राग ओर द्धेष के बीज से बचाए जीवन के कर्मो की फसल- इन्दुप्रभाजी मसा…. कषाय मुक्त होने की प्रेरणा प्रदान करती है जिनवाणी- चेतनाश्रीजी मसा

राग ओर द्धेष के बीज से बचाए जीवन के कर्मो की फसल- इन्दुप्रभाजी मसा…. कषाय मुक्त होने की प्रेरणा प्रदान करती है जिनवाणी- चेतनाश्रीजी मसा

गोड़ादरा स्थित महावीर भवन में चातुर्मासिक प्रवचन

सूरत(अमर छत्तीसगढ) 22 अगस्त। राग ओर द्धेष ये हमारे कर्मबंधन के दो मुख्य बीज है। ये बीज जब बोए जाते है तो ऐसी वैर विरोध की ऐसी फसल तैयार करते है जो हमारे सारे पुण्यों को समाप्त कर संसार के माया जाल में उलझाए रखते है। परमात्मा महावीर ने बताया कि मुक्ति पानी है तो राग ओर द्धेष के बीज से कर्मबंधन करने से बचना होगा।

ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने गुरूवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कर्म को जीत लिया तो हमने सब कुछ जीत लिया। कभी अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे एक दिन चूर-चूर होना ही पड़ता है। हमे अपने भाग्य यानि कर्म के अनुसार ही प्राप्त होता है।

हम चाहे जितनी दौड़भाग कर ले कर्मफल से नहीं बच सकते है। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि वंदन नमन हर किसी को नहीं बल्कि उसे ही किया जाता है जो उसके योग्य होते है। अरिहन्तों के चरणों में बारम्बार वंदन नमन किया जाता है। हमारे भीतर चार प्रकार के कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ है जो हमारे पाप को बढ़ाते ओर पुण्य का क्षय करते है। पाप की प्रकृति बहुत भारी होती है। हमे स्वयं को कषायों से बचाने का प्रयास करना चाहिए।

जिनवाणी हमे कषाय मुक्त होने की प्रेरणा प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि सामायिक साधना करते समय भी भावना शुद्ध होनी चाहिए। सामायिक के 32 दोष होते है इनमें 10 मन के,10 वचन के ओर 12 काया के होते है। धर्मसभा में रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा.,तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा.,सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा।

सुश्राविका शिमलाजी सांखला मासखमण तपस्या पूर्ण करने की ओर अग्रसर

महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा से चातुर्मास में धर्म ध्यान व तप साधना की गंगा निरन्तर प्रवाहित हो रही है। प्रवचन हॉल गुरूवार को उस समय तपस्वी की अनुमोदना के जयकारों से गूंजायमान हो उठा जब सुश्राविका शिमलाजी सांखला ने मासखमण तप की दिशा में अग्रसर होते हुए पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद से 29 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कुसुम बेन डांगी व ममता सहलोत ने 10-10 उपवास के प्रत्याख्यान लिए।

कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास, आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. ने सभी तपस्वियों के प्रति मंगलभावनाएं व्यक्त की। रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने बताया कि पर्युषण पर्व में तप आराधना को प्रोत्साहित करने के लिए तीन प्रकार के कूपन श्रावक-श्राविकाओं को प्रदान किए जाएंगे।

इनमें उपवास की अठाई करने वालों को डायमंड कूपन, आयम्बिल अठाई करने वालों को गोल्ड एवं एकासन की अठाई करने वालो को सिल्वर कूपन प्रदान किए जाएंगे। बाहर से पधारे सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलालजी नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के अध्यक्ष शांतिलालजी नाहर ने किया। चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है।

श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, लिम्बायत,गोड़ादरा,सूरत
सम्पर्क एवं आवास व्यवस्था संयोजक-
अरविन्द नानेचा 7016291955
शांतिलाल शिशोदिया 9427821813

प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627

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