पुण्यशालियों को मिलता तपस्या करने का सौभाग्य,अनुमोदना से भी पुण्यार्जन-इन्दुप्रभाजी मसा… दूसरों के नहीं अपने दोष देखे ओर मन की सफाई करें- दर्शनप्रभाजी मसा

पुण्यशालियों को मिलता तपस्या करने का सौभाग्य,अनुमोदना से भी पुण्यार्जन-इन्दुप्रभाजी मसा… दूसरों के नहीं अपने दोष देखे ओर मन की सफाई करें- दर्शनप्रभाजी मसा

महावीर भवन में तपस्या की बहार, मासखमण तपस्वी शिमलाजी का अभिनंदन

सूरत(अमर छत्तीसगढ), 24 अगस्त। तपस्या हर कोई नहीं कर सकता, तपसाधना करने का सौभाग्य उन्हें मिलता है जो पुण्यशाली होते है। मासखमण जैसी तपस्या करने वाले तपस्वी का तन-मन दोनों निर्मल व पावन हो जाते है। तपस्या कर्म निर्जरा का उत्तम माध्यम है। तपस्या करने के साथ तप की अनुमोदना भी धर्मलाभ प्रदान करती है। इसलिए कोई तपस्या नहीं कर सके तो भी तपस्वी अनुमोदना करने में पीछे नहीं रहे। तपस्वी से प्रेरणा लेकर हम भी अपनी सामर्थ्य अनुसार तपस्या करने का भाव रखे।

ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने शनिवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान मासखमण की तपस्या पूर्ण करने वाली तपस्वी सुश्राविका शिमलाजी सांखला के तप की अनुमोदना करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि पर्वाधिराज पर्युषठ के आठो दिन 24 घंटे का नवकार मंत्र जाप होगा। जाप करने का अवसर भी भाग्यशालियों को ही मिलता है। जिनके कर्म अन्तराय होती है वह जाप भी नहीं कर पाते है।

धर्मसभा में रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि संसार में रहना बुरा नहीं लेकिन अपने अंदर भी झांकते रहना चाहिए ओर आत्मा का कल्याण कैसे हो सकता यह सोचते रहे ओर उसी अनुरूप जीवन जीने का प्रयास करे। दूसरों के दोष तलाशने की बजाय स्वयं के दोष देखे। दूसरों के अवगुण नहीं गुण अपनाने का प्रयास करे। उन्होंने कहा कि आजकल मोबाइल युग में घरों का वातावरण बदल गया है। मां धर्म के कार्य में सहयोग कम ओर पाप के कार्य में सहयोग ज्यादा करती है। हमेशा धर्म के साथ कैसे जोड़ा जा सकता इस पर चिंतना होना चाहिए न कि बच्चों को धर्म से कैसे दूर रखे ये सोचा जाए।

उन्होंने कहा कि हम किसी की धर्म साधना में बाधक बनते है तो अन्तराय कर्म का बंध होता है। हम किसी का सहयोगी बनना चाहिए न की दीवार की भूमिका निभाए। तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि सुबाहुकुमार सुपात्र दान कर सुबाहु अणगार बन गए। पौषध करने का जैन धर्म में विशेष महत्व है।

श्रावक पहले अपने लिए पौषधशालाएं बनवाते थे। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व आ रहे है। इसमें सभी अधिकाधिक पोषध करने की भावना रखे। उन्होंने कहा कि कल की परवाह किए बिना आज के पलों का आनंद उठाना चाहिए। वर्तमान युग में राजा हो या रंक कोई सुखी नहीं है सब चिंताग्रस्त है। धर्म की शरण इंसान को चिंतामुक्त कर सकती है। विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. ने भजन वश में करना है चंचल मन की प्रस्तुति दी। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा.,सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा।

मासखमण तपस्वी शिमलाजी सांखला का श्रीसंघ की ओर से अभिनंदन

महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा से चातुर्मास में धर्म साधना व त्याग तपस्या की अविरल धारा प्रवाहित हो रही है। प्रवचन हॉल शनिवार को उस समय तपस्वी सुश्राविका शिमलाजी सांखला की अनुमोदना के जयकारों से गूंजायमान हो उठा जब उन्होंने मासखमण की तपस्या पूर्ण करते हुए पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद से 31 उपवास के प्रत्याख्यान लिए।

उनका श्रीसंघ की ओर से अध्यक्ष शांतिलाल नाहर के नेतृत्व में स्वागत-अभिनंदन किया गया। संघ की ओर से अभिनंदन पत्र समर्पित किया गया। अभिनंदन से पूर्व गीतिका के माध्यम से भी तप की अनुमोदना की गई। तपस्वियों के सम्मान में शुक्रवार दोपहर चौबीसी का आयोजन भी किया गया जिनमें कई उप संघों के महिला मण्डल भी शामिल हुए।

कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। मण्डल की सदस्य श्रीमती सुनीता डांगी के वर्षीतप की आराधना भी गतिमान है। बाहर से पधारे सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलालजी नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राकेश गन्ना ने किया। चातुर्मास में प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन हो रहे है।

प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627

Chhattisgarh