हैदराबाद(अमर छत्तीसगढ), 8 सितम्बर। श्रमण संघीय सलाहकार राजर्षि भीष्म पितामह पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. के ़सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि, वाणी के जादूगर पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में अष्ट दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के अंतिम दिन संवत्सरी महापर्व पर जिनवाणी सुनने के लिए श्रावक-श्राविकाओं का सैलाब सा उमड़ रहा था, क्या बच्चें ओर क्या बुर्जुग कोई भी जप, तप, भक्ति की अविरल धारा में डूबकी लगा कर्म निर्जरा करने में पीछे नहीं रहना चाहता था। संवत्सरी पर तपस्याओं का भी ठाठ लगा। कोई 15 तो कोई 20 किलोमीटर की दूरी से संवत्सरी महापर्व पर जिनवाणी एवं स्वाध्याय सुनने की भावना से आया था।
प्रज्ञामहर्षि डॉ.समकितमुनिजी म.सा. ने प्रवचन में कहा कि संवत्सरी मन के सभी तरह के वैर विरोध मिटा खमत खामणा करने का दिन है। खामेमी सव्वे जीवा का संदेश देने वाले इस पर्व पर हमे सबसे पहले उनसे क्षमा मांगनी है जिनसे किसी भी कारण से हमारी बोलचाल बंद है। सीधे बात न कर सके तो संदेश भेज दे लेकिन क्षमा अवश्य मांगे तभी संवत्सरी पर्व मनाना सार्थक होगा।
क्षमा मांगने से हमारा अभिमान गलता है ओर विनम्रता के भाव आते है। उन्होंने कहा कि जिनसे बोलचाल बंद है उनसे क्षमा मांगने में हिचके नहीं चाहे हम जानते हो कि गलती हमारी नहीं है क्योंकि बातचीत बंद करने से रिश्ते खत्म नहीं होते है। सच्चे मन से संवत्सरी की आराधना कर ले तो संसार सागर से पार हो सकते है।
हम ऐसा नहीं करते इसीलिए जन्म-मरण के बंधन से मुक्त नहीं हो पा रहे है। यदि सिद्ध बनना है तो मन में क्षमा के भाव रखने होंगे। त्याग तपस्या केवल पर्युषण तक सीमित नहीं कर उसे अपनी जीवनशैली का अंग बनाए। मुनिश्री ने कहा कि कभी भी अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए दूसरों को उल्लू बनाने का प्रयास नहीं करे क्योंकि जो ऐसा करते है वह भविष्य में उल्लू बनने की तैयारी करते है।
उल्लू बनाने ओर बनने वाले दोनों की दुर्गति होती है। कोई हमे उल्लू बनाने का प्रयास करे तो अपनी बुद्धि का उपयोग करे दूसरों को दोष नहीं दे। अपना स्वाभिमान हमेशा कायम रखे। उसे ही गिरवी रख दिया तो फिर बाकी क्या रह जाएगा। धर्मसभा के शुरू में पूर्व गायनकुशल जयवंतमुनिजी म.सा. द्वारा अंतगड़ दशांग सूत्र के मूल पाठ का वाचन किया गया। उन्होंने भजन ‘‘जोड़ो तप से आत्मा को संवत्सरी पर्व मनाना है’’ की प्रस्तुति दी।
प्रेरणा कुशल भवान्त मुनिजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। धर्मसभा में श्रीसंघ के पदाधिकारियों ने भी विचार व्यक्त करते हुए पूज्य समकितमुनिजी म.सा. आदि ठाणा से किसी भी प्रकार की अविनय असाधना हुई हो तो क्षमायाचना की। धर्मसभा का संचालन ग्रेटर हैदराबाद संघ के महामंत्री सज्जनराज गांधी ने किया। सोमवार सुबह 7.30 बजे सामूहिक क्षमायाचना कार्यक्रम होगा। मंगलवार से नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक होंगे।
संवत्सरी पर त्याग तपस्या का लगा ठाठ
पर्युषण के दौरान तपस्याओं का ठाठ लगा रहा। पर्युषण के अंतिम दिन कई श्रावक-श्राविकाओं ने अठाई या उससे अधिक तपस्या के प्रत्याख्यान लिए तो विशाल पांडाल अनुमोदना व हर्ष-हर्ष के जयकारों से गूंजायमान हो उठा। इनके साथ ही कई श्रावक-श्राविकाओं ने पांच, तेला, बेला, उपवास, आयम्बिल, एकासन आदि तप प्रत्याख्यान भी लिए।
अनुमोदना के जयकारो की गूंज के बीच पूज्य समकितमुनिजी म.सा.के मुखारबिंद से सुश्राविका शकुन्तला बोहरा, वनिता खिंवेसरा एवं श्रेष्ठा पीपाड़ा ने 11-11 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने छह, पांच,चार,तेला, बेला, उपवास, आयम्बिल व एकासन के प्रत्याख्यान भी लिए। समकितमुनिजी ने तपस्वियों के लिए मंगलभावनाएं व्यक्त की। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. की प्रेरणा से पर्युषण में करीब 200 एकासन तप की अठाई हुई। करीब 35 तपस्वियों ने उपवास की अठाई की।
अंतगड़ दशांग सूत्र वांचना का समापन
पर्युषण के अंतिम दिन सुबह 8.30 बजे से अंतगड़ दशांग सूत्र के मूल पाठ का वाचन सरलमना विजयमुनिजी ने सम्पन्न किया। विवेचना करते हुए पूज्य समकितमुनिजी ने कहा कि आर्य सुधर्मास्वामी से उनके शिष्य आर्य जम्बूस्वामी पूछते है कि आठवें अंग सूत्र में परमात्मा प्रभु महावीर ने क्या फरमाया ओर किस विषय का प्रतिपादन किया। उस समय सुधर्मास्वामी ने अपने मुखारबिंद से जो फरमाया वही अंतगढ़ दशांग सूत्र के अंदर है।
इस आठवें अंग में प्रभु महावीर ने आठ वर्ग का प्रतिपादन किया जिनमें 90 अध्ययन है। प्रत्येक अध्ययन में एक-एक अंतकृत केवली (सिद्धात्मा) का वर्णन है जिनका इन आठ दिन में वांचन एवं विवेचना हुई। उन्होंने कहा कि इस विवेचना के दौरान जिनाज्ञा के विरूद्ध कुछ भी कहने में आया हो तो मिच्छामी दुक्कड़म करते है। उन्होंने कहा कि जिन्होेंने भी आगम का श्रवण किया वह आने वाले पर्युषण से पूर्व एक वर्ष में 120 दिन किसी ने किसी तरह का त्याग अवश्य करें।
पापी देवता विषय पर तीन दिवसीय प्रवचनमाला मंगलवार से
समकितमुनिजी ने कहा कि चाहे पर्युषण पर्व सम्पन्न हो गया हो जिनवाणी के प्रति हमारा इतना अहोभाव रहना चाहिए कि कुछ भी हो जाए रोज आधे-एक घंटे जिनवाणी श्रवण तो करना ही है। चातुर्मासिक आयोजनों के तहत 10 से 12 सितम्बर तक गायनकुशल जयवंतमुनिजी म.सा. के मुखारबिंद से पापी देवता विषय पर विशेष प्रवचनमाला होगी। इसी तरह 13 से 17 सितम्बर तक पूज्य समकितमुनिजी म.सा. के सानिध्य में पांच दिवसीय पंचरंगा सजोड़े आगम विधान होगा। इसमें पांच दिन सुबह 9 बजे से सुरक्षा बेल्ट तैयार करने का विधान कराया जाएगा। श्रमण संघीय आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनिजी म.सा. की जयंति 18 सितम्बर को मनाई जाएगी। चातुर्मास में 19 से 22 सितम्बर तक श्री कृष्ण कथा पर चार दिवसीय विशेष प्रवचनमाला होगी।
इसी तरह 29 सितम्बर को व्रति श्रावक दीक्षा समारोह होगा। इसमें श्रावक-श्राविकाएं 12 व्रत में से न्यूनतम एक व्रत की दीक्षा ग्रहण करेंगे। चातुर्मास में 2 अक्टूबर को सवा लाख लोगस्स की महाआराधना होगी। आयम्बिल तप के महान आराधक पूज्य गुरूदेव भीष्म पितामह राजर्षि सुुमतिप्रकाशजी म.सा. की जयंति 9 अक्टूबर को आयम्बिल दिवस के रूप में मनाई जाएगी।
निलेश कांठेड़
मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024
मो.9829537627