भारत के गाँव, शहर, गली-गली में,
नारी पर अत्याचार हो रहा है माधव।
चीख, पुकार रही बेबस, असहाय स्त्री,
कहाँ हो लाज बचाने वाले प्रभु राघव?
कोई रावण बन अपहरण कर रहा है,
फिर से अग्नि परीक्षा दिलाने सीता को।
कोई दुशासन बन चीर हरण कर रहा है,
लज्जित करने द्रौपदी की अस्मिता को।।
सरकार खामोश बैठी है राजसिंहासन,
न्याय की आँखों में काली पट्टी बंधी है।
जनता मोमबत्ती जलाकर शोकाकुल,
पीड़िता इंसाफ की गुहार लगा रही है।।
युग अंधा है या फिर हम सब अंधे हैं,
कलियुग में राक्षसों का मचा हाहाकार।
फिर से किसी देवता को आना पड़ेगा?
क्या कोई नहीं जो रोक सके बलात्कार?
कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़
जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई