नवतत्व का ज्ञान अध्यात्म की नींव है जिसे पाकर जीव कल्याण के पथ पर बढ़ता है- मुनिश्री शीतल राज मसा

नवतत्व का ज्ञान अध्यात्म की नींव है जिसे पाकर जीव कल्याण के पथ पर बढ़ता है- मुनिश्री शीतल राज मसा

रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 16 सितंबर। स्थानीय पुजारी पार्क स्थित मानस भवन में आज अपने नियमित प्रवचन पर बोलते हुए जैन मुनि श्री शीतल राज मसा ने कहा नवतत्व का ज्ञान अध्यात्म की नींव है जिसे पाकर जीव कल्याण के पथ पर बढ़ता है। उपादेय तीनों का बोध होता है, सही समझ उत्पन्न होती है, मनुष्य जीवन सर्वश्रेष्ठ है । जानने योग्य तत्व जीव और एवं अजीव छोड़ने योग्य पाप, आश्रव एवं बंध तथा आदनेय योग्य पुण्य संवर, निर्जरा एवं मोक्ष, पाप तत्व के 18 भेद हैं। मिथ्यात्मक सम्यक दृष्टि को यदि आस्तिक कहे तो मिथ्यात्वी नास्तिक है ।

भगवान के एक वचन पर भी जिसे अनास्था है वह भी मिथ्यात्व है, मिथ्यात्व सब कर्मों का प्रमुख है । इसके सद्भाव में कर्म समाप्त नहीं हो सकता । आश्रव तत्व जिसे द्वारा कर्म पुद्गल आत्मा के साथ आते हैं उसे आश्रव कहते हैं । मुनि श्री ने कहा अन्न का दुरुपयोग नहीं जितनी जरूरत है उतना ले । अन्न देने से पुण्य होता है । पुण्य से धर्म होता है, पहली रोटी निकाले फिर खाएं । पीने की वस्तु में लोगों को पानी पिलाये। रोटी में फूलन ना आए उसका भी ध्यान रखें, जो वस्त्र अपने काम ना आएं दूसरों को आए तो उसे दे दो ।

उन्होंने कहा नव तत्व, जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा एवं मोक्ष में समाया हुआ है । इन तत्वों में सृष्टि का संपूर्ण ज्ञान निहित है, मुनि श्री ने पाप पुण्य नयन पुण्य, शयन पुण्य, वस्त्र पुण्य, नमस्कार पुण्य की जानकारी दी।

मुनि श्री ने सामायिक स्वाध्याय पर भी उपस्थित साधकों को जानकारी देते हुए कहा नमस्कार पुण्य करने से, जय जिनेंद्र बोलने से पुण्य एवं पाप की स्थिति बन जाती है। कषाय आत्मा में क्रोध मान माया एवं लाभ से मुक्त जीव होते हैं । अनुप्रेक्षा चार गतियो में दो अशुभ है एवं दो गति शुभ। हम इन चार गतियो से ऊपर उठकर शाश्वत सिद्ध गति को प्राप्त करें । मन वचन काया पर भी विस्तृत जानकारी देते हुए नमस्कार पुण्य पर बोले ।

सुश्रावक प्रेमचंद भंडारी ने उपस्थित श्रावक श्राविकाओ का पचखान कराया । कल शाम को दया दिवस पर 100 से अधिक महिला पुरुषों ने दया में भाग लिया । सभी को 10 ग्राम चांदी के सिक्के से सम्मान बहुमान किया गया। दया में भाग लेने वालों में दुर्ग, बिलासपुर, रायपुर एवं बालाघाट से कोठारी परिवार द्वारा संघ लेकर आए थे । मंगल पाठ सुनने के बाद नागपुर पहुंचकर दर्शन लाभ लिया, जैन तीर्थ का भ्रमण किया।

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