रायपुर/खैरागढ़ (अमर छत्तीसगढ) 25 अगस्त।
पुण्यात्माएं अपने अस्तित्व काल में ही अपने कार्यों से , अपने व्यवहार से और अपनी वाणी से समाज को एक सार्थक सन्देश देते चली जाती हैं। यह संदेश भावी पीढ़ी के लिए अनुकरणीय मिसाल बन जाता है और हम उनका पुण्य स्मरण कर स्वयं के लिए प्रेरणा का मार्ग खोलने की कोशिश करते हैं।
वीर माता श्रीमती कमला बाई डाकलिया की 27 वीं पुण्यतिथि पर एक बार पुनः उनकी तपस्वी शक्तियों का स्मरण करते गौरव का अनुभव हो रहा है। वे सशरीर हमारे मध्य भले नहीं है। लेकिन उनके विचार – आचार और कार्यों का साया समस्त
डाकलिया परिवार के साथ जैन समाज की धरोहर है।
मनोहर गौशाला आपकी ही प्रेरणा का साकार उदाहरण है। आपका जीवन बालवय से ही तपस्वी रहा है। मात्र उम्र 9 वर्ष की अबोध उम्र में ही आपने आजीवन ‘चोविहार’ का व्रत लिया। यही नहीं, अपने जीवन काल में 5000 से अधिक ‘एकासना’ 5000 से अधिक उपवास किए। इतना ही नहीं, 5000 से अधिक ‘आयंबिल तप’ करने के साथ ही 2 ‘मास खमन’ भी पूरे किए। साथ में 45 ‘अट्ठाई तप’ , 75 ‘नवपद जी की ओली’ सहित 63 ‘वर्धमान तप की ओली’ और ‘नवानुतप’ , ‘उपधान तप’ आदि से अपने जीवन की दिशा तैयार की।
सकल समाज आपको परम पूज्या गुरूवर्या श्री भक्तामर प्रसारिका श्री मृगावती श्रीजी महाराज साहब की वीर माता के रूप में भी जानता है।
आज आपके स्मृति दिवस पर विनम्र स्मरण करते चरणों में कोटि कोटि वंदन अर्पित करते हैं।