काठमाण्डौ नेपाल(अमर छत्तीसगढ) 26 अगस्त।
।।स्वभाव परिवर्तन सप्ताह का आयोजन। ।
अहं विनाश का मार्ग है जबकि अर्हं विकास का मार्ग । जिंदगी में आदमी अहं का प्रदर्शन होता ही रहता है। अहं प्रदर्शन के कारण वह अनचाहे तनावों को भी आमंत्रित कर लेता है। अपेक्षा है अहं से अर्हं की यात्रा करें। अर्हं प्रभावशाली जैन मंत्र है। अहं को छोडकर अर्हं की दिशा में प्रस्थान करना चाहिए। अहंकार ममकार साधना में विध्न बनते हैं, वहीं अर्हं की साधना से हम सिद्धि तक पहुंच सकते हैं।
उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रबुद्ध सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी ने आज “स्वभाव परिवर्तन” .सप्ताह के अंतर्गत आज “करें अहं से अर्हं की यात्रा” विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किए ।
आपने आगे कहा- ‘अ’ वर्णमाला का आदि अक्षर है तथा ‘ह’ अंतिम अक्षर है। समस्त ज्ञान ‘अ’ और ‘ह’ में समाहित है। इसलिए ‘अ’ अमृत से भरा हुआ अक्षय भंडार है। ‘र’ तेजस्व को प्रकट करता है। ‘ह’ प्राण/ जीवनी शक्ति का स्रोत है।
श्वेतचन्द्र रेखा में श्वेत रंग का बिन्दु अनुपम शक्ति प्रदाता है। यह अर्हं सब सिद्धियों को देने वाला है। मुनि रमेश कुमार जी ने अर्हं की लय बद्ध जप के कुछ प्रयोग भी इस इस अवसर पर कराये।
मुनि रत्न कुमार जी ने भी इस अवसर पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किए।
संप्रसारक
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा काठमाण्डौ नेपाल