जैन धर्म के प्रसार में जुटे दुबई के नन्हें सितारे जैनम और जिविका…. भारत में 50 दिनों में 125 से ज्यादा स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित करने का है लक्ष्य

जैन धर्म के प्रसार में जुटे दुबई के नन्हें सितारे जैनम और जिविका…. भारत में 50 दिनों में 125 से ज्यादा स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित करने का है लक्ष्य

रायपुर/पुणे/दुबई(अमर छत्तीसगढ) 10 सितंबर।

दुबई से आए जैनम (12 साल) और जिविका (10 साल) ने अपने अद्वितीय कर्तृत्व से न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में जैन धर्म के प्रसार के प्रति अपनी गहरी निष्ठा और समर्पण का परिचय दिया है। इन नन्हें जैन धर्म के अनुयायियों का उद्देश्य मात्र अपनी आस्था का प्रचार करना नहीं है, बल्कि जीवन में महावीर स्वामी के सिद्धांतों को आत्मसात करने और उन्हें जीवन में उतारने के प्रति लोगों को प्रेरित करना है।

जैन धर्म का प्रसारः

दुबई में रहकर भी जैनम और जिविका ने अपनी जड़ों से गहरा जुड़ाव बनाए रखा है। उन्होंने जैन धर्म के आचार-विचार, सिद्धांतों और परंपराओं को न केवल स्वयं अपनाया है, बल्कि दूसरों तक भी पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। भारत के इस दौरे में उनका लक्ष्य 50 दिनों में 125 से ज्यादा स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित कर अधिकतम बच्चों, माता-पिता और समाज के सभी वर्गों को महावीर स्वामी के सिद्धांतों से अवगत कराना है।

जैनम और जिविका, जिन्होंने दुबई में रहते हुए भी अपने धर्म और संस्कृति को नहीं छोड़ा, अब भारत में जैन धर्म का संदेश फैलाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के विभित्र हिस्सों में जाकर जैन धर्म के मुख्य सिद्धांतों जैसे अहिंसा, अपरिग्रह, और अनेकांतवाद को सरल और समझने योग्य भाषा में समझाया। इन कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे, जिन्होंने इन नन्हें प्रचारकों के संदेशों को सराहा और उनसे प्रेरित हुए।

उनके दादा-दादी और माता-पिता भी जैन धर्म के प्रति अपनी गहरी आस्था रखते हैं और दुबई में धार्मिक कार्यों में अग्रेसर हैं। जैनम और जिविका के परिवार ने 2020 में दुबई में श्रमण संघ की स्थापना की थी और वे नियमित रूप से वहां पाठशालाओं का आयोजन करते हैं, जहां जैन बच्चे अपने धर्म और उसकी शिक्षाओं के बारे में सीखते हैं। उन्होंने दुबई में पर्युषण पर्व और महावीर जयंती जैसी धार्मिक गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया है।

भविष्य की योजनाएं:

जैनम और जिविका के इस दौरे का मुख्य उद्देश्य लोगों को यह बताना है कि जैन धर्म सिर्फ एक आस्था नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का एक तरीका है। वे लोगों को प्रेरित कर रहे हैं कि कैसे जैन धर्म के सिद्धांतों को अपनाकर एक सच्चे और सफल जीवन की दिशा में कदम बढ़ाया जा सकता है। वे विशेष रूप से बच्चों और

युवाओं को इस ओर प्रेरित कर रहे हैं कि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें और आधुनिकता की दौड़ में अपनी पहचान न खोएं।

समाज की प्रतिक्रियाः

विभिन्न स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों में उपस्थित लोगों ने जैनम और जिविका की तारीफों के पुल बांधे हैं। लोगों का कहना है कि इन बच्चों ने इतनी छोटी उम्र में जो काम किया है, वह काबिले तारीफ है। हर्षल छाजेड, जय पगार और शाहिस्ता अन्सारी जैसे गणमान्य व्यक्तियों ने भी इन बच्चों की मेहनत और समर्पण की सराहना की है। उन्होंने कहा कि जैनम और जिविका की यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणादायक अभियान है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बनेगा।

जैनम और जिविका के इस प्रयास ने यह साबित कर दिया है कि उम्र कोई मायने नहीं रखती। महत्वपूर्ण है तो सिर्फ आपके विचार, आपका समर्पण और आपका जुनून। इन बच्चों ने जिस तरह से जैन धर्म के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाई है, वह निस्संदेह एक अनुकरणीय उदाहरण है। यह बच्चों की एक छोटी सी पहल है, जो न केवल आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि आने वाले समय के लिए भी एक नई दिशा प्रदान करती है।

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