दुर्ग (अमर छत्तीसगढ) 18 सितंबर। 250 से अधिक साधक साधिकाओं ने आज एक साथ मिलकर आयंबिल तप की आराधना की। सकल श्वेतांबर जैन समाज के बेनर तले आयोजित आयंबिल तप की 75वी वर्षगांठ पर के अवसर पर की श्रमण संघ, मूर्ति पूजक साधुमार्गी,समरथ, सुधर्म तेरापंथ शांतक्रांत सहित जैन समाज के सदस्य इस आयोजन में शामिल हुए।
आज से 75 वर्ष पूर्व ऐसी साधना और आराधना दुर्ग शहर में प्रारंभ हुई थी जो आज तक हर्ष और उल्लास के वातावरण में निर्वात गति से चल रही है आज जय आनंद मधुकर रतन भवन के प्रांगण में आयंबिल की 75वीं वर्षगांठ साध्वी सुमंगल प्रभा जी के मंगल पाठ के साथ प्रारंभ हुआ।
आयम्बिल 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर 1 ग्राम के 3 सिक्के सोने के सिक्के एवं 75 चांदी के सिक्के इस अवसर पर ड्रॉ द्वारा निकाले जाएंगे यह सिक्के आयंबिल करने वाले साधकों के बीच से निकालें जाएंगे।
कोई तप साधना 75 वर्षों से लगातार संचालित हो यह बहुत बड़ी बात है आज से 75 वर्ष पूर्व सन 1949 मे श्री प्रेमराज श्रीश्रीमाल ने यह तप दुर्ग शहर में प्रारंभ करवाया था।
और प्रतिदिन श्वेतांबर जैन समाज के घर में प्रतिदिन आयबिल उपवास एकासन की थेली जेन परिवार के धर माह में एक बार पहुंचती थी जिस घर में यह थैली पहुंचती थी जाती थी उसे घर के एक सदस्य को उसे दिन तप की आराधना करनी होती थी।
आयंबिल की 75वीं वर्षगांठ श्री हर्षित मुनि जी श्री कल्पज्ञय सागर जी श्री सुमंगल प्रभा जी म.सा. आदि ठाणा श्री हेम प्रभा जी श्री दर्शनप्रभा श्री जी सहित सभी साधु साध्वी समुदाय का सानिध्य एवं आशीर्वाद प्राप्त हुआ आज के इस तप महोत्सव में 250 से अधिक साधक साधिकाओं ने भाग लिया ।
श्रमण संघ स्वाध्याय मंडल एवं श्रमण संघ महिला मंडल के सदस्यों ने इस तप महोत्सव में अपनी सेवाएं दी । आज के आयंबिल तप में चांदी एवं सोने के सिक्के के लाभार्थी परिवार श्रीपाल हरीश कुमार आनंद कुमार अमित कुमार श्रीश्रीमाल परिवार थे
आयंबिल तप क्या होता केसा खान पान होता हे आओ हम जानें
भगवान महावीर ने हमें तपस्या के कई मार्ग बताए हैं। जैसे नवकारसी, पोरसी, बियासना, एकासना, उपवास आदि। आयंबिल उन्हीं में से एक है। आयंबिल में सभी द्रव्य याने दूध, दही, घी, तेल, शक्कर आदि सभी का त्याग किया जाता है। आयंबिल में नमक का भी त्याग होता है। आयंबिल की तपस्या रसनेद्रिंय पर विजय प्राप्त करने के लिए करते हैं। अपना पेट भरने के लिए एक स्थान पर बैठकर दिन में सिर्फ एक बार लूखा-सुखा आहार करना। समभाव की साधना करना यही आयंबिल ओली का हेतू है। लगभग चैत्र शुक्ल सप्तमी से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तक आयंबिल ओली की जाती है। श्रीपाल-मैना ने यह तपस्या की थी और तब से यह आयंबिल ओली प्रारंभ हुई।
आयम्बिल एक तप है। इसमें दिन में एक बार भोजन किया जाता है लेकिन भोजन बहुत ही मर्यादित होता है जिसमे दूध, दही, घी, तेल, किसी भी प्रकार की मिठाई, गुड, शक्कर, मिर्ची, हल्दी, धनिया, कोई भी हरी सब्जी और फल, सूखे मेवे आदि वस्तुओ का संपूर्ण त्याग होता है।
आयम्बिल में सिर्फ अनाज और दालों को पकाकर केवल बिना नमक, काली मिर्च और हिंग डालकर सिर्फ उबले पानी के साथ यह लूखा सुखा भोजन दिन मे केवल एकबार मध्यान्ह के करीब किया जाता है।
यह भोजन मनुष्य की जीभ की लालसा, जीभ की स्वादिष्ट भोजन करने की आदत को तोड़ने के लिए किया जाता है।
कई तपस्वी कई दिनों और महीनों तक आयम्बिल करते है।