श्री शीतल राज मसा ने कहा स्वाध्याय करके विनय, विवेक और ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है…. 1 सितंबर को पर्युषण महापर्व, बड़ी संख्या में दया, प्रतिक्रमण, संवर

श्री शीतल राज मसा ने कहा स्वाध्याय करके विनय, विवेक और ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है…. 1 सितंबर को पर्युषण महापर्व, बड़ी संख्या में दया, प्रतिक्रमण, संवर

रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 25 अगस्त। तीर्थंकर भगवंतो ने भव्य जीवो के आत्म कल्याण द्वारा द्वादशवांगी की परसना कर भव्य जीवो को व्याख्यान और उपदेश दिया । उस वाणी को श्रवण कर अनेक तीर गए, वर्तमान में भी तीरते हैं और भविष्य काल में भी तीरते रहेंगे। महापुरुषों भगवंतो की वाणी एक समान होते हैं। भगवंतो के ज्ञान से भव्य जीवो का कल्याण हुवा। यह विचार पुजारी पार्क के मानस भवन में विराजित आचार्य श्री शीतल राज मसा ने श्रावक श्राविकाओ का को समझाते हुए कहीं ।

महान दुर्लभ मनुष्य भव को प्राप्त कर निश्चय कर सिद्ध और बुद्ध होना है। कठिन साधना में महापुरुषों आए हुए उपसर्ग और परिसर्ग को सहन करते हैं, कष्ट दो तरह के होते हैं एक दिए जाते हैं दूसरा उत्पन्न होता है । सर्प ने भगवान को डसा क्योंकि कभी ना कभी भगवान ने उन्हें कष्ट दिया होगा । तीर्थंकरों के अतिशय में जो उनका खून होता है वह अमृत जैसा होता है ।

गुरुदेव ने आगे समझते हुए कहा किसी के द्वारा दिया गया कष्ट उपसर्ग है उपसर्ग शास्त्री भाषा में कहा जाता है । और जो हमारे द्वारा दिया गया कष्ट परिसर्ग कहलाता है। परिसर्ग के दो रूप अनुकूल एवं प्रतिकूल होता है । संतों को तो 22 कष्ट हैं लेकिन तुम्हारे तो अनगिनत कष्ट है । परिसर्ग का मतलब आए हुए कष्टो को सहन करना होता है। 22 परिसर्ग में जिसमें 20 परिसर्ग प्रतिकूल और दो परिसर्ग अनुकूल है ।

श्री शीतल राज मसा ने कहा स्वाध्याय करके विनय, विवेक और ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। जीवन में केवल ज्ञान से कल्याण नहीं होगा । जितना ज्ञान बड़े उसके साथ विनय भी हो तो विवेक भी आ जाएगा, तीनों का होना आवश्यक है। केवल एक ही आ जावे तो पूरा नहीं होगा । ज्ञान, विनय, विवेक के साथ धर्म की साधना, धर्म का प्रचार करने से हमारा पुण्य होगा । जब तक हमारे जीवन में विवेक नहीं आएगा तब तक ज्ञान और विनय अधूरा है।

द्वादशवांगी का पहला अध्याय का नाम आचारंग है आचारंग में लोगों ने अपने-अपने धर्म की परिभाषा की परंतु भगवान ने तीन अक्षर विवेक को प्रमुख बताया । हम लोग ज्ञान के साथ विनय के साथ विवेक की आराधना करें ।

गुरुदेव ने कहा आज रविवार का दिन है हमारी साधना और आराधना के साथ क्षय जीवो की रक्षा करनी है। दया करने के समय हिंसा से बचें आप हम अज्ञानता, मोह की दशा में पिकनिक, मोबाइल, बाहर जाकर पाप करते हैं । दया कर उन सब चीजों से बचा जा सकता है। गुरुदेव ने कहा एक सितंबर को पर्युषण महापर्व प्रारंभ होने जा रहा है जो कि रविवार का दिन है ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंचकर दया कर धर्म लाभ लेने ।

इस अवसर पर प्रमुख रूप से समाज के वरिष्ठ सुरेश जैन, उम्मेदमल सुराना, दीपेश संचेती, अनिल संचेती, सी एल जैन सोना, मोहनलाल चोपड़ा, प्रमोद जैन, गेंदमल बाघमार, महिपाल सुराणा, शोभा संचेती, मोहनी बागरेचा, प्रियंका बागरेचा प्रकाश जैन, संजय नाहटा, श्री ओस्तवाल, सहित समाज के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे । प्रवचन के बाद श्रावक प्रेमचंद भंडारी द्वारा सभी तपस्यीवो की अनुमोदन की तथा तपस्या को निरंतर जारी रखने के लिए पचखान गुरुदेव से लिया । प्रतिदिननुसार तपस्या, संवर करने वालों का सम्मान बहुमान चातुर्मास लाभार्थी परिवार के दीपेश संचेती ने स्मृति चिन्ह देकर बहुमान किया ।

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