हमारे भीतर के राग द्धेष बन रहे जीवात्मा के भव भ्रमण का कारण- हितेशमुनिजी मसा… समभाव की भावना स्थाई होने पर खुल जाते मुक्ति के द्वार- सचिनमुनिजी मसा

हमारे भीतर के राग द्धेष बन रहे जीवात्मा के भव भ्रमण का कारण- हितेशमुनिजी मसा… समभाव की भावना स्थाई होने पर खुल जाते मुक्ति के द्वार- सचिनमुनिजी मसा

अम्बाजी के अंबिका जैन भवन में मुकेशमुनिजी म.सा. के सानिध्य में चातुर्मासिक प्रवचन

अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ), 21 अगस्त। मनुष्य जैसे कर्म करता है उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है। अशुभ कर्म करके हम शुभ फल की प्राप्ति नहीं कर सकते है। मनुष्य निश्चिय ओर व्यवहार में जीता है। जब निश्चय होता है तब उसी अनुरूप व्यवहार होता है ओर हम किसी को अपना सम्बन्धी मान लेते है। आत्मा अमूर्त होती है जिसे महसूस किया जा सकता है बाहरी रूप से देखा नहीं जा सकता।

ये विचार पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी ने बुधवार को श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए।

धर्मसभा में सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि संसार में जीवात्मा अपने किए हुए कर्मो के अनुसार ही सुख दुख व जन्म मरण को प्राप्त करती है।

यहीं जीवात्मा योनी बदलती रहती है ओर कभी रंक तो कभी राजा भी बन जाती है। व्यक्ति कर्म के इशारे पर ही चलता है। आत्मा महान शक्ति पर वह मोहाधीन होने से कमजोर पड़ जाती है। मोह को छोड़ने पर कर्म कमजोर ओर आत्मा बलवान बन जाती है। हमे जीवन में मोह छोड़ आत्मा के कल्याण पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने श्रावक की 12 भावना में से तीसरी भावना संसार भावना का वर्णन करते हुए कहा कि जिसमें सम्यक ज्ञान,दर्शन ओर चारित्र का सार है वहीं संसार का सार ग्रहण कर सकता है। संसार पूरी तरह असार भी नहीं है। मनुष्य भव प्राप्त किए बिना जीवात्मा को मुक्ति नहीं मिल सकती इसलिए संसार में आना तो पड़ेगा। हमे यहां जो सार है उसे ग्रहण करना है जो असार है उसे छोड़ना है।

उन्होंने कहा कि कर्मो के कारण ही मनुष्य को सुख दुःख भोगने पड़ते है। हमारे भीतर का राग द्धेष ही भव भ्रमण का कारण बनता है। हमारे अंदर के राग द्धेष मिट जाए तो आत्मा अनादि अनंत बन जाती है। धर्मसभा में प्रार्थनार्थी श्री सचिनमुनिजी म.सा. ने कहा कि अच्छी चीज को सभी चाहते हैं और बुरी को कोई नहीं चाहता।

आपके दरवाजे के आगे कोई ताजे सुगन्धित फूलों का ढेर कर दे तो उससे लड़ोगे क्या? नहीं लड़ोंगे, और अगर कोई कूड़ा-कचरा जमा कर दे तो लड़ोगे या नहीं? जरूर लड़ोगे। क्यों क्या कारण है? कारण यह है कि सुगन्ध आपको अच्छी लगती है और दुर्गन्ध बुरी लगती है।

आप दुर्गन्ध को नहीं चाहते ठीक उसी तरह जैसे लोहे के कड़े को नहीं चाहते लेकिन जिन लोगों का क्षयोपशाम परिपक्त हो चुका है, जो भव्य और महान् आत्माएँ हैं, वे सोने और लोहे में, सुगन्ध और दुर्गन्ध में, मधुर और कठोर शब्द में समभाव रखते हैं। उनकी दृष्टि तत्त्वप्रधान होती है। वे वस्तु के स्वरूप को समझते हैं। लेकिन ऐसी समदृष्टि विकसित होना सरल नहीं है, बड़ा कठिन है।

उन्होंने कहा कि आप भी समभाव अपने अन्दर उत्पन्न करने की इच्छा करते हो; लेकिन आपकी यह इच्छा स्थायी नहीं, क्षणिक है। यदि यह भावना स्थायी हो जाए तो काम बन जाए। आप भी मुक्ति के मार्ग पर शीघ्र गति से चल पड़ें। लेकिन इस भावना को स्थायी बनाना आपके हाथ में है।

आप हृदय से विषमभाव को, अपने-पराये, तेरा मेरा और मैं मेरा की भावना को निकाल फेकिए। सभी को समान समझिये कि मैं किस पर राग और द्वेष करता हूँ, सभी मेरे लिए समान है, सभी मित्र है, सभी का कल्याण हो।’ आप लोग अपनी मनःस्थिति ऐसी बना लें तो समभाव हृदय में आते देर नहीं लगेगी।

धर्मसभा में युवारत्न श्री नानेशमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया।

चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए तय है। प्रति रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता हो रही है।

प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627

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