काठमाण्डौ नेपाल (अमर छत्तीसगढ) 21 अगस्त।
।।स्वास्थ्य सप्ताह का आयोजन।।
योग साधना और वैकल्पिक चिकित्सा की एक पद्धति है मुद्रा विज्ञान। साधना पद्धति में मुद्रा किसी विशेष आकृति के लिए प्रयुक्त किया जाता है। शरीर के विविध आकृतियों से हम शरीर के मनोभावों को समझ सकते हैं। इस दृष्टि से शरीर की भाव- पूर्ण आकृति को मुद्रा कहते हैं। मुद्रा और भावों में गहरा संबंध है। जैसा भाव होता है वैसी मुद्रा बन जाती है। जैसी मुद्रा बनाते है।
वैसा ही भीतर स्राव होने लगता है। जैसा स्राव होता है वैसा ही स्वभाव होने लगता है। वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रबुद्ध सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी ने तेरापंथ कक्ष स्थित महाश्रमण सभागार में आयोजित “स्वास्थ्य सप्ताह के अंतर्गत आज “रहस्य मुद्रा विज्ञान के” विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किये । आपने मुद्रा कैसे और कब करें का प्रशिक्षण देते हुए मुद्राओं से होने वाले लाभ भी बतायें।
मुनि रत्न कुमार जी ने भी इस अवसर पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये।
संप्रसारक
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा काठमाण्डौ नेपाल