समता की श्रेष्ठ साधना है सामायिक …. विषमता में भी समता से जीना सीखें – मुनि सुधाकर

समता की श्रेष्ठ साधना है सामायिक …. विषमता में भी समता से जीना सीखें – मुनि सुधाकर

रायपुर (अमर छत्तीसगढ) 3 सितंबर।

जीवन को कलापूर्ण और सफल बनाने के लिए विषमता में भी समता से जीना अर्थात सामायिक में रमन करना सीखना जरूरी है। परिवार और समाज में नाना प्रकार के स्वभाव और संस्कार के व्यक्ति होते हैं। उस स्थिति में समता और सामंजस्य का अभ्यास बहुत जरूरी होता है। सामायिक हमें समता में रहने का अभ्यास कराती है। जिसका मन स्वस्थ और सन्तुलित होता है वह प्रतिकूल परिस्थिति को भी अनुकूल बना सकता है।

भावावेश के प्रभाव से हमारा मन अशांत और अस्वस्थ होता है। इस स्थिति में निर्णय सही नहीं होता। जो परिवार और समाज के मुखिया होते है उनके लिए समता और शान्ति की साधना जरूरी है। तभी वे नेतृत्व की जिम्मेदारी को सफलता से पूरा कर सकते है। उक्त उदगार रायपुर स्थित श्री लाल गंगा पटवा भवन, टैगोर नगर में गतिमान चातुर्मासिक प्रवास अंतर्गत मनाये जा रहे जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्व ‘पर्युषण महापर्व’ के तृतीय दिवस “सामयिक दिवस” पर आज दिनांक – 03/09/2024 को आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री सुधाकर जी ने कहे।


मुनिश्री ने आगे कहा कि भारत का दाम्पत्य जीवन सारे संसार में आदर्श माना जाता है परंतु आज उसमें भी तनाव और टकराव दिखाई दे रहा है। संयम और सहनशीलता के द्वारा ही इसका समाधान हो सकता है।


मुनि नरेश कुमार जी ने सामायिक पर प्रेरणादायक गीतिका का संगान किया। आज सामायिक दिवस को अभातेयुप अपनी विश्व भर में फैली तेयुप शाखाओं के माध्यम से अभिनव सामायिक के रूप में मना रहा है तदर्थ तेयुप,रायपुर द्वारा भी मुनिश्री की सन्निधि में अभिनव सामायिक का आयोजन किया गया। जिसमें सम्पूर्ण तेरापंथ समाज के साथ विशेष रूप से तेयुप, रायपुर सदस्य पकंज बैद, नवीन दुगड़, योगेश बाफना, संदीप बोथरा, निर्मल गांधी, गौरव दुगड़, वीरेंद्र डागा की सहभागिता रही। मंगलाचरण तेमम व तेयुप द्वारा किया गया।

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