आसक्ति ही हमारे दुःखों का कारण ज्ञान की करें आराधना- मुकेशमुनिजी मसा…. धर्म कार्य को कल के लिए नहीं टाले आज ही पूरे कर डाले- हरीशमुनिजी मसा

आसक्ति ही हमारे दुःखों का कारण ज्ञान की करें आराधना- मुकेशमुनिजी मसा…. धर्म कार्य को कल के लिए नहीं टाले आज ही पूरे कर डाले- हरीशमुनिजी मसा

अम्बाजी के अंबिका जैन भवन में चातुर्मासिक प्रवचन

अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ) 22 अगस्त। साधक की साधना तभी सफल होती है जब अपनी आत्मा को लौकिक प्रलोभनों से बचा कर आगे बढ़ता रहे ओर स्वयं को दोषमुक्त रख सके। जिंदगी को दोषों से बचा सके तो वह कामधेनु बन सकती है। आसक्ति संसार की ऐसी लता है जिस पर जरा व मरण के विषफल भी लगते है। इनसे बचना है तो ज्ञान की आराधना करनी होगी। जीवन में क्षणिक सुख नहीं बल्कि शाश्वत सुखों की प्राप्ति का लक्ष्य रखे क्योंकि शाश्वत सुख ही जीवात्मा का कल्याण कर सकता है।

ये विचार पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी ने गुरूवार को श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि संसार की समस्त आत्मा आसक्ति को लेकर परिगमन करती है। आसक्ति अनादिकाल से दुःखों का कारण है। आसक्ति मनुष्य को मोह से चिपकाती है। जीवन दर्पण के समान होना चाहिए जो किसी को भी अपने से चिपकने नहीं देता है। मुनिश्री ने कहा कि जितनी आसक्ति कम कर सकेंगे उतना ही आत्मकल्याण के नजदीक पहुचेंगे।

प्रेम को संयमित रखने पर ही जीवन में आनंद का वातावरण बनेगा। धर्मसभा में सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि अच्छे कार्य करने में कभी देरी नहीं करनी चाहिए ओर गलत कार्य करने में कभी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए। कल का कोई भरोसा नहीं होने से जो धर्म के कार्य कल करने की सोच है उन्हें आज ही पूर्ण कर ले। जिंदगी कब समाप्त हो जाएगी कोई नहीं जानता है।

मन में जब भी अशुभ विचार आए तो उन पर अमल करने की बजाय उन्हें कल के लिए टाल देना चाहिए क्योंकि कल कभी नहीं आता है। जीवन को सफल बनाने के लिए ज्ञान,दर्शन व चारित्र की आराधना करते रहना चाहिए। धर्मसभा में युवारत्न नानेशमुनिजी म.सा. ने कहा कि परिवर्तन संसार का नियम है पर इंसान की प्रवति है कि वह स्वयं में परिवर्तन नहीं करता। गलत प्रवृतियों को छोड़ नहीं पाता जबकि अच्छी प्रवृतियों का त्याग कर देता है।

सुख शांति चाहते है तो उस अनुरूप अपनी प्रवृतियों में भी बदलाव करना होगा। जो ऐसा नहीं कर सकता वह समाधान व सुख की प्राप्ति नहीं कर सकता है। हमारे कर्म दुःख बढ़ाने वाले होंगे तो सुख कैसे मिलेगा। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. एवं प्रार्थनार्थी श्री सचिनमुनिजी म.सा.का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया।

धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए तय है। प्रति रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता हो रही है।

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