शास्त्र पढ़कर नहीं मिलता केवलज्ञान, जिसने आत्मा को नहीं जाना वह अज्ञानी…. असफल होने पर जो मैदान नहीं छोड़ते वही जिंदगी में विनर बन सकते- समकितमुनिजी

शास्त्र पढ़कर नहीं मिलता केवलज्ञान, जिसने आत्मा को नहीं जाना वह अज्ञानी…. असफल होने पर जो मैदान नहीं छोड़ते वही जिंदगी में विनर बन सकते- समकितमुनिजी

हैदराबाद(अमर छत्तीसगढ), 26 सितम्बर। किसी कार्य या परीक्षा में असफलता मिलने पर भी अपना उत्साह कभी कम नहीं होने दे। मेहनत करना कभी नहीं छोड़े तो जिस लाइन में असफलता मिली उसी में जिदंगी में विनर बन सकते है। असफलता से घबरा मेहनत करना बंद कर दिया तो विनर बनने की संभावना खत्म हो जाती है। कछुआ खरगोश के तेज दौड़ने से घबरा मैदान छोड़ देता तो वह उसे कभी हरा नहीं पाता। जब कठिन पल आए तो मैदान मत छोड़ो जीतने की संभावना बनी रहेगी।

ये विचार श्रमण संघीय सलाहकार राजर्षि भीष्म पितामह पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. के ़सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में गुरूवार को सात दिवसीय विशेष प्रवचनमाला एकाउन्ट ऑफ कर्म का चौथे दिन व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आत्मा के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है। ज्ञान आत्मा का गुण व धर्म है। चेतन से भिन्न ज्ञान होता नहीं है। ज्ञान ग्रन्थों में होता तो हर कोई केवलज्ञानी बन जाता।

शास्त्र पढ़ने से केवलज्ञान नहीं होता जिसने आत्मा को जान लिया उसने सबको जान लिया। जिसने आत्मा को नहीं जाना वह सब कुछ जानकर भी अज्ञानी रह गया। मुनिश्री ने कहा कि अधाती कर्मो का उदय होने पर हम किसी ने कोई अपशब्द कहे तो वह हर समय हमारे दिमाग में घूमता रहता है ओर दुनिया से जाने पर भी वह शब्द गूंजता रहता है। इतना ध्यान जिनवाणी सुनने या सामायिक करने में लगा दे तो जिंदगी ही बदल सकती है।

कर्म को भोगना ही पड़े ये जरूरी नहीं है। कर्म का उदय होने पर भी कर्म नहीं करना पड़े इसका नाम संयम है। सुख सामग्री मिली होने पर भी उसका उपभोग नहीं करना, भोजन सामने होने पर भी नहीं खाना, प्यास लगने पर भी पानी नहीं पीना ये सब संयम है।

प्रवचन के शुरू में गायनकुशल जयवन्तमुनिजी म.सा. ने भजन ‘‘गुरू दीपक बनकर जग में अंधकार मिटाते है ’’ की प्रस्तुति दी। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा.का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में उदयपुर,सूरत, नंदुरबार, बेंगलौर, चैन्नई,भीलवाड़ा, कोटा आदि स्थानों से पधारे श्रावक-श्राविका भी मौजूद थे।

जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं ये समझ गए तो बन जाएंगे मोक्षगामी

प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने कहा कि जीवन में सुख दुःख आते है चले जाते है। चले जाना एक शाश्वत नियम है। आने-जाने के बीच जो मिला हुआ वह सिर्फ एक भीड़ की तरह है। भीड़ चाहे पैस की हो, पद की हो, दोस्त की हो, रिश्तेदारों की हो वह टेम्पररी ही होती है। कल किसी ओर की थी, आज हमारे साथ है ओर कल किसी ओर के साथ होगी। उन्होंने कहा कि जीवन में ये भीड़ स्थाई नहीं है ओर इसके भरोसे नहीं रहना है जिसे ये याद रह जाता है वह मोक्षमार्ग पर आगे बढ़ जाता है। जो इस भीड़ को स्थाई समझ इसी में अटक कर रह जाता है वह एक दिन नरक की भीड़ में शामिल हो जाता है। हम सब भीड़ एकत्रित करने के लिए भागदौड़ करते है। जिसे सुख शांति पानी उसे भीड़ को छोड़ना पड़ता है। जीवन में कुछ भी परमानेंट नहीं है इस नियम को समझने के लिए कर्म थ्योरी को समझना होता है।

व्रति श्रावक दीक्षा समारोह 29 सितम्बर को

चातुर्मास के तहत रविवार 29 सितम्बर को व्रति श्रावक दीक्षा समारोह होगा। इसमें श्रावक-श्राविकाएं 12 व्रत में से न्यूनतम एक व्रत या इससे अधिक की दीक्षा ग्रहण करेंगे। चातुर्मास में 2 अक्टूबर को सवा लाख लोगस्स की महाआराधना होगी। आयम्बिल तप के महान आराधक पूज्य गुरूदेव भीष्म पितामह राजर्षि सुुमतिप्रकाशजी म.सा. की जयंति 9 अक्टूबर को आयम्बिल दिवस के रूप में मनाई जाएगी। इस दिन 11 हजार 111 आयम्बिल तप करने का लक्ष्य रखा गया है। आयम्बिल तप करने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी किए जा रहे है।

निलेश कांठेड़
मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024
मो.9829537627

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