कर्मफल से बच नहीं सकते, भागने से नहीं भोगने से ही छूटेंगे कर्म- इन्दुप्रभाजी मसा…. जिनवाणी ही लगा सकती आत्मा का संसार सागर से बेड़ा पार- चेतनाश्रीजी मसा

कर्मफल से बच नहीं सकते, भागने से नहीं भोगने से ही छूटेंगे कर्म- इन्दुप्रभाजी मसा…. जिनवाणी ही लगा सकती आत्मा का संसार सागर से बेड़ा पार- चेतनाश्रीजी मसा

गोड़ादरा स्थित महावीर भवन में चातुर्मासिक प्रवचन

सूरत(अमर छत्तीसगढ), 21 अगस्त। न धन दौलत, न हीरा मोती पन्ना कुछ साथ जाएगा एक मात्र धर्म ही है जो अगले भव में भी हमारे साथ जाएगा। ऐसे में हमे सांसारिक वस्तुओं का नहीं अधिकाधिक धर्म का संग्रह अपने खजाने में कराना होगा ताकि हम उसे साथ ले जा सके। बाकी कितना भी खजाना जोड़ लो सब यहीं छूट जाने वाला है।

हमारे कर्म सहीं नहीं है तो हमारी गति कभी नहीं सुधर सकती है। ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने बुधवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि कर्म भागने से नहीं भोगने से ही छूटेंगे। कर्मफल से कभी जीवात्मा बच नहीं सकती। हम स्वयं को बड़ा मानते है तो मन में हमेशा दया ओर क्षमा के भाव रखने चाहिए। बड़ा वो ही होता जो छोटो को क्षमा कर देता है। उन्होंने भजन लाखों को पार लगाया भगवान तुम्हारी वाणी ने की प्रस्तुति देने के साथ आज से पांच दिन तक अनुपूर्वी पचरंगी करने की प्रेरणा भी प्रदान की।

धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि इस संसार से हमे जिनवाणी ही तार सकती है ओर आत्मकल्याण कर सकती है। जीवन में पांच प्रकार की अतंराय होती है जिनमें दान अतंराय भी शामिल है। हमारी भावना शुद्ध हो तो अतंराय दूर हो सकती। खाना खाने से पहले भावना होनी चाहिए कि साधु-साध्वीजी पधारे तो पहले उनको आहार बेहराउ फिर में खाना खाउ। ऐसी भावना हमेशा मन में रहने पर जीवन श्रेष्ठ बन जाता है।

उन्होंने मांगलिक के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि जिसमें पुरूषार्थ करते है उसमें धर्म है। सम मुद्रा से हाथ जोड़ कर मस्तक पर लगाते हुए मांगलिक श्रवण करना चाहिए। शांति का केन्द्र होने से धर्मस्थान स्थानक में प्रवेश करते समय सीधा पैर पहले अंदर रखना चाहिए। धर्मसभा में रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा.,तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा.,सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा।

महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा से लगा हुआ धर्म ध्यान व तप साधना का ठाठ

महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा से चातुर्मास में धर्म ध्यान व तप साधना की गंगा निरन्तर प्रवाहित हो रही है। प्रतिदिन तपस्याओं के प्रत्याख्यान लिए जा रहे है। प्रवचन हॉल मंगलवार को उस समय तपस्वी की अनुमोदना के जयकारों से गूंजायमान हो उठा जब पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद से सुश्राविका शिमलाजी सांखला ने 28 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कुसुम बेन डांगी व राखी सहलोत ने 9-9 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए।

पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. ने सभी तपस्वियों के प्रति मंगलभावनाएं व्यक्त की। बाहर से पधारे सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलालजी नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के अध्यक्ष शांतिलालजी नाहर ने किया। चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है। प्रतिदिन दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक धर्म चर्चा का समय तय है।

प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627

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