जिनवाणी पर श्रद्धा एवं विश्वास अटूट रहे तो हो जाएंगे भवसागर पार -दर्शनप्रभाजी मसा… जिनवाणी के अनुरूप हो जाए हमारा आचरण तो बदल जाएगा जीवन- समीक्षाप्रभाजी मसा

जिनवाणी पर श्रद्धा एवं विश्वास अटूट रहे तो हो जाएंगे भवसागर पार -दर्शनप्रभाजी मसा… जिनवाणी के अनुरूप हो जाए हमारा आचरण तो बदल जाएगा जीवन- समीक्षाप्रभाजी मसा

सूरत(अमर छत्तीसगढ) ,26 सितम्बर। जिसके ह्दय में धर्म का वास होगा ओर जिनवाणी में आस्था रखता होगा उसका कल्याण हो जाएगा। दया हमारे धर्म का मूलाधार है। जो राग द्धेष जैसे कषायों पर विजय प्राप्त कर लेता है वहीं जैनी होता है। हमे नाम के जैनी नहीं बल्कि कर्म व भावना से भी जैनी के अनुरूप आचरण करना है। जो जैनत्व में विश्वास रखता है वह जैन है।

ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने गुरूवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्हांेंने श्रमणोपासिका मदनबाई खाब्या का गुणगान करते हुए कहा कि आज हम जो भी है वह उनसे प्राप्त मार्गदर्शन व उनसे मिली प्रेरणा से है।

धर्मसभा में रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि जिनवाणी पर हमारी श्रद्धा एवं विश्वास अटूट रहे तो भवसागर को पार हो जाएंगे। जिंदगी में कैसे भी हालत बने जिनवाणी ओर जिनशासन से हमारा विश्वास कभी कम नहीं होना चाहिए। विश्वास डगमगाता है तो जीवन में धर्म का आलंबन कम होकर मुश्किले बढ़ती है। जिनवाणी पर भरोसा रखने वाले का हर काम पूर्ण होता है। उन्होंने कहा कि जीवन में किसी से अति लगाव रखना भी दुःख का कारण बन जाता है। इस कारण हम मोहग्रस्त होकर आत्मकल्याण के पथ से विमुख हो जाते है।

तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि जिनवाणी हमारे लिए तभी सार्थक होगी जब हम उसे श्रवण करे, ग्रहण करे, धारण करे ओर उसके अनुरूप आचरण करे। ऐसा कर पाए तो जिनवाणी हमारे जीवन को बदलकर हमे आत्मकल्याण के पथ पर अग्रसर करती है।

उन्होंने कहा कि तीन तरह की मूर्तिया होती है। उसकी कीमत कम होती है जो कान से सुना कान से निकाल देती है। उसकी कीमत कुछ अधिक होती जो कान से सुन मुंह से निकाल देती है। वह मूर्ति बहुमूल्य होती जो कान से सुन सीधे पेट में उतार देती है। दया भाव की भावना मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले भव्य जीव में ही होती है अभव्य जीव में नहीं हो सकती।

उन्होंने कहा कि जीवन में मानव तन मिला है तो अधिकाधिक तप त्याग, धर्म ध्यान ओर दान करना है। ये ही हमारे साथ जाएंगे बाकी सब यहीं रह जाएंगे। विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. ने भजन स्वामी ये शासन के सिंगार पाए भव नयसार की प्रस्तुति दी। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. एवं सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ।

महासाध्वी मण्डल के सानिध्य में तपस्या का दौर निरन्तर गतिमान है। एक तपस्वी द्वारा 27 उपवास की गुप्त तपस्या भी उपवास, आयम्बिल,एकासन आदि के प्रत्याख्यान भी लिए गए। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप भी हो रहा है। प्रवचन में 7 लक्की ड्रॉ भी श्रीसंघ द्वारा निकाले गए।

नागौर,ब्यावर,पीह,छोटी पाद ू(चैन्नई) सहित सूरत के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे श्रावक-श्राविकाएं भी धर्मसभा में मौजूद रहे। सूरत के टीकमनगर से पधारे श्रावक संघ एवं महिला मण्डल ने भी गुरूदर्शन व सेवा का लाभ लिया। बाहर से पधारे सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलालजी नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के लूणकरणजी कोठारी ने किया।

जैन एग्जीबिशन का आयोजन 29 सितम्बर को

महासाध्वी मण्डल के सानिध्य में गोड़ादरा श्रीसंघ के तत्वावधान में जैन एग्जीबिशन ‘आरंभ से अंत तक एक सफरनामा’ का आयोजन महावीर भवन में 29 सितम्बर रविवार को होगा। इसके माध्यम से स्वयं को स्वयं से जोड़ते हुए अपने ही सफर को देख जीवन यात्रा का अनुभव ले सकेंगे। यह जीव कहां से कहा तक यात्रा करके आया ओर कहां जाएगा इसका अनुभव इस भव्य जैन प्रदर्शनी में मिलेगा। इसका शुभारंभ सुबह 9 बजे होगा। प्रदर्शनी सुबह 10.30 से रात 10.30 बजे तक चलेगी। गोड़ादरा श्रीसंघ के तत्वावधान में 2 अक्टूबर को प्रश्नमंच का भी आयोजन होगा।

प्रस्तुतिः अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627

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