रायपुर (अमर छत्तीसगढ) 18 सितंबर। जैन मुनि श्री शीतल राज पिछले 55 दिनों से स्थानीय पुजारी पार्क स्थित मानस भवन में अपने नियमित प्रवचन में उपस्थित जनों को पाप, पुण्य, इंद्रिय, कर्म, मिथ्यात्व, साधु साध्वी, श्रावक श्राविकाओ पर दी गई जानकारी के साथ प्रश्नोत्तरी के माध्यम से रुबरू हो रहे हैं। जानकारीयो को साझा करने का एक शानदार अभियान से उपस्तिथ जन जैन धर्म ग्रंथ तीर्थंकरों की भूमिका पर मार्गदर्शन ले रहे हैं ।मिथ्यात्व गुण पर बोलते हुए कहां जीव की सोच विचार करने के विपरीत नजरिया को ही मिथ्यात्व गुण कहते हैं।
मुनिश्री ने जीव तत्व, पुण्य तत्व, पाप तत्व, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध एवं मोक्ष पर बोलते हुए कहा प्रथम तत्व जीव तत्व है जो जीता है वह जीव है जीव का लक्षण चेतन है। पुण्य तत्व जो आत्मा को पवित्र करता है यही पुण्य है। पुण्य बंद के नौ भेद हैं अन्न पूण्य, पानपूण्य, लयन पूण्य, शयन पुण्य, वस्त्र पुण्य, मन पुण्य, वचन पुण्य, काय एवं नमस्कार है । पाप तत्व के 18 भेद है ।
आश्रव तत्व जिनके द्वारा कर्म पुद्गल आत्मा के साथ चिपकने आते हैं, यही आश्रव है। मिथ्यात्व पर कहा सम्यक दृष्टि को हम आस्तिक कहे तो मिथ्यावी नास्तिक है । अविरती दोष आत्मा में स्वच्छता दोष के कारण है, वहीं क्रोध मान माया एवं लाभ, कषाय का कारण मन वचन काया की प्रवृत्ति योग कहलाती है। उन्होंने कहा संवर के बीच भेद है । निर्जरा तत्व तप संयम द्वारा या विषाक से कर्मों का देशत: क्षय हो जाना निर्जरा है ।
मुनि श्री ने कहा निर्जरा के 12 भेद हैं कर्मों का आना आश्रव एवं आते हुए कर्मों का रोकना संवर है। निर्जरा में अनशन, भिक्षाचार्य, ध्यान, स्वाध्याय, प्रायश्चित, विनय इत्यादि है। मोक्ष तत्व की प्राप्ति के सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चारित्र, सम्यक तप है । मुनि श्री ने कहा तीर्थंकर भगवंत ने भव्य जीवो को मोक्ष का मार्ग बताया।
साधु साधु, श्रावक श्राविका में चार कैसे मिलती है, जैन कुल में मात्र सामायिक करने से श्रावक नहीं हो सकते, बिना पुरुषार्थ के कुछ नहीं मिलेगा । जरूरत है मनुष्य भव पाया उसे समझो । पूण्य जबरदस्त हो तो चक्रवर्ती भी बन जा सकते हैं।
साधु वंदना सरल नहीं है वैसे भी धर्म की आराधना पूण्य से नहीं पुरुषार्थ से होगी। मुनि श्री ने 8 कर्मों में से वंदनीय, आयुष्य, मोहिनीय, अंतराय कर्म पर चर्चा करते हुए कहा कर्मबंध के प्रमुख कारण कषाय एवं योग है। वंदनीय कर्म पर कहा पुद्गल से सुख एवं दुख अनुभव है । इसके दो भेद क्रमशः साता असाता वंदनी है। चार कर्म भोगते हैं चरण कर्म काटते हैं । वंदनीय कर्म बांधा उतना समय भुगतान पड़ेगा। कर्म बांधना सरल भोगना कठिन, मनुष्य भाव को प्राप्त कर पुण्य निर्जरा एवं संवर ये तीन तत्वों की आराधना करें अन्यथा पाप करने पर भटकोगे । पांच लक्षणों से धीरे-धीरे संयमवक्त प्राप्त कर सकते हैं
घार से आई श्रीमती सुरक्षा कोठारी ने भावगीत के माध्यम से व्यक्त किए। श्रावक अजय संचेती ने संवर करने वालों की जानकारी दी। सुश्रावक प्रेमचंद भंडारी ने उपस्थित जनों का पचखान कराया। आज दोपहर में मुनि श्री का मंगल पाठ मांगलिक टैगौर नगर निवासी गोलछा परिवार के यहा हुआ ।