बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ) 18 सितंबर। आत्म कल्याण एवं आत्म शुद्धि के महापर्व दशलक्षण महापर्व का दसवा दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का दिन रहता है। इस धर्म के बारे में पंडित जयदीप शास्त्री जी ने अपने प्रवचन में संत शिरोमणि पूज्य गुरुवर विद्यासागर जी के वचनों का जिक्र करते हुए बताया कि संत शिरोमणि ने कहा था कि मोक्ष मार्ग बाहर कम और भीतर ज्यादा है। हमारी दृष्टि बाहर की तरफ रहती है जबकि अन्तर्दृष्टि की ओर जाने की जरूरत है। हम आगे देख सकते हैं परंतु पीछे नहीं देख सकते, ऊपर भी नहीं देख सकते हैं। व्यक्ति यहां वहाँ सब जगह दृष्टि दौड़ाता रहता है, जबकि अपनी आत्मा में लीन होना ही ब्रह्मचर्य है क्योंकि आत्मा को ब्रहम् कहा गया है। जिस प्रकार फोटो लगाने के लिए फ्रेम की जरूरत पड़ती है, उसी प्रकार जिनके पास अनंत है हम उसे नमस्कार करते हैं क्योंकि वो उपाधि एक तरह से फ्रेम होती है। चित्रकार जब चित्र बनाता है तो वह हर एक कोण का विशेष ध्यान रखता है, तब जाकर एक सुन्दर चित्र बनता है।
आचार्य श्री ने कहा था कि अनंत को देखने का प्रयत्न करो, किसी भी चोखट के बिना, आप अपने अंतरंग का चित्र स्वयं बनाओ और अंतरंग में डूब कर बनाओ। जब सफ़ेद कागज पर सफ़ेद रंग से लिखा जाता है उसे समझने में दिक्कत होती है। आत्मा अक्षर रहित होती है जबकि आप अक्षर खोजते हो। चित्रकार कृष्ण के साथ हमेशा सफ़ेद गाय का चित्र बनाता है जबकि कृष्ण को सभी रंग की गाय पसंद थी। गाय सफ़ेद हो या काली दूध सफ़ेद ही देती है। कोण कैसा भी हो दृष्टिकोण स्पष्ट होना चाहिए और दृष्टिकोण में विशालता लाने की आवश्यकता है। दृष्टि को फ्रेम या चौखट तक सीमित न रखें अपितु केंद्रबिंदु तक ले जाएँ।
उन्होंने कहा कि जब परमात्मा की सुगंधि फूटती है तो अंतरात्मा तक जाती है और फिर अंतरात्मा ब्रह्म में लीन होने की ओर आकृष्ट हो जाती है। आज का विकास चित्र से विचित्र की और जा रहा है इसलिए दिशाहीन है। जब तक गहराई में उतरेंगे नहीं, जब तक ज्ञान में डूबेंगे नहीं और जब तक हीरे को चारों तरफ से अच्छे से देखेंगे नहीं तब तक उसकी सही पहचान नहीं कर पाएंगे।
जब दर्शन करते हैं तो परमात्मा की प्रतिमा को दर्पण के प्रतिबिम्ब के माध्यम से अनेक रूप में देखते हैं ऐंसे ही ज्ञान के प्रतिबिम्ब के माध्यम से आत्मा का स्वरुप भी विराट दिखाई देता है। जीवन में जब भार बढ़ता है तो झुकना पड़ता है उसी तरह जब साधना में ब्रह्म का भार बढ़ता है आतो त्मा भी मोक्ष मार्ग की और बढ़ते जाती है। आत्म तत्व के बारे में जब पूर्ण बोध हो जाता है तो मोक्ष मार्ग की सीढ़ी मिल जाती है।
धार्मिक फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता
महापर्व के दौरान आयोजित होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में धार्मिक फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता अनुयोग – जैन धर्म की नींव का आयोजन किया गया। 5 वर्ष से लेकर 13 वर्ष तक के बच्चों के लिए आयोजित इस प्रतियोगिता में अनायशा, अर्हम, वेदार्थ, लाव्या, पुण्यांश, आद्या, वेदांता, देवांशु, विद्यांशी, अर्नेश, भव्य, भाविका, आर्या, अणिमा, सिद्ध, शौर्य, इवान, अव्यान, परिशा, पार्श्वी, रिद्धिमा, सर्वार्थ, जीविका, राव्या, अनवी, अर्थ, दिया, प्रत्युष और अनुज ने हिस्सा लिया।
इन छोटे-छोटे बच्चों द्वारा जैन धर्म, दान पेटी, परेशान ग्वाला, मेढक, जैन विद्यार्थी, जिनवाणी, जटायु, आचार्य मानतुंग जी, चंदनबाला, दीवान अमरचंद, जैन धर्म, कलश, मैना सुंदरी, सात तत्व, सौधर्म इंद्र, रावण, श्रवण कुमार, सती ब्राम्ही, पानी की बूँद, खदीसार भील, कर्म, श्रीपाल मैनासुन्दरी, चल चरखा, सोम सती, अभागा भरत, सिद्धक्षेत्र गिरनार जी, सिद्धशिला और श्रीफल का किरदार निभाया गया।
5 से 7 वर्ष के समूह में प्रथम पुरस्कार देवांशु जैन को मिला जिसने आचार्य मानतुंग जी का किरदार निभाया था, द्वितीय पुरस्कार रावण का किरदार बनने वाले इवान को मिला और तृतीय पुरस्कार जिनवाणी बनने वाली आद्या एवं चंदनबाला बनने वाली विद्यांशी को मिला। 8 से 13 वर्ष के बसाहचों के समूह में प्रथम पुरस्कार श्रवण कुमार बनने वाले अव्यान को प्राप्त हुआ, खदीसार भील का किरदार निभाने वाली रिद्धिमा को द्वितीय पुरस्कार एवं कर्म के बारे में बताने वाले सर्वार्थ को तृतीय पुरस्कार मिला।
दशलक्षण महापर्व के दौरान तीनो मंदिर जी में पुजारी शुभम, मनोज, दीपक, शनि, रवि, राहुल ने बहुत ही व्यवस्थित तरीके से पूजा, अभिषेक, आरती आदि क्रियाएं संपन्न करवाई। मंदिर के माली अशोक, वेद और लखन ने मंदिर जी की अन्य व्यवस्था बनाये रखने में अमूल्य योगदान दिया।
तपस्वियों को गाजे बाजे के साथ पारना स्थल लाया गया
आत्म शुद्धि एवं आत्म कल्याण के महापर्व दशलक्षण महापर्व 2024 के बिलासपुर जैन समाज से 9 श्रावकों ने 10 उपवास पूर्ण किए हैं। सभी तपस्या करने वाले का पारना का कार्यक्रम जैन भवन में किया गया । समाज में जिन लोगों ने कठिन तपस्या की उसमें श्रीमती स्नेहा जैन, श्रीमती सोना जैन, श्रीमती मालती जैन, श्रीमती मीनल जैन, श्रीमती पुष्पलता जैन, श्रीमती संध्या जैन, श्रीमती निमिषा जैन, श्रीमती आयुषी जैन, श्रीमती साधना जैन है।
प्रातः बजे सभी तपस्वियों को गाजे बाजे के साथ पारना स्थल लाया गया। सकल जैन समाज से लोग क्रांतिनगर मंदिर जी पहुँचकर तप की अनुमोदना करने में सम्मिलित हुवें।