वारा पापों के आश्रव को रोक कर संवर की आराधना कर सकते हैं तथा सामायिक काल में स्वाध्याय करने से पापों की निर्जरा भी होती है ।
समभाव की साधना को सामायिक की साधना को सामायिक कहते हैं। गुरुदेव शीतल राज ने कहा धन-तन परिवार का त्याग महापुरुषों ने किया, ये महापुरुष नए कर्म बंधन में नहीं बंधे है इसलिए पूरी तरह से पालन करते तप तपस्या कर पूर्व कर्मों का क्षय किया, बाकी जीवो को उपदेश दिया।
हमे तीर्थंकर भगवंतो, महापुरुषों के पद चिन्हो पर चलें । सुबह उठते ही सबसे पहले आत्मा के लिए करना है। हम आत्मा को भूलते जा रहे हैं, नीचे जा रहे हैं ऐसे में ऊपर आना मुश्किल है। दुख का पाप प्रवृत्ति है। सुख का मूल धर्म प्रकृति है अतः धर्म आराधना करने से सुख मिलता है और पाप कर्म से दुख मिलता है ।
धर्म ग्रंथो में कहा भी गया है कि धर्म पूर्ण करने के लिए तथा पाप कर्म का नाश करने के लिए यह अमूल्य समय है, इसलिए इस समय में पाप रूपी डाकू को बाहर निकालने के साथ नवीन पाप अंदर ना जाए यह ध्यान रखना अति आवश्यक है । जब जग में अकेला आया, अकेला जाएगा मनुष्य को धन संपत्ति एवं स्वजनों का मोह त्याग कर आरंभ परिग्रह का त्याग करके ज्ञान दर्शन, चारित्र तप आदि की उपासना करनी चाहिए ।
सुश्रावक प्रेमचंद भंडारी ने तप, तपस्या, व्यासना, एकासना, आयंबिल, उपवास, बेला, तेला, करने वाले श्रावक श्राविकाओं का पचखान कार्यक्रम संपन्न कराया । संवर में नियमित महिला एवं पुरुषों ने भाग लिया जिनके सम्मान बहुमान संचेती परिवार ने किया । 25 अगस्त को दया दिवस मनाया जाएगा ।