देने का सामर्थ्य रखने के बाद भी जो देता नहीं भिखारी के समान…. सवाल पापी पेट का नहीं पापी मन का जो कभी तृप्त नहीं होता-समकितमुनिजी

देने का सामर्थ्य रखने के बाद भी जो देता नहीं भिखारी के समान…. सवाल पापी पेट का नहीं पापी मन का जो कभी तृप्त नहीं होता-समकितमुनिजी

ग्रेटर हैदराबाद श्रीसंघ के तत्वावधान में चातुर्मासिक प्रवचन

हैदराबाद(अमर छत्तीसगढ) , 27 अगस्त। मानव जीवन गुलाम बनने के लिए नहीं मिला है। तन,मन व धन किसी का गुलाम नहीं बनना है। यदि हम धन का उपभोग नहीं कर पा रहे ओर वह बैंकों में जमा है तो मतलब हम धन के मालिक नहीं गुलाम है। तन स्वस्थ ओर प्रसन्न होने के बाद भी त्याग तपस्या नहीं कर पा रहे है तो यह तन की गुलामी है। मन से अच्छा सोच नहीं पाते तो मन के भी गुलाम है। सवाल पापी पेट का नहीं है वह तो दो रोटी से फुल हो जाता है सवाल पापी मन का है जो कभी तृप्त नहीं होता। पेट तो बिना खाए भी दो-चार दिन रह सकता पर पापी मन कुछ घंटे भी बर्दाश्त नहीं कर पाता है।

ये विचार श्रमण संघीय सलाहकार राजर्षि भीष्म पितामह पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. के ़सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में मंगलवार को चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि पर्वाधिराज पर्युषण का अवसर मन का राजा बनने का समय है। ऐसा कर लिया तो इस समय तप त्याग,दान पुण्य कर पाएंगे। जो मन के राजा होते है दान वहीं कर पाते है। दौलत बहुत है लेकिन देने का मन नहीं करता है तो वह दुर्गति करवाएगी।

जो अपनी संपति का एक प्रतिशत भी दान नहीं करना चाहे वह मन के भिखारी होते है। पुण्य ने हमे धन दिया है तो हम उसे वापस देते रहे। मुनिश्री ने कहा कि जरूरी नहीं कि जिसके पास कुछ नहीं वही भिखारी है दुनिया में ऐसे भी लोग है जिनके पास सब कुछ होने पर भी कोई मांगने आ जाए तो दुविधा में रहते है कि दे या नहीं दे। जो देने का सामर्थ्य रखने के बाद भी नहीं देते वही भिखारी है।

उन्होंने कहा कि जिंदगी में 50-60 वर्ष का होने के बाद भी दौड़भाग नहीं रूक रही है। कब तक दूसरों के लिए दौड़ते रहेंगे कभी अपने लिए भी सोचे। जीवन में जो कमाया उसका आनंद भी ले। ऐसा नहीं हो कि दौड़ते-दौड़ते ही प्राणान्त हो जाए ओर धर्म, तप त्याग करना भी पेडिंग में ही रह जाए।

पाली व डूंगला से ले प्रेरणा,पर्युषण में प्रवचन के बाद ही खोले प्रतिष्ठान

प्रज्ञामहर्षि डॉ.समकितमुनिजी म.सा. ने एक सितम्बर से शुरू हो रहे पर्वाधिराज पर्युषण पर्व में अधिकाधिक धर्म ध्यान व तप त्याग करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि ये हम जैनियों का सबसे बड़ा त्यौहार है ओर इस समय भी जो प्रवचन सुनने से पहले ही प्रतिष्ठान खोलकर बैठ जाए समझ लेना वह मन के भिखारी है।

उन्होेने कहा कि हमे पाली, डूंगला जैसे स्थानों से प्रेरणा लेनी चाहिए जो पर्युषण के आठो दिन पूरे प्रतिष्ठान बंद रख धर्म साधना करते है। हम इतना तो कर ही सकते है कि पर्युषण में जिनवाणी श्रवण करने के बाद ही कार्यस्थल या प्रतिष्ठान पर जाए। अपने पर्व के प्रति हमारी श्रद्धा पूरी नहीं होगी तो दूसरे कैसे जुड़ेंगे। हम छुट्टियों में घूमने जाने का प्लान बना सकते है पर पर्युषण में धर्म तप त्याग कैसे करेंगे इसका प्लान नहीं बनाते।

चार दिवसीय प्रवचनमाला पापा की परी कल से

प्रवचन के शुरू में गायनकुशल जयवन्तमुनिजी म.सा. ने भजन ‘‘प्रभु नाम जाप से नवजीवन मिलता है’’ की प्रस्तुति दी। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा.का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। प्रवचन में श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास, आयम्बिल,एकासन आदि तप के प्रत्याख्यान भी लिए। चातुर्मास के तहत गुरूवार 28 अगस्त से परिवार मे पिता-पुत्री के रिश्ते को महत्व को प्रदर्शित करने वाली चार दिवसीय प्रवचनमाला पापा की परी का आयोजन होगा।

इस प्रवचनमाला को श्रवण करने के लिए सपरिवार व मित्रों के साथ आने की प्रेरणा दी गई है। धर्मसभा में जैन कॉन्फ्रेंस वयावच्च योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष रतन सी. सिंघवी सहित विभिन्न स्थानों से आए श्रावक-श्राविका भी मौजूद थे। धर्मसभा का संचालन ग्रेटर हैदराबाद श्रीसंघ के महामंत्री सज्जनराज गांधी ने किया।

निलेश कांठेड़
मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024
मो.9829537627

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